Thursday, April 3, 2025
Homeराजनीतिकश्मीर की स्थायी समस्या जवाहरलाल की ग़लतियों का परिणाम, नेहरू को Thank You बोलिए...

कश्मीर की स्थायी समस्या जवाहरलाल की ग़लतियों का परिणाम, नेहरू को Thank You बोलिए सुरजेवाला जी

कॉन्ग्रेस की तो आदत ही है कि वो हर उपलब्धि का श्रेय नेहरू को ही देने पर तुली रहती है। यदि चंद्रयान-2 के लिए नेहरू को धन्यवाद दिया जाना चाहिए, तो उन्हें कश्मीर मुद्दे पर की गई भयंकर भूलों के लिए भी 'धन्यवाद' दिया जाना चाहिए।

कश्मीर मुद्दे पर ट्रम्प के बयान ने एक संवेदनशील मुद्दे को हवा दे दी है। फ़िलहाल, मीडिया और राजनीति के ट्रोलों ने MEA के स्पष्टीकरण के बावजूद भारत के रुख़ के बारे में झूठ फैलाया, लेकिन कॉन्ग्रेस के नेता शायद अपनी भयंकर ग़लती के इतिहास को भूल गए हैं।

अखिल भारतीय कॉन्ग्रेस कमिटी के सदस्य व राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी रणदीप सुरजेवाला ने कल रात ट्विटर पर दावा किया कि भारत ने कभी भी जम्मू-कश्मीर में तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार नहीं की।

उन्होंने ट्वीट किया, “पीएम मोदी द्वारा जम्मू-कश्मीर में मध्यस्थता करने के लिए एक विदेशी शक्ति से पूछना देश के हितों के साथ एक बड़ा धोखा है।” सुरजेवाला, इसमें एक एक बहुत छोटा सा विवरण देना भूल गए। उन्होंने यह नहीं बताया कि जम्मू और कश्मीर की जो स्थायी समस्या है वो तत्कालीन पीएम जवाहरलाल नेहरू द्वारा की गई ग़लतियों का परिणाम है।

अक्टूबर 1947 में पाकिस्तान ने जब पहली बार कश्मीर की तत्कालीन स्वतंत्र रियासत पर आक्रमण किया, तो महाराजा हरि सिंह ने अपनी रियासत के भारत में विलय के लिए विलय-पत्र पर हस्ताक्षर करते हुए भारत से मदद माँगी। भारत ने मदद दी और उस समय भारतीय सेना ने कश्मीर के दो-तिहाई हिस्से को जल्दी से हासिल कर लिया था।

इसके बाद नेहरू ने 1 जनवरी, 1948 को संयुक्त राष्ट्र से शांति वार्ता में हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया था, जबकि उस समय सेना अपने ऑपरेशन में लगी हुई थी। आश्चर्य की बात तो यह है कि इन सबका भारतीय सैनिक के मनोबल पर क्या असर पड़ा होगा, जब उन्हें पता चला होगा कि उनकी सरकार पहले से ही शांति की माँग कर रही है। अगर इस मामले को नेहरू द्वारा संयुक्त राष्ट्र में ले जाने की बजाए सेना को पूरे कश्मीर पर फिर से क़ब्ज़ा करने की अनुमति दे दी जाती तो आज इतिहास कुछ और ही होता।

इस मामले पर हुआ ये कि संयुक्त राष्ट्र ने संघर्ष विराम की बात कह डाली और तभी से कश्मीर मुद्दा एक खुला घाव बन कर रह गया है, जबकि भारत ने यह बात स्पष्ट कर दी है कि उसके द्वारा अमेरिका के साथ ऐसी कोई बातचीत या अनुरोध नहीं किया गया।

ऐसे में तो यही लगता है कि कॉन्ग्रेस शायद अपने उसी इतिहास को फिर से उजागर करने में लगी हुई है। आख़िरकार, कॉन्ग्रेस की तो आदत ही है कि वो हर उपलब्धि का श्रेय नेहरू को ही देने पर तुले रहते हैं। यदि चंद्रयान-2 के लिए नेहरू को धन्यवाद दिया जाना चाहिए, तो उन्हें कश्मीर मुद्दे पर की गई भयंकर भूलों के लिए भी ‘धन्यवाद’ दिया जाना चाहिए।

Join OpIndia's official WhatsApp channel

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

चीनी नागरिकों से शारीरिक और प्रेम संबंध बनाने पर रोक, अमेरिका ने राजदूतों के लिए लागू किए सख्त नियम-क़ानून: नहीं माने तो छोड़नी होगी...

अमेरिकी सरकार ने चीन में तैनात अपने सरकारी अधिकारियों, उनके परिवारों और सुरक्षा मंजूरी प्राप्त कॉन्ट्रैक्टर्स के लिए सख्त प्रतिबंध लागू किया।

खतरे में है हर हिंदू, सरकारी सुरक्षा के भरोसे हम जीवनभर नहीं बैठ सकते… पर कवर्धा का ‘सुरक्षा मॉडल’ आत्मसात तो कर ही सकते...

कवर्धा के ​हिंदू जिस तरह दुर्गेश देवांगन के परिवार की ढाल बने, क्या उसी तरह हर पीड़ित हिंदू परिवार का हम बन सकते हैं सुरक्षा कवच?
- विज्ञापन -