Friday, December 6, 2024
HomeराजनीतिMann Ki Baat: जानिए PM मोदी ने क्यों की प्रेमचंद की इन 3 कहानियों...

Mann Ki Baat: जानिए PM मोदी ने क्यों की प्रेमचंद की इन 3 कहानियों की बात

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम के तहत जनता से बात की। उन्होंने अपने दूसरे कार्यकाल में आज पहली बार 'मन की बात' कार्यक्रम के ज़रिए देशवासियों को संबोधित किया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आकाशवाणी और दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले ‘मन की बात’ कार्यक्रम के तहत जनता से बात की। उन्होंने अपने दूसरे कार्यकाल में आज पहली बार ‘मन की बात’ कार्यक्रम के ज़रिए देशवासियों को संबोधित किया।

कार्यक्रम की इस कड़ी में यूँ तो उन्होंने कई मुद्दों पर बात की लेकिन इस बार कार्यक्रम की सबसे ख़ास बात यह रही कि उन्होंने मुंशी प्रेमचंद का ज़िक्र करते हुए बताया कि उन्हें हाल ही में किसी ने ‘प्रेमचंद की लोकप्रिय कहानियाँ’ नाम की पुस्तक दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज मन की बात कार्यक्रम में प्रेमचंद्र की कहानी ‘ईदगाह’, ‘पूस की रात’ और ‘नशा’ का ज़िक्र किया। इन कहानियों का ज़िक्र करते हुए, इनमें छिपे संदेश बताते हुए वो हमें बता गए कि किताबें पढ़नी चाहिए। तो आखिर ये तीन कहानियाँ हैं किस संदर्भ में? आइए जानते हैं एक-एक कर।

मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘ईदगाह’

मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘ईदहगाह’ हामिद और उसकी दादी अमीना पर आधारित है। महज़ 7-8 साल का हामिद इस कहानी का नायक है, और वो अपने माता-पिता को खो चुका है। उसकी दादी अमीना उसकी परवरिश करती हैं। ग़रीबी की हालात में अमीना अपने पोते की देखरेख में कोई कोर-कसर नहीं छोड़तीं। तंगी की हालत के बावजूद अमीना अपने पोते हामिद को ईद के मौक़े पर तीन पैसे देती हैं।

ईद के मौक़े पर सभी बच्चे ईदगाह पहुँचते हैं और ईद की नमाज़ पढ़ने के बाद आपसे में गले मिलते हैं। इसके बाद बच्चों की टोली मेले से तरह-तरह के खिलौने और मिठाई ख़रीदती है। लेकिन हामिद के पास मात्र तीन ही पैसे होते हैं। इन पैसों से वो अपनी दादी के लिए चिमटा ख़रीदता है। इस बात पर उसके सभी दोस्त उसकी हँसी उड़ाते हैं। हामिद उन सभी दोस्तों के खिलौनों की निंदा करता है और अपने चिमटे को उनके खिलौनों से श्रेष्ठ बताता है।

घर आने पर जब उसकी दादी अमीना उसके हाथों में खिलौने की बजाए चिमटा देखती हैं तो काफ़ी ग़ुस्सा होती हैं और हामिद को डाँटती हैं। दादी की डाँट सुनने के बाद हामिद चिमटा लाने की असल वजह बताता है कि रोटी सेंकते समय दादी का हाथ कैसे जल जाता था तो इस पर दादी का ग़ुस्सा, प्यार में बदल जाता है। अपने पोते हामिद का अपने प्रति असीम प्यार और त्याग की भावना को देखकर दादी अमीना भावुक हो जाती हैं। अपनी नम आँखों से हामिद को गोद में उठाकर दुआएँ देने लगती हैं।

कहानी की विशेषता: ‘बाल मनोविज्ञान’ पर आधारित ‘ईदगाह’ कहानी प्रेमचंद की सबसे उत्कृष्ट रचना मानी जाती है। इस कहानी में मानवीय संवेदना और जीवनगत मूल्यों के तथ्यों को जोड़ा गया है। कुल मिलाकर यह कहना ग़लत नहीं होगा कि कहानीकार ने आर्थिक विषमता के साथ-साथ जीवन के आधारभूत यथार्थ को हामिद के माध्यम से सहज भाषा से पाठक के दिलो-दिमाग पर अंकित करने की अद्वितीय कोशिश की है।

मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘पूस की रात’

कहानी ‘पूस की रात’ में हल्कू के माध्यम से मुंशी प्रेमचंद ने भारतीय किसान की लाचारी का यथार्थ चित्रण किया है। उत्तर भारत के किसी एक गाँव में हल्कू नामक एक ग़रीब किसान अपनी पत्नी के साथ रहता था। किसी की जमीन पर खेती करता था, लेकिन आमदनी कुछ भी नहीं थी। उसकी पत्नी उससे खेती करना छोड़कर और कहीं मज़दूरी करने के लिए कहती है। एक बार हल्कू अपनी पत्नी (मुन्नी) से तीन रुपए माँगता है, लेकिन पत्नी पैसे देने से इनकार कर देती है और कहती है कि ये तीन रुपए जाड़े की रातों से बचने के लिए, कंबल ख़रीदने के लिए जमा करके रखे हैं।

पूस का महीना आया। अँधेरी रात थी और कड़ाके की सर्दी थी। हल्कू अपने खेत के एक किनारे ऊख के पत्तों की छतरी के नीचे बाँस के खटोले पर पड़ा था। अपनी पुरानी चादर ओढ़े ठिठुर रहा था। खाट के नीचे उसका पालतू कुत्ता जबरा पड़ा कूँ-कूँ कर रहा था, वो भी ठण्ड से ठिठुर रहा था। हल्कू के खेत के समीप ही आमों का बाग था, उसने बाग में पत्तियों को इकट्ठा किया और पास के अरहर के खेत में जाकर कई पौधे उखाड़ लाया, उसे सुलगाया, फिर हल्कू अपने कुत्ते के साथ आग तापने लगा। उसी समय नज़दीक में आहट पाकर जबरा भौंकने लगा। कई जानवरों का एक झुण्ड (नील गाय) खेत में आया था। उनके कूदने-दौड़ने की आवाज़ें कान में आ रही थीं। फिर ऐसा मालूम हुआ कि वे खेत में चर रही हैं। जबरा तो भौंकता रहा, लेकिन हल्कू का उठने का मन नहीं हुआ।

जबरा पूरी रात भौंकता रहा और नील गायें खेत का सफ़ाया करती रहीं। लेकिन हल्कू गर्म राख के पास शांत बैठा हुआ था और धीरे-धीरे चादर ओढ़कर सो गया। उधर, नील गायों ने रात भर खेत चरकर सारी फ़सल को बर्बाद कर दी। सुबह उसकी नींद खुली। उसकी पत्नी मुन्नी ने उससे कहा… तुम यहाँ आकर रम गए और उधर सारा खेत सत्यानाश हो गया। मुन्नी ने उदास होकर कहा- अब मजूरी करके पेट पालना पड़ेगा। हल्कू ने कहा- ‘रात की ठण्ड में यहाँ सोना तो नहीं पड़ेगा।’ उसने यह बात बड़ी प्रसन्नता से कही, उसे ऐसी खेती करने से मजूरी करना बहुत हद तक आरामदायक लगा। मजूरी करने में झंझट तो नहीं हैं।

कहानी की विशेषता: मुंशी प्रेमचंद की इस कहानी में कृषक जीवन की दुर्बलता और सबलता की झाँकी को स्पष्ट दिखाया गया है। कृषक यानी किसान एक दृष्टि से सबल होता है, वो कड़ी मेहनत करता है, एक-एक पैसा-पैसा काँट-छाँटकर बचाकर रखता है। फिर हर प्रकार के कष्ट सहन करता है। जाड़े में ठिठुरता है, ज़मींदार की गाली सुनता है, फिर भी काम करता जाता है, यही उसकी सबलता है।

मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘नशा’

मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘नशा’ ईश्वरी एवं बीर नामक दो युवकों की कहानी है। ईश्वरी एक धनवान ज़मींदार का बेटा है, और बीर एक निर्धन क्लर्क का। बीर ज़मींदारों का तीव्र आलोचक है, उनके विलास को वह अनैतिक बताता है। इस विषय पर उसका अक्सर ईश्वरी से वाद-विवाद हो जाता है। यूँ तो ईश्वरी के मिजाज़ में ज़मींदारों के बहुत सारे तेवर हैं, पर बीर के प्रति उसका व्यवहार मित्रों वाला है। बीर द्वारा की गई ज़मींदारों की आलोचना पर भी वह कभी उत्तेजित नहीं होता। एक बार छुट्टियों में ईश्वरी, बीर को अपने साथ अपने घर ले जाता है। वह बीर का परिचय एक ऐसे धनवान ज़मींदार के रूप में कराता है जो कि महात्मा गाँधी का भक्त होने के कारण धनवान होते हुए भी निर्धन सा जीवन व्यतीत करता है। इस परिचय से बीर की धाक जम जाती है; लोग उसे ‘गाँधीजी वाले कुँवर साहब’ के नाम से जानने लगते हैं। ईश्वरी के साथ-साथ बीर का भी भरपूर स्वागत-सत्कार किया जाता है।

ईश्वरी तो ज़मींदारी विलास का अभयस्त था, पर बीर को यह सम्मान पहली बार मिल रहा होता है। यद्यपि वह जानता है कि ईश्वरी ने उसका झूठा परिचय कराया है, पर स्वागत सत्कार में अन्धा होकर वह अपना आपा खो बैठता है। उसे नशा हो जाता है। पहले जिन बातों के लिए वह ज़मींदारों की निन्दा किया करता था – जैसे नौकरों से अपने पैर दबवाना, नौकरों से सारे काम करवाना – अब वह स्वयं भी उन आदतों में लिप्त होने लगता है। ईश्वरी चाहे थोड़ा काम अपने आप कर भी ले, पर ‘गाँधीजी वाले कुँवर साहब’ नौकरों का काम भला अपने हाथों से कैसे करते? नौकरों से ज़रा भी भूल हो जाती तो कुँवर साहब उन पर आग-बबूले हो उठते।

झूठ-मूठ के कुँवर साहब का नशा टूटते देर नहीं लगती। ईश्वरी के घर से लौटते समय रेलगाड़ी खचाखच भरी हुई होती है। अब नए-नवेले कुँवर साहब को ऐसी असुविधा कैसे बर्दाश्त होती? क्रोध में आकर वह अपने पास बैठे एक यात्री की पिटाई कर देते हैं, जिससे पूरे डब्बे में हंगामा मच जाता है। खिजा हुआ ईश्वरी, बीर को फटकार कर कहता है, “व्हाट ऐन ईडियट यू आर, बीर!”

कहानी की विशेषता: मुंशी जी की यह कहानी मनोरंजक तो है ही, इसमें समाज एवं मानव व्यवहार की वास्तविकताओं का भी भरपूर चित्रण है। जिसके पास (धन, सत्ता, संसाधन, सुविधा) हैं, वह उनका उपभोग अवश्य करता है। जिसके पास यह नहीं है, वह इस उपभोग की निन्दा करता है, उसको अनैतिक बताता है,और अधिकतर वह निन्दा इसीलिए करता है क्योंकि उसको वह सुविधा उपलब्ध नहीं है। यदि किसी कारण से वह सुविधा उपलब्ध हो जाती है, तो बीर की तरह निन्दक भी उसके उपभोग में पीछे नहीं रहता।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

4 kg सोना लेकर रमजान में हत्या: काला जादू करने वाली ‘जिन्न’ शमीमा के चक्कर में मरा NRI गफूर, ‘सोना डबल करो’ स्कीम में...

केरल के कासरगोड में खुद को जिन्न बताने वाली शमीमा ने 4 किलो सोने के लिए एक NRI व्यापारी की हत्या कर दी। उसके लगभग 2 साल बाद पकड़ा गया है।

‘उस स्कूल के नाम में इंदिरा, मैं नहीं जाऊँगा’: महाराष्ट्र के नए सीएम ने 1975 में ही चालू किया था ‘विद्रोह’, जानें देवेन्द्र फडणवीस...

देवेन्द्र फडणवीस ने अपने पिता की गिरफ्तारी से क्रुद्ध होकर 'इंदिरा' कॉन्वेंट स्कूल में जाने से मना किया था। उनके पिता जनसंघ के नेता थे।
- विज्ञापन -