Thursday, November 14, 2024
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गरबा टैक्स और GST से लेकर कर्ज माफ़ी तक, ‘विश्वास मत’ के नाम पर CM केजरीवाल के 5 झूठ का पोस्टमॉर्टम, भ्रष्टाचार से हटाना चाहते हैं ध्यान

'ऑपरेशन लोटस' का आना 'आम आदमी पार्टी' की कल्पना मात्र है। 'ऑपरेशन लोटस' का नाम आम आदमी पार्टी इसलिए सामने ला रही है क्योंकि वह अपने विधायकों और मंत्रियों पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों से ध्यान हटाना चाहती है।

सोमवार (29 अगस्त, 2022) को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने विधानसभा में ‘विश्वास मत’ पेश किया। इस दौरान उन्होंने अपने भाषण में कई गलत आँकड़ों और झूठे दावों के सहारे ये बताने की कोशिश की है कि आने वाले समय में पार्टी का रुख कैसा रहने वाला है।

‘गेहूँ, चावल, दाल की कीमतों के पीछे जीएसटी’

अपने भाषण की शुरुआत में अरविंद केजरीवाल ने दावा किया कि लोगों ने सब्जियाँ खरीदनी बंद कर दी हैं और महँगाई के कारण दूध और दूध से बने उत्पादों की खपत कम कर दी है। उन्होंने कहा कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार दही, शहद, गेहूँ, चावल और अन्य उत्पादों पर टैक्स लगाया गया है। उन्होंने दावा किया कि आजादी से पहले ब्रिटिश सरकार ने भी इन चीजों पर टैक्स नहीं लगाया था।

गौरतलब है कि जब दूध, दही, गेहूँ, चावल सहित खाद्य पदार्थों पर जीएसटी लगने के कारण महँगे होने की खबरें सामने आ रहीं थीं तब केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ट्वीट्स के जरिए साफ किया था कि जीएसटी लागू होने से पहले सभी राज्य सरकारें खाद्य पदार्थों पर 1 से 6% तक टैक्स वसूल रहे थे।

जीएसटी लागू होने के बाद, ब्रांडेड और गैर-ब्रांडेड पैक की गई वस्तुओं को टैक्स के दायरे में लाया गया था। सबसे बड़ी बात यह है कि खाद्य पदार्थों पर लगाए गए जीएसटी के लिए सभी राज्यों के प्रतिनिधियों द्वारा स्वीकृति दी गई थी। इसमें सिर्फ पैकेट-बंद खाद्य पदार्थों पर टैक्स लगाने के लिए कहा गया था। मतलब साफ है कि अगर कोई सामान खुले में बेचा जाता है, तो उस पर कोई जीएसटी लागू नहीं होगा। जिन वस्तुओं को खुले में बेचे जाने पर टैक्स लागू नहीं होगा, उनमें दाल, गेहूँ, जई, मक्का, चावल, दही, लस्सी, बेसन और बहुत कुछ शामिल हैं।

केजरीवाल का दावा – ‘गरबा पर सरकार ने लगाया टैक्स’

दूसरा सीधा झूठ जो केजरीवाल ने विधानसभा में कहा, वह गरबा पर टैक्स लगाने के बारे में था। केजरीवाल द्वारा विधानसभा में दिए गए इस अधूरे और गैर-सूचित बयान का हफ्तों पहले भंडाफोड़ हो चुका है।केजरीवाल ने कहा, “गुजरात गरबा डांस के लिए जाना जाता है। लोग नवरात्रि के दौरान देवी माँ की पूजा करते हैं और भक्ति के साथ गरबा करते हैं। लेकिन अब उन्होंने गरबा पर भी टैक्स लगा दिया है।”

उल्लेखनीय है कि 4 अगस्त को, ऑपइंडिया ने गरबा आयोजनों पर टैक्स के बारे में सोशल मीडिया पर चल रहे दावों की जाँच की थी। इस जाँच में यह सामने आया था कि कॉन्ग्रेस और AAP फेक खबर फैला रहे थे। इस बारे में सच्चाई यह है कि राज्य सरकार ने गरबा या ऐसे किसी आयोजन पर कोई नया जीएसटी नहीं लगाया है। 

मूल रूप से, जीएसटी के लागू होने से पहले, ऐसे आयोजनों के प्रवेश द्वार पर सेवा कर (सर्विस टैक्स) 15% की दर से लगाया जाता था, जहाँ प्रति व्यक्ति टिकट की कीमत 500 रुपए से अधिक होती थी। तब सर्विस टैक्स के अलावा, इस्तेमाल किए गए सामानों पर भी वैट लगाया जाता था।

खासतौर से, जीएसटी केवल उन टिकटों पर लगाया जाता है, जिनकी कीमत पार्टी स्थलों, क्लबों और स्टेडियमों में आयोजित गरबा कार्यक्रमों के लिए 500 रुपए से अधिक है। यदि आवासीय समितियाँ गरबा का आयोजन कर रही हैं और टिकट 500 से कम होने की स्थिति में कोई टैक्स नहीं लगाया जाता है।

विशेष रूप से, जब वस्तु और सेवा कर (GST) 1 जुलाई, 2017 को सरकार की ‘एक राष्ट्र, एक कर’ नीति के तहत लागू हुआ। तब, इसमें 17 बड़े कर और केंद्र तथा राज्य सरकारों द्वारा 13 उपकर जैसे वैट, चुंगी, लग्जरी टैक्स, परचेज टैक्स और सेंट्रल टैक्स जैसे कस्टम ड्यूटी, सेंट्रल एक्साइज ड्यूटी और सर्विस टैक्स लगाए गए।

कर्ज माफी के बारे में फिर फैलाया झूठ

इसके बाद सीएम केजरीवाल ने कर्ज माफी की बात की, जो कभी हुई ही नहीं। केजरीवाल ने कहा, “इस सरकार के दोस्त हैं, ये दोस्त अरबपति हैं। उन्होंने बैंकों से हजारों करोड़ रुपए का कर्ज लिया। कर्ज लेने के बाद उन्होंने उन्हें चुकाने के विषय में कभी नहीं सोचा। उन्होंने सरकार से संपर्क किया और कर्ज माफी की माँग की। सरकार ने खाद्य पदार्थों पर टैक्स लगाया और उस पैसे का इस्तेमाल उनका कर्ज माफ करने के लिए किया।”

केवल केजरीवाल ही नहीं, बल्कि कई अन्य विपक्षी नेता कर्ज माफी और कर्ज माफी के बीच भ्रम का इस्तेमाल करते रहे हैं। यहाँ तक ​​कि भाजपा नेता वरुण गाँधी, जो कि लगातार पार्टी से विद्रोह का संकेत देते रहे हैं, उन्होंने भी कर्ज माफी को लेकर भ्रम फैलाने का काम किया है।

7 अगस्त को, ऑपइंडिया ने कर्ज माफी और कर्ज बट्टे खाते में डालने के बारे में विस्तार से बताया था। ऑपइंडिया की रिपोर्ट में यह बताया गया है कि कैसे इन नेताओं ने संसद में सरकार द्वारा उपलब्ध कराए गए आँकड़ों को गलत तरीके से दिखाने का प्रयास किया। इन नेताओं के ट्वीट अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ (एआईबीईए) द्वारा किए गए एक पोस्ट पर आधारित थे।

2 अगस्त को, वित्त मंत्रालय में राज्य मंत्री, डॉ भागवत कराड ने लोकसभा में बताया था कि पिछले 5 वित्तीय वर्षों में, कॉमर्शियल बैंकों ने 9,91,640 करोड़ रुपये के कर्ज को बट्टे खाते में डाल दिया है।

उन्होंने यह भी बताया था कि भारतीय रिजर्व बैंक के बड़े क्रेडिट (सीआरआईएलसी) डेटाबेस पर सूचना के केंद्रीय भंडार द्वारा उपलब्ध कराए गए आँकड़ों के अनुसार, 2019 में 2207 विलफुल डिफॉल्टर्स थे। इन डिफॉल्टर्स का कुल क्रेडिट एक्सपोजर 5 करोड़ रुपए या उससे अधिक था। 2020 में यह संख्या 2469 हो गई, इसके बाद 2021 में 2840 विलफुल डिफॉल्टर्स और 2022 में यह संख्या 2790 थी।

बैड लोन्स की रिकवरी पर बोलते हुए भागवत कराड ने बताया था कि एसबीआई ने उस समय के दौरान माफ किए गए 41,006.94 करोड़ रुपए के बैड लोन्स की वसूली की थी, और शेष बैड लोन्स की वसूली की प्रक्रिया बैंक प्रोसेस में है। इसी तरह यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने 6955.12 करोड़ रुपए, पंजाब नेशनल बैंक ने 11,821.37 करोड़ रुपए, बैंक ऑफ बड़ौदा ने 9,540.04 करोड़ रुपए और केनरा बैंक ने 7,348.52 करोड़ रुपए की वसूली की थी। उन्होंने यह भी कहा था कि भारत सरकार बैड लोन्स की वसूली के लिए हर संभव प्रयास कर रही है और परिणाम आँकड़ों में दिखाई दे रहे हैं।

आप सभी को याद होगा सरकार ने इसी साल फरवरी में यह बताया था कि विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहुल चोकसी सहित तीन डिफॉल्टरों से 18,000 करोड़ रुपए वसूल किए गए हैं।

कुल मिलाकर देखें तो केजरीवाल द्वारा किए गए दावों के विपरीत, संबंधित एजेंसियों की मदद से सभी प्रकार के कर्जों की वसूली की जा रही है। भले ही आरोपी भारत से भाग गए हों, जैसे विजय माल्या, नीरव मोदी और मेहुल चोकसी के मामले में, सरकारी एजेंसियाँ ​​और न्यायपालिका पैसे की वसूली के लिए मिलकर काम कर रही हैं।

‘ऑपरेशन लोटस’ में उपयोग हो रहा है ‘फ्यूल टैक्स’

दिल्ली विधानसभा में बोलते हुए केजरीवाल ने यह दावा किया कि भारत सरकार “ऑपरेशन लोटस” को फंड देने लिए फ्यूल पर टैक्स लगा रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार पेट्रोल और डीजल पर टैक्स लगाकर जो पैसा इकट्ठा करती है, उसका इस्तेमाल राज्यों में “विधायकों की खरीद” के लिए किया जा रहा है। उन्होंने आगे दावा किया कि भाजपा ने उनके 12 विधायकों को 20 करोड़ रुपए की पेशकश की, लेकिन उन्होंने आप छोड़ने और भाजपा में शामिल होने से इनकार कर दिया। केजरीवाल ने कहा, “अगर वे हाल के वर्षों में खरीदे गए सभी विधायकों को 20 करोड़ रुपए की पेशकश कर रहे हैं, तो उन्होंने अलग-अलग राज्यों में 277 विधायकों को खरीदने के लिए 5540 करोड़ रुपए खर्च किए होंगे।”

सबसे पहले केजरीवाल ने आसानी से इस तथ्य को छोड़ दिया कि उनकी सरकार भी फ्यूल पर टैक्स वसूलती है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने 28 अप्रैल को एक रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली ने पेट्रोल पर 17.13 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 14.12 रुपये प्रति लीटर का वैट लगाया हुआ है। पेट्रोल का बेस प्राइस 56.32 रुपए प्रति लीटर था, माल भाड़ा 0.20 रुपए था, केंद्र सरकार का उत्पाद शुल्क 27.90 रुपए था और पेट्रोल के मामले में डीलर का कमीशन 3.86 रुपए प्रति लीटर था।

डीजल के मामले में बेस प्राइस 57.94 रुपए, माल भाड़ा 0.22 रुपए, उत्पाद शुल्क 21.80 रुपए और डीलर कमीशन 2.59 रुपए था। रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल 2021 से दिसंबर 2021 तक दिल्ली ने फ्यूल पर वैट और बिक्री कर से 2713 करोड़ रुपए एकत्र किए। सबसे छोटा राज्य होने के बावजूद, दिल्ली ने जम्मू और कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, सिक्किम और मिजोरम सहित नौ राज्यों से अधिक वैट इकट्ठा किया।

‘ऑपरेशन लोटस’ का आना ‘आम आदमी पार्टी’ की कल्पना मात्र है। ‘ऑपरेशन लोटस’ का नाम आम आदमी पार्टी इसलिए सामने ला रही है क्योंकि वह अपने विधायकों और मंत्रियों पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों से ध्यान हटाना चाहती है। यह विडंबना ही है कि सीएम केजरीवाल ने बीजेपी पर भ्रष्टाचार का आरोप तो लगाया है। लेकिन, एक मंत्री सत्येंद्र जैन हिरासत में हैं और दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया शराब नीति में घोटाले के आरोपों का सामना कर रहे हैं। साथ ही उन पर गिरफ्तारी की तलवार भी लटक रही है।

‘इतने सारे स्कूल बनाने से नाराज है बीजेपी’

यही नहीं, अपने भाषण में केजरीवाल ने यह भी दावा किया कि उनकी सरकार ने दिल्ली में कई स्कूल बनाए हैं। हालाँकि, जब भी यह सवाल उठता है कि दिल्ली सरकार ने कितने स्कूल बनाए हैं तब केजरीवाल सरकार की ओर से कोई भी जानकारी आज तक नहीं दी गई है। केजरीवाल ने हाल ही में असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा के सवाल को भी टाल दिया था। जहाँ, उन्होंने केजरीवाल से उनकी सरकार द्वारा बनाए गए नए स्कूलों के बारे में पूछा था।

उन्होंने कक्षाओं को अपग्रेड तो किया है लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि इससे कितना फर्क पड़ा है। बिना हेडमास्टर के स्कूलों के चलने की हालिया रिपोर्ट और 60 प्रतिशत से अधिक स्कूलों में विज्ञान की कक्षाएं नहीं चलने से दिल्ली सरकार की शिक्षा नीति पर भी सवाल खड़े होते हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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