राजस्थान के नए मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के नाम का जब ऐलान हुआ, तो किसी को एक बार यकीन नहीं हुआ कि राजस्थान की कमान 33 साल बाद किसी ब्राह्मण को सौंपी गई है। भजनलाल शर्मा का सियासी जीवन तीन दशक से भी लंबा रहा है। वो सरपंच भी रहे हैं तो अब मुख्यमंत्री भी बने हैं। उनका संगठन से जुड़ा अनुभव उन्हें खास बनाता है, साथ ही वो भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के भी करीबी माने जाते हैं।
भजनलाल शर्मा 20 साल पहले भाजपा से बागी होकर चुनाव लड़े थे, लेकिन हार का सामना करना पड़ा था।
अयोध्या से कश्मीर तक राजनीतिक सक्रियता
भजनलाल शर्मा भरतपुर जिले के अटारी गाँव के हैं। उन्होंने अटारी गाँव और नदबई कस्बे में पढ़ाई की। छात्र जीवन से ही भारतीय जनता पार्टी और उसके छात्र संगठन ABVP से जुड़े रहे हैं। वो युवा मोर्चा में भी अहम जिम्मेदारियाँ संभाल चुके हैं। महज 20 साल की उम्र में कश्मीरी पंडितों के लिए एबीवीपी द्वारा निकाले गए जम्मू मार्च में शामिल हुए थे। कश्मीरी पंडितों पर हमलों के विरोध में ये मार्च जम्मू से उधमपुर पहुँची थी, जहाँ उन्हें कई अन्य कार्यकर्ताओं के साथ गिरफ्तार कर लिया गया था।
इसके 2 साल बाद ही 1992 में वो राम मंदिर आंदोलन के दौरान जेल गए थे। वो 27 साल की उम्र में अटारी गाँव के सरपंच भी चुने गए और दो बार सरपंच रहे।
BJP से बागी भी हुए, लेकिन संगठन पर मजबूत पकड़
भजनलाल शर्मा साल 2003 में चुनाव लड़ना चाहते थे। ऐसे में भाजपा से बागी हुए पूर्व मंत्री देवी सिंह, वरिष्ठ नेता सुरेश मिश्रा और करणी सेना के संस्थापक लोकेंद्र सिंह कल्वी ने सामाजिक न्याय मंच नाम की पार्टी बनाई तो उन्हें चुनाव लड़ने के लिए आमंत्रित किया। भजनलाल अपने भरतपुर जिले के नदबई विधानसभा सीट से मैदान में उतरे। उन्हें 5 हजार से अधिक वोट मिले, और वो पाँचवें स्थान पर रहे। इसके बाद वो वापस बीजेपी में लौट आए। उनकी सांगठनिक क्षमता को देखते हुए बीजेपी ने उन्हें कई जिम्मेदारियाँ सौंपी।
बीजेपी में अहम दायित्वों का निर्वहन
भजन लाल शर्मा ने एवीबीपी और भाजयुमो के साथ अहम सांगठनिक कार्य सफलता पूर्वक संभाले थे। ऐसे में बीजेपी ने उन्हें भरतपुर में भाजयुमो का नेतृत्व सौंपा था। भजन लाल शर्मा भारतीय जनता युवा मोर्चा के तीन बार भरतपुर के जिलाध्यक्ष भी रहे हैं। इसके बाद भाजपा के वो जिला सचिव रहे, फिर उन्हें जयपुर बुला लिया गया। भजन लाल शर्मा को बीजेपी के लिए राजस्थान में उपाध्यक्ष और महासचिव जैसे महत्वपूर्ण पद दिए गए।
इस चुनाव में वो जयपुर से ही मैदान में उतरना चाहते थे, लेकिन पार्टी ने उन्हें मौजूदा विधायक का टिकट काटकर सुरक्षित सांगनेर विधानसभा सीट से मैदान में उतारा।
अपने चुनाव के साथ ही देखा पार्टी का भी कामकाज
राजस्थान में बीजेपी जब अपना चुनावी ताना-बाना बुन रही थी, उस समय भजनलाल शर्मा अपने राजनीतिक दायित्वों के साथ पार्टी की रणनीति की कमान भी सँभाल रहे थे। राज्य में बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के हर काम को अंजाम दे रहे थे। उन्होंने राजस्थान की 5 सदस्यीय रणनीतिक टीम की अगुवाई की। एक तरफ वो खुद सांगनेर से चुनाव मैदान में थे, तो दूसरी तरफ उनके ऊपर पूरी पार्टी के चुनावी अभियान का भी जिम्मा था।
भजनलाल शर्मा ने इन दोनों ही चुनौतियों को सफलतापूर्वक पार किया। भजनलाल शर्मा के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृहमंत्री अमित शाह के भी अच्छे संबंध हैं। अमित शाह उनपर पूरा भरोसा करते हैं। इसीलिए उन्हें राजस्थान में चुनाव को सँभालने का दायित्व दिया गया था।
CM के लिए तमाम दिग्गजों के बीच चुने गए भजनलाल शर्मा
राजस्थान में मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में कई बड़े नाम शामिल थे। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, महंत बालकनाथ, प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी के साथ ही कई नामों की चर्चाएँ चलती रहीं। दीया कुमारी का भी नाम इसमें शामिल था। भाजपा के लिए ये चुनौती थी कि इन दिग्गजों के बीच सीएम किसे बनाया जाए। साथ ही बीजेपी के लिए अपनी सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले को भी बरकरार रखना था। ऐसे में पार्टी ने 33 साल बाद राजस्थान को ब्राह्मण मुख्यमंत्री देने का निर्णय लिया, जिसका असर पूरे उत्तर भारत पर पड़ना तय है।
दरअसल, 3 दिसंबर को चुनावी नतीजों की घोषणा जब हुई, तो मुख्यमंत्री पद के दावेदारों की लाइन लग गई। इन दावेदारों ने भी अपनी गोलबंदी शुरू कर ली। सौदेबाजी भी चली, लेकिन इन नेताओं में सक्रियता नहीं देखी गई थी, जब चुनाव हो रहे थे। किसी भी नेता ने पूरे राजस्थान की जिम्मेदारी सँभालने की जरूरत नहीं समझी थी। ऐसे में बीजेपी ने भी उसी भजन लाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाया, जिसने अपने चुनाव के साथ ही पूरे राज्य की चुनावी बागडोर संभाली।