Sunday, April 28, 2024
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CAA के विरोध में वामपंथी-इस्लामी कट्टरपंथी नेता, जामिया में फिर से आग वाला प्रदर्शन: ‘मुस्लिमों को दोयम दर्जे की नागरिकता’ पर भड़काने का खेल

जामिया मिलिया इस्लामिया में भी इस कानून की नोटिफिकेशन आने के बाद विरोध होना शुरू हुआ है। एक वीडियो सामने आई है जिसमें कुछ छात्र पोस्टर लेकर खड़े हैं और उसमें सीएए लिखकर उसमें आग लगा रहे हैं।

देश में नागरिकता संशोधन कानून लागू होने के बाद अब इस्लामी कट्टरपंथियों और लेफ्ट लिबरलों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है। मोदी सरकार के इस फैसले के खिलाफ विपक्षी नेताओं का कहना है कि ये विभाजनकारी कानून है और गोडसे की सोच से प्रेरित है। इससे मुस्लिमों को दोयम दर्जे का नागरिक माना जाएगा। वहीं जामिया इस्लामिया जैसे संस्थानों में इसका विरोध भी देखने को मिला है। केरल और तमिलनाडु सरकार ने भी इस भी इसका विरोध जताया है।

जामिया मिलिया इस्लामिया में सीएए का विरोध

मकतूब मीडिया नाम के एक्स अकॉउंट से एक वीडियो शेयर की गई है। इस वीडियो में दिखाया गया है कि कैसे जब सरकार ने सीएए के लिए नोटिफिकेशन जारी किया, उसके बाद जामिया मिलिया इस्लामिया में एमएसएफ और एनएसयूआई ने मिलकर देर रात वहाँ प्रदर्शन किया। इस दौरान उनके हाथ में पोस्टर भी थे जिसमें सीएए लिखा हुआ था और उसमें आग लगाई जा रही थी।

तमिलनाडु मुख्यमंत्री ने किया विरोध

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने इसे केंद्र का विभाजनकारी एजेंडा बताया। उन्होंने कहा कि सीएए को हथियार बनाया जा रहा है। मुस्लिमों और श्रीलंकाई तमिलों को धोखा देकर विभाजन के बीज बोए गए। DMK के कड़े विरोध के बावजूद AIDMK की मदद से सीएए पास हुआ। लोगों ने विरोध किया तो इसे ठंडे बस्ते में रख दिया गया। लेकिन जैसे जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं पीएम मोदी राजनीतिक लाभ के लिए धार्मिक भावनाओं का इस्तेमाल चाहते हैं। लेकिन भारत के लोग इस विभाजनकारी नागरिकता संशोधन अधिनियम के लिए उनको कभी माफ नहीं करेंगे और उनको एक कड़ा सबक सिखाएँगे।

AIMIM चीफ और प्रवक्ता क्रोनोलॉजी समझाने उतरे

ऐसे ही AIMIM के चीफ असदुद्दीन ओवैसी लिखते हैं, “आप क्रोनोलॉजी समझिए। पहले चुनाव सत्र आएगा फिर सीएए नियम आएँगे। हमारा सीएए के लिए विरोध आज भी वही है। ये विभाजनकारी है और गोडसे की सोच पर आधारित है। ये लोग मुस्लिमों को दोयम दर्जे की नागरिकता देना चाहते हैं।”

ओवैसी आगे कहते हैं, “आप सताए गए किसी भी व्यक्ति को शरण दें लेकिन नागरिकता धर्म या राष्ट्रीयता पर आधारित नहीं होनी चाहिए। सरकार को बताना चाहिए कि उसने इन नियमों को पाँच साल तक क्यों लंबित रखा और अब इसे क्यों लागू कर रही है। एनपीआर-एनआरसी के साथ, सीएए का उद्देश्य केवल मुसलमानों को लक्षित करना है, इसका कोई अन्य उद्देश्य नहीं है। सीएए एनपीआर एनआरसी का विरोध करने के लिए सड़कों पर उतरे भारतीयों के पास फिर से इसका विरोध करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा।”

ऐसे ही AIMIM के राष्ट्रीय प्रवक्ता वारिस पठान ने कहा, “क्रोनोलॉजी को समझिए। समय को देखिए। तारीखों की घोषणा होने वाली है, 2024 के लोकसभा चुनाव होने वाले हैं और सरकार अचानक इसे अधिसूचित करने के बारे में सोचती है। वह 5 साल तक क्या कर रही थी? इसे पहले क्यों नहीं लाया गया? इसीलिए हम कहते हैं, सरकार चुनाव से पहले ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर रही है। वे विकास के मोर्चे पर विफल रहे हैं… उनके पास सवालों के जवाब नहीं हैं। इसलिए, वे इसे लेकर आए हैं। हमने पहले भी इस पर आपत्ति जताई थी और हम आज भी यही कहते हैं ठीक है कि यह कानून असंवैधानिक है…हमें इस पर आपत्ति है।”

पिनराई विजयन सरकार पुराने स्टैंड पर कायम

केरल में भी पिनराई विजयन सरकार ने इसे सांप्रदायिक और विभाजनकारी बताया है। इसी तरह सीएए अधिसूचना पर केरल के मंत्री पी राजीव कहते हैं, “11 दिसंबर, 2019 को लोकसभा ने इस अधिनियम को पारित किया, फिर 2019 में (केरल) विधानसभा ने एक विशेष सत्र बुलाया और सर्वसम्मति से राज्य में सीएए के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया। हमने सीएए के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया था क्योंकि यह संविधान विरोधी है और हमारे संविधान की मूल संरचना के खिलाफ है… हमारे मुख्यमंत्री ने सही कहा था कि इसे केरल राज्य में लागू नहीं किया जाना चाहिए। आज, जब दोबारा वही स्थिति है तो सरकार का भी वही स्टैंड है।”

गौरतलब है कि कल केंद्र सरकार ने CAA (नागरिकता संशोधन कानून) की अधिसूचना जारी की। इस कानून को बनाए जाने के 4 वर्षों बाद इसे नोटिफाई किया गया। ऐसा लोकसभा चुनाव 2024 से कुछ ही सप्ताह हुआ, क्योंकि आचार संहिता लागू होने के बाद ये संभव नहीं हो पाता। इसके लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन पोर्टल बनाया गया है, जिसका प्रशिक्षण पहले ही पूरा कर लिया गया है। जिलों के प्रशासन को लॉन्ग टर्म वीजा देने के लिए अधिकृत कर दिया गया है।

इसके लिए अप्लीकेशन भी बड़ी संख्या में आए हैं, जिसमें सबसे ज्यादा पाकिस्तान से हैं। इसके तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों (हिन्दू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी) को भारत की नागरिकता दी जा सकेगी, जिन पर वहाँ इस्लामी अत्याचार होता रहा है। दिसंबर 2014 तक इनमें से जो पीड़ित भारत में शरणार्थी बन कर रह रहे हैं, उन्हें अब यहाँ की स्थायी नागरिकता मिलेगी। 

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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