राजस्थान की कॉन्ग्रेस सरकार के भविष्य को लेकर तरह-तरह के कयास लग रहे हैं। इसका कारण मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच की दूरी बताई जाती है। मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया के कॉन्ग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल होने और उनके समर्थक विधायकों के इस्तीफे से इन अटकलों को हवा भी मिली है। जिस तरह मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव के वक्त कॉन्ग्रेस ने सिंधिया का चेहरा आगे कर रखा था, वैसे ही राजस्थान में पायलट चेहरा थे। लेकिन, नतीजों के बाद दोनों प्रदेशों में युवा नेतृत्व को निराशा ही हाथ लगी थी।
ऐसा नहीं है कि गहलोत और पायलट में अचानक से दूरियॉं बढ़ी है। सरकार गठन के बाद से ही पायलट की उपेक्षा की जा रही है। आरटीआई से सामने आई एक जानकारी से भी इसकी पुष्टि होती है। जानकारी के अनुसार, एक साल का कार्यकाल पूरा करने पर गहलोत सरकार ने करोड़ों रुपए का विज्ञापन दिया था। मगर, इन विज्ञापनों में सचिन पायलट को जगह नहीं दी गई थी। इसमें सिर्फ़ गहलोत नजर आ रहे थे। सूचना का अधिकार कानून (RTI) के तहत दाखिल आवेदन के जवाब में प्रदेश के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग ने बताया कि दिसंबर 2018 से नवंबर से 2019 के बीच 25.08 करोड़ रुपए का विज्ञापन दिया गया। इन विज्ञापनों में सिर्फ CM अशोक गहलोत की तस्वीरें थीं। डिप्टी सीएम सचिन पायलट की तस्वीर कहीं नहीं थी।
इस RTI को दाखिल करने वाले का नाम वकील सहीराम गोदारा है। उन्होंने अपनी अर्जी में राजस्थान के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग से प्रदेश सरकार द्वारा दिसंबर 2018 से नवंबर 2019 के बीच विज्ञापनों पर किए गए खर्च का ब्यौरा माँगा था। साथ ही उन्होंने विज्ञापनों में सीएम गहलोत और सचिन पायलट की तस्वीरों की जानकारी भी माँगी थी।
इसी आरटीआई के जवाब में जनसंपर्क विभाग ने बताया कि विभिन्न राष्ट्रीय और क्षेत्रीय अख़बारों में इस दौरान कुल 62 विज्ञापन दिए गए थे। इनमें सिर्फ गहलोत सरकार की तस्वीरें होने की जानकारी दी गई। राजस्थान सरकार द्वारा दिए गए विज्ञापनों में डिप्टी सीएम सचिन पायलट का स्थान नहीं दिया गया। गहलोत के अलावा स्थान, तस्वीर की साइज और मौकों (जिन अवसरों पर विज्ञापन दिया गया) की जानकारी दी गई है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, जब इस संबंध में गहलोत से पूछा गया तो उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का हवाला दिया। उन्होंने कहा, “सरकार सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के अनुसार काम करती है। शीर्ष अदालत ने पहली बार विज्ञापनों में मुख्यमंत्रियों की तस्वीर लगाने पर भी रोक लगा दी थी। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को संशोधित करते हुए विज्ञापनों में सीएम का फोटो इस्तेमाल करने की अनुमति दे दी थी। मुख्यमंत्री यह थोड़े ही कहता है कि सिर्फ मेरी ही फोटो लगाओ किसी और की नहीं।”
इस मामले पर सचिन पायलट की ओर से कोई बयान नहीं आया है। लेकिन प्रदेश में लगातार होती उपेक्षा को देखकर कयास लगाए जा रहे हैं कि वे देर-सबेर ज्योतिरादित्य सिंधिया के रास्ते पर आगे बढ़ सकते हैं। कॉन्ग्रेस विधायक पीआर मीणा ने भी अपने बयान से इन अटकलों को हवा दी है। उन्होंने गुरुवार को विधानसभा पहुँचने के बाद कहा कि राजस्थान की स्थिति भी ज्यादा बेहतर नहीं है। मंत्री अपने को राजा समझ रहे है। विधायकों की कोई सुन नहीं रहा।
मीणा ने प्रदेश सरकार की कार्यपद्धति पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि प्राकृतिक आपदा से किसानों की फसलें बर्बाद हो गई हैं। इसके बाद भी पीड़ित किसानों का दर्द नहीं सुना जा रहा है। उन्होंने कहा कि मंत्रियों को टाइट करने की जरूरत है। साथ ही उन दो-तीन विधायकों को भी जो खुद को मुख्यमंत्री से भी ऊपर समझ रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस हालत से ज्यादातर विधायक नाराज हैं।