एक हैं अशोक गहलोत और एक थे हरिदेव जोशी। इंदिरा के जमाने के दिग्गज कॉन्ग्रेसी रहे जोशी को पार्टी में उनके बेटे राजीव गॉंधी के जमाने में ठिकाने लगाया गया था। इसके पीछे गहलोत का बड़ा हाथ बताया जाता है। जोशी के पतन के बाद ही राजस्थान कॉन्ग्रेस की सियासत में गहलोत का सूरज चढ़ता गया। आजकल वे सचिन पायलट नामक चुनौती को ठिकाने लगाने के जोड़-तोड़ में लगे हैं।
हरिदेव जोशी तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे। पार्टी में उनकी तूती बोलती थी। जब वे 1985 में दूसरी बार सीएम बने तब तक कॉन्ग्रेस पर राजीव पूरी तरह काबिज हो चुके थे। देश के प्रधानमंत्री थे। उनकी कैबिनेट में गहलोत भी थे। राजीव राजस्थान पर भी अपनी पूरी पकड़ चाहते थे।
जोशी के रहते यह संभव नहीं दिख रहा था। लिहाजा उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष बनाकर गहलोत को दिल्ली से जयपुर भेजा। जोशी ने इस फैसले का विरोध तो नहीं किया, लेकिन पार्टी की बैठकों से खुद भी दूर रहते थे और उनके कैबिनेट सहयोगी भी। इसके बाद की कहानी पर आने से पहले यह जानते हैं कि जोशी राजस्थान की सियासत में शीर्ष तक कैसे पहुॅंचे थे।
हरिदेव जोशी राजस्थान स्थित बँसवाड़ा के रहने वाले थे। बचपन में उनका हाथ टूट गया तो बाँस की पट्टियों से ही गाँववालों ने इसे सीधा करने की कोशिश की लेकिन बात बिगड़ गई। डॉक्टर के पास गए तो पता चला कि हाथ बेकार हो चुका है और उसे काटना पड़ेगा। बावजूद इसके जोशी ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। गिरफ्तार भी हुए।
कॉन्ग्रेस में उनकी सक्रियता को देखते हुए उन्हें प्रदेश महासचिव का पद दिया गया। वे पहली बार अक्टूबर 1973 में मुख्यमंत्री बने थे। पहली बार उनका कार्यकाल करीब साढ़े तीन वर्षों का रहा। मार्च 1985 में दूसरी बार सीएम बने तो कार्यकाल करीब तीन साल ही चला। तीसरा और आखिरी कार्यकाल चार महीने का रहा था।
असल में इसके बाद हुए विधानसभा चुनावों मे कॉन्ग्रेस को बुरी हार मिली थी और जोशी का पद चला गया। हालॉंकि उनका राजनीतिक अस्त जनवरी 1988 में ही हो गया था जब उन्हें राजीव ने इस्तीफा देने को मजबूर कर दिया। वैसे भी लगातार 10 विधानसभा चुनाव जीत कर जननेता की छवि बनाने वाले जोशी कभी भी गॉंधी परिवार की पहली पसंद नहीं रहे थे।
@RajCMO जैसी करनी वैसी भरनी। इतिहास अपने आपको दोहरा रहा है। 1987, 1989 में जो अशोक गहलोत ने तत्कालीन मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी के साथ जो किया वही आज सचिन पायलट उनके साथ कर रहे हैं। तब राजीव गांधी गहलोत के साथ था अभी राहुल गांधी सचिन पायलट के साथ है। @News18India @SachinPilot pic.twitter.com/Xaouw2CVR5
— Dharmendra_ Vaishnav (@Dharmen73253917) July 13, 2020
जनवरी 1988 में जब जोशी से इस्तीफा लिया गया तब गहलोत ही पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष थे। जोशी के इस्तीफे से जुड़ी एक दिलचस्प घटना का विवरण राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार श्याम आचार्य ने अपनी किताब तेरा तुझको अर्पण में किया है।
उन्होंने लिखा है कि राजीव गॉंधी ने दिल्ली के बाहर किसी शांत जगह पर केंद्रीय कैबिनेट की बैठक करने का फैसला किया। जगह चुनी गई राजस्थान की सरिस्का। लेकिन उस समय राजस्थान में भयंकर अकाल पड़ा था। इसकी वजह से इस फैसले की आलोचना होने लगी। इसे देख राजीव ने बैठक की जगह तो नहीं बदली, लेकिन जोशी तक सादगी बरतने का संदेश भिजवाया।
कहते हैं कि राजीव खुद गाड़ी ड्राइव कर बैठक स्थल तक जा रहे थे। वे जैसे ही सरिस्का से ठीक पहले चौराहे पर पहुॅंचे वहॉं तैनात कॉन्स्टेबल ने बाईं तरफ मुड़ने का इशारा किया। राजीव ने गाड़ी मोड़ी तो रास्ता एक मैदान में जाकर खत्म हो गया।
मैदान में सरकारी गाड़ियों की कतार लगी थी। वे समझ गए कि उनके निर्देशों का पालन नहीं हुआ है। आचार्य ने लिखा है कि राजीव ने हरिदेव से पूछा- जोशी जी आपने यह क्या तमाश कर रखा है? हू गेव द इंस्ट्रक्शन (किसने यह आदेश दिया)? जोशी ने तत्कालीन डीजीपी पीसी मिश्रा को आगे कर दिया और उन्होंने बताया कि दिल्ली से ही इसके निर्देश आए थे। राजीव ने कहा- हू गेव इंस्ट्रक्शन, मैंने नहीं दिया। यह कह वे आगे बढ़ गए। जोशी का माला तक नहीं पहना। इस घटना के जो चश्मदीद थे उनमें अशोक गहलोत भी शामिल थे।
जोशी इस घटना के बाद खुद को बेहद अपमानित महसूस कर रहे थे। उन्होंने खुद को कमरे में बंद कर लिया। हालॉंकि बाद में राजीव ने उन्हें मिलने के लिए बुलाया भी। लेकिन, उनकी विदाई की पटकथा तैयार हो चुकी थी। आचार्य के अनुसार उस समय राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा जोर-शोर से थी कि गहलोत ने ही उस कॉन्स्टेबल से राजीव की गाड़ी को मैदान की ओर मुड़ जाने का इशारा करने के लिए कहा था।
आचार्य ने उस घटना का जो विवरण लिखा है उससे पार्टी नेताओं को लेकर गॉंधी परिवार की सोच का भी पता चलता है। जब हरिदेव जोशी कोप भवन में गए शीर्षक से लिखी कथा में बताया गया है कि इस घटना के बाद निकट सहयोगियों ने जोशी को सलाह दी कि आज जो कुछ हुआ है उसके बाद उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिए। लेकिन, जोशी ने जवाब दिया, “बंधु नेहरू परिवार में सब को गुस्सा आता है। इंदिरा जी को आता था। कोई खास बात नहीं है। सब ठीक हो जाएगा।” लेकिन उसके बाद जोशी के लिए कुछ भी ठीक नहीं हुआ। 20 जनवरी 1988 को उनसे इस्तीफा ले लिया गया।