ख़ुद को किसान नेता बताने वाले योगेंद्र यादव ने सीएए और एनआरसी को लेकर एक बार फिर से झूठ फैलाया है। ये कथित बुद्धिजीवी जनता को बरगलाने में इतना व्यस्त हो गए हैं कि अब वो एक ही झूठ हज़ार बार बोल कर उसे जनता के मन में सच की तरह बिठाने में लग गए हैं। ‘स्वराज इंडिया’ के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने पाँच उँगलियों पर गिन कर सीएए और एनआरसी के ख़िलाफ़ जनता को भड़काया। योगेंद्र यादव ने कहा कि अप्रैल के महीने में कोई सरकारी कर्मचारी या स्कूली शिक्षक आएँगे, जो नाम, जन्मस्थान माता-पिता के जन्मस्थान, आधार नंबर, ड्राइविंग लाइसेंस वगैरह जैसी जानकारी माँगेंगे।
इस दौरान योगेंद्र यादव ने पहला झूठ तो ये बोला कि एनपीआर के दौरान किसी से उसके माता-पिता के जन्मस्थान के बारे में जानकारी माँगी जाएगी। ऐसा बिलकुल भी नहीं है। एनपीआर के द्वारा लोगों का एक ‘आइडेंटिटी डेटाबेस’ तैयार किया जाएगा। ख़बरों की मानें तो इसमें ये जानकारियाँ देनी होंगी- नाम, जन्मदिन, जन्मस्थान, माता-पिता का नाम, पतिपत्नी का नाम (शादीशुदा के लिए), पता, पेशा और शैक्षिक योग्यता। इनमें माता-पिता के जन्मस्थान संबंधी कोई जानकारी है ही नहीं।
इससे साफ़ पता चलता है कि योगेंद्र यादव जनता को भड़का कर जनगणना की रूटीन प्रक्रिया को बाधित करना चाह रहे हैं। ऐसे ही प्रयासों के कारण ‘नेशनल इकोनॉमिक सेन्सस’ के लिए डेटा इकठ्ठा कर रही राजस्थान के कोटा में एक महिला नज़ीरा बानो पर हमला कर दिया गया। जब उन्होंने भीड़ को बताया कि वो भी मुस्लिम हैं, तब जाकर लोगों ने उन्हें छोड़ा। नजीरा का मोबाइल फोन छीन लिया गया और सारे डेटा भी डिलीट कर दिए गए। इसी तरह पश्चिम बंगाल के बीरभूम में गूगल और टाटा के ‘इंटरनेट साथी’ के तहत महिलाओं के साक्षरता का डाटा इकठ्ठा कर रहीं चुमकी खातून का घर जला डाला गया। महिला को परिवार सहित पुलिस थाने में शरण लेनी पड़ी।
इन दोनों घटनाओं का शिकार मुस्लिम महिलाएँ बनीं। देश के अलग-अलग इलाक़ों की मुस्लिम महिलाएँ। एक तो मुस्लिमों में साक्षरता दर कम है, ऊपर से उनकी महिलाओं के मामले में ये आँकड़ा और भी भयावह है। और जब वो सरकार व प्राइवेट कंपनियों के लिए जनहित का काम कर रही हैं, तो उन पर हमला होता है। क्यों? क्योंकि लोगों ने समझा कि वो एनआरसी के लिए डेटा इकठ्ठा कर रही हैं। लोगों को तथाकथित बुद्धिजीवियों द्वारा इस कदर भड़का दिया है कि इस तरह की घटनाएँ हो रही हैं। फिर तो जन-कल्याणकारी योजनाओं के सारे सर्वे रुक जाएँगे और अराजकता का माहौल फ़ैल जाएगा।
यही तो ये बुद्धिजीवी चाहते हैं। योगेंद्र यादव ने भी यूँ ही जनता को भड़काने का काम किया है, ताकि जनगणना और एनपीआर जैसी रूटीन प्रक्रियाएँ बंद हो जाएँ, बाधित हों। और एनपीआर के लिए भाजपा तो दोषी है ही नहीं। इसे एनआरसी से कॉन्ग्रेस ने जोड़ा था। भाजपा सरकार ने तो हटाया है इसे एनआरसी से। सरकार कह चुकी है कि इसका एनआरसी से कोई जुड़ाव नहीं। एनपीआर के तहत जुलाई 2012 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल रजिस्टर होने वाली पहली नागरिक बनी थीं। तब यूपीए-2 की सरकार थी। उस समय इन बुद्धिजीवियों ने हमला क्यों नहीं किया सरकार पर?
योगेंद्र यादव ने वीडियो में आगे कहा कि जब डेटा सरकारी दफ्तरों में पहुँचेगा तो उनमें से कुछ लोगों के आगे ‘चुपचाप’ सरकारी कर्मचारी ‘D’ लगा देंगे, यानी ‘Doubtful’ या संदेहास्पद, फिर इसके बाद उन्हें नोटिस जाएगा कि की साबित करें कि वो भारत के नागरिक हैं। फिर योगेंद्र यादव कहते हैं कि उन्हें भारत की नागरिकता साबित करने के लिए राशन कार्ड, आधार कार्ड कुछ भी दिखाने से काम नहीं चलेगा, उनसे सरकारी प्रमाण-पत्र माँगा जाएगा। इसके बाद वो असम का उदाहरण गिनाते हैं, जहाँ वोटर लिस्ट में नाम होने के बावजूद लोगों को भारत का नागरिक नहीं माना गया। यादव ने कहा कि 30 साल पहले के सरकारी प्रमाण-पत्र और संपत्ति का प्रमाण-पत्र जुटाना होगा। फिर वो पूछते हैं कि ग़रीब कहाँ से ये सब लेकर आएगा?
यहाँ योगेंद्र यादव ने एक साथ ताबड़तोड़ कई झूठ बोले। असम में एनआरसी लागू हुई है, वहाँ डाक्यूमेंट्स की दो सूचियाँ बनाई गई हैं। दोनों में से एक-एक ही दिखाने हैं। पहली सूची में 14 डॉक्युमेंट्स में से कोई एक और दूसरी सूची में 8 डाक्यूमेंट्स में से कोई एक। ये डाक्यूमेंट्स मार्च 1971 के कट-ऑफ डेट के पहले के होने चाहिए। ऐसा इसीलिए, क्योंकि असम एकॉर्ड में कॉन्ग्रेस सरकार के दौरान ही ये तारीख दी गई थी। पूरे भारत के लिए एनआरसी लागू ही नहीं हुई है और कोई नियम-क़ानून आया ही नहीं है इस सम्बन्ध में, फिर योगेंद्र यादव जैसे लोग पूरी प्रक्रिया मालूम होने के दावे कैसे कर रहे हैं?
योगेंद्र यादव ने कहा कि कोई सरकारी कर्मचारी ‘चुपचाप’ नामों को संदिग्ध वाली सूची में डाल देगा। एनपीआर के 2003 के नियमों के अनुसार, ‘संदिग्ध नागरिक’ का प्रावधान तो है लेकिन इस बार ऐसा कुछ करने के बारे में सरकार ने कोई नोटिफिकेशन जारी नहीं किया है। इसीलिए बिना प्रक्रिया जाने, योगेंद्र यादव लोगों को भड़काने में लगे हुए हैं। असम के मामले में पूरी प्रक्रिया काफी अच्छे तरीके से परिभाषित की गई है और उसी अनुसार काम हो रहा है। सरकारी प्रक्रिया ‘चुपचाप’ पूरी नहीं की जाती, हर चीज के पीछे कारण बताए जाते हैं और पूर्व-निर्धारित नियम के अनुसार ही काम होता है।
इसके बाद योगेंद्र यादव का वही पुराना झूठ चालू हो जाता है- मुस्लिमों को नागरिक नहीं माना जाएगा क्योंकि यहाँ से सीएए का खेल शुरू हो जाएगा और हिन्दू बच जाएँगे। सरकार कई बार कह चुकी है कि सीएए और एनआरसी के बीच कोई सम्बन्ध नहीं है, फिर भी लगातार झूठ पर झूठ बोला जा रहा है। सीएए विदेशी अल्पसंख्यकों के लिए है, जो भारत में शरणार्थी बन कर वर्षों से रह रहे हैं और जिन पर मजहब के आधार पर अत्याचार किया गया है। जबकि एनआरसी अभी पूरे देश के लिए आई ही नहीं है। फिर हंगामा क्यों? क्या देश में होने वाली हर रूटीन सरकारी प्रक्रिया को भी एनआरसी से जोड़ा जाएगा।
दरअसल, योगेंद्र यादव सरीखे लोग विकास नहीं होने देना चाहते हैं। ‘उज्ज्वला’ के तहत हर घर में गैस पहुँचने और ‘सौभाग्य’ के द्वारा हर घर में बिजली पहुँचाए जाने से ये लोग मोदी सरकार से खफा हैं। ऐसी कई योजनाएँ हैं, जिनका सीधा लाभ जनता को मिल रहा है। साक्षरता से लेकर बच्चों के पोषण-कुपोषण तक, हज़ार तरह के सर्वे सरकार कराती रहती है और फिर उसी हिसाब से योजनाओं की रूपरेखा तैयार की जाती है। इसमें हजारों कर्मचारी, शिक्षक और आंगनवाड़ी कार्यकर्त्ता लगे रहते हैं। यादव जैसे लोगों के भड़काने के कारण कल को अगर इन लोगों पर एक भी हमले हों तो इन बुद्धिजीवियों पर कार्रवाई होनी चाहिए।