Friday, March 29, 2024
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‘पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर’: कंगना को शिवसेना ने इशारों में धमकाया, आठवले को बताया आंबेडकर का नकली अनुयायी

इस लेख में बड़ी चालाकी से कंगना रनौत के दफ्तर तोड़े जाने या फिर संजय राउत द्वारा उनके लिए 'हरामखोर' जैसे आपत्तिजनक शब्द का इस्तेमाल किए जाने को लेकर कुछ नहीं कहा गया और उलटा कंगना रनौत की तुलना दुर्योधन और मुंबई की तुलना द्रौपदी से कर दी गई।

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की पार्टी शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ में एक बार फिर से बिना नाम लिए कंगना रनौत पर निशाना साधा गया है। ‘सामना’ में कपूर, रौशन, दत्त और शांताराम जैसे खानदानों की बात कर ऐसा दिखाया गया है जैसे मुंबई चंद मुट्ठी भर लोगों की बपौती है और जैसे संगीत में घराना होता है, ऐसे ही यहाँ भी होता है। नेपोटिज्म का बचाव करने के अलावा शिवसेना की ‘सामना’ में लिखा गया है कि यहाँ औरंगजेब और अफजल खान को सम्मान देते हुए उनकी कब्रें बनाई गईं।

शिवसेना की ‘सामना’ में प्रकाशित संपादकीय में राजेश खन्ना, धर्मेंद्र और जीतेन्द्र के आउटसाइडर होने और उनके बेटे-बेटियों के यहाँ स्थापित होने का उदाहरण देते हुए कहा गया है कि इनमें से हर किसी ने मुंबई को अपनी कर्मभूमि माना और मुंबई को बनाने-सँवारने में योगदान दिया। साथ ही कंगना रनौत का नाम लिए बिना इशारों में लिखा गया है कि पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर नहीं किया या खुद कांच के घर में रहकर दूसरों के घर पर पत्थर नहीं फेंका।

साथ ही कंगना रनौत द्वारा मुंबई को POK कहे जाने की बात करते हुए शिवसेना के ‘सामना’ में दावा किया गया कि मुंबई के हिस्से अक्सर ये विवाद आता रहता है और जिसने इसे शुरू किया, उसे ये विवाद मुबारक। इस बयान की तुलना महाभारत के एक प्रसंग से करते हुए लिखा गया कि कौरव जब दरबार में द्रौपदी का चीरहरण कर रहे थे, उस समय सारे पांडव अपना सिर झुकाए बैठे थे। साथ ही पूछा कि राष्ट्रीय एकता का ये तुनतुना हमेशा मुंबई-महाराष्ट्र के बारे में ही क्यों बजाया जाता है?

इस लेख में बड़ी चालाकी से कंगना रनौत के दफ्तर तोड़े जाने या फिर संजय राउत द्वारा उनके लिए ‘हरामखोर’ जैसे आपत्तिजनक शब्द का इस्तेमाल किए जाने को लेकर कुछ नहीं कहा गया और उलटा कंगना की तुलना दुर्योधन और मुंबई की तुलना द्रौपदी से कर दी गई। अगर वे थोड़ा और आगे बढ़ते तो उद्धव ठाकरे को श्रीकृष्ण भी लिखा जा सकता था। साथ ही इसमें मराठी दलित नेता रामदास आठवले पर भी निशाना साधा गया।

ज्ञात हो कि ‘रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया’ के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले कंगना रनौत से मिलने उनके घर पहुँचे थे और साथ ही उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने एयरपोर्ट पर पहुँच कर भी शिवसेना कार्यकर्ताओं से लोहा लिया था और कंगना रनौत का समर्थन किया था। इससे भड़की शिवसेना के गुस्से को ‘सामना’ के इस संपादकीय से समझा जा सकता है, जिसमें उन पर महाराष्ट्र-द्वेषियों के साथ कुर्सी गर्म कर बाबा साहब आंबेडकर का अपमान करने का आरोप लगाया गया है। 

इसमें लिखा गया है कि जिनका डॉ. आंबेडकर के विचारों से कौड़ी का भी लेना-देना नहीं है, ऐसे दिखावटी अनुयायी हवाई अड्डे पर महाराष्ट्र-द्वेषियों का स्वागत करने के लिए नीले रंग का झंडा लेकर हंगामा करते हैं। साथ ही बॉलीवुड को लेकर याद दिलाया गया है कि सिने जगत की नींव दादासाहेब फालके नामक एक मराठी माणुस ने ही रखी थी। ‘सामना’ के इस संपादकीय में इस विवाद को लेकर आगे लिखा है:

“किसी का नसीब चमक जाने पर इसी मुंबई के जुहू, मलबार हिल और पाली हिल जैसे क्षेत्रों में महल खड़ा करते हैं। इतना तो है कि ये लोग हमेशा मुंबई-महाराष्ट्र के प्रति कृतज्ञ ही रहे। मुंबई की माटी से उन्होंने कभी बेईमानी नहीं की। दादासाहेब फालके को कभी ‘भारत रत्न’ के खिताब से सम्मानित नहीं किया गया। लेकिन उनके द्वारा बनाई गई माया नगरी के कई लोगों को ‘भारत रत्न’ ही नहीं, बल्कि ‘निशान-ए-पाकिस्तान’ तक का खिताब मिला। मधुबाला, मीना कुमारी, दिलीप कुमार और संजय खान जैसे दिग्गज कलाकारों ने पर्दे पर अपना ‘हिंदू’ नाम ही रखा क्योंकि उस समय यहाँ धर्म नहीं घुसा था।”

दादासाहब फाल्के को ‘मराठी मानुष’ बता कर इसे भुनाते हुए लिखा गया है कि मुंबई को कम आँकना मतलब खुद-ही-खुद के लिए गड्ढा खोदने जैसा है और महाराष्ट्र संतों-महात्माओं और क्रांतिकारों की भूमि है। ज्ञात हो कि कंगना प्रकरण के बाद बॉलीवुड में खामोशी छाई हुई है, जबकि रिया की गिरफ्तारी के बाद उसके समर्थन में ये लोग मुखर थे। सामना के संपादकीय में अप्रत्यक्ष रूप से कहा गया है कि जब यहाँ के स्थापित बड़े-बड़े नाम अपना मुँह नहीं खोल पाए तो कंगना क्या चीज है?

बता दें कि कंगना रनौत के ऑफिस में की गई तोड़फोड़ के ठीक अगली सुबह शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ अखबार की बड़ी खबर का शीर्षक था– ‘उखाड़ दिया।’ शिवसेना ने इस शीर्षक के साथ ही स्पष्ट कर दिया था कि कंगना रनौत के टि्वर पर शिवसेना को दी गई चुनौती का ही नतीजा था कि उसकी सरकार ने अभिनेत्री का ऑफिस तोड़ डाला। दिलचस्प तो यह देखना है कि कंगना के खिलाफ इस खुली गुंडागर्दी के दौरान भी देश के वाम-उदारवादी वर्ग एकदम मौन हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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