Thursday, April 18, 2024
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‘कुरान की दुल्हन’: पाकिस्तान में प्रचलित मुस्लिमों की एक भयानक प्रथा, संपत्ति से लड़कियों का हिस्सा लेने के लिए बना दी जाती ‘गुलाम’ जैसी

पाकिस्तान में संपत्ति का उत्तराधिकार परिवार की इस्लामी जाति या जनजाति के वर्गों और उप-वर्गों के आधार पर तय किया जाता है, जैसे कि कच्छी मेमन, खोजा, सुन्नी या शिया। सामान्य तौर पर एक पुरुष का हिस्सा एक परिवार की महिला के हिस्से का दोगुना होता है। हालाँकि, अधिकांश मामलों में ठीक से इसका बँटवारा नहीं किया जाता है।

खुद को इस्लाम के पैगंबर मोहम्मद का वंशज मानने वाले मुस्लिमों की सैयद जाति के बीच एक भयानक प्रथा लोकप्रिय है, जिसका नाम है ‘हक बख्शीश’। इस जाति के परिवारों में घर की लड़की का निकाह अपने धार्मिक पुस्तक कुरान से करते हैं, ताकि उस संपत्ति को अपने पास रखी जा सके जो कानूनी रूप से लड़की की है और निकाह के बाद उसे देना होता है।

इस जाति के लोगों का कहना है कि उनके परिवार के खून की ‘पवित्रता’ को बनाए रखने के लिए उन्हें अपनी जाति से बाहर निकाह करने की मनाही है। परिवार के पुरुष यह आरोप लगाते हुए अपनी लड़कियों की शादी कुरान से ये कहते हुए करते हैं कि उन्हें अपने जाति में उपयुक्त मैच नहीं मिला। उनका आरोप है कि लड़की को ‘निम्न जाति’ के व्यक्ति से शादी करना संभव नहीं है, क्योंकि निचली जाति का कोई भी व्यक्ति उनकी हैसियत की बराबरी नहीं कर सकता है।

लड़की के घरवाले उससे यह नहीं पूछते कि वह कुरान से शादी करना चाहती है या नहीं। यह घर के पुरुष सदस्यों द्वारा तय किया जाता है। लड़कियों को बस इतना बताया जाता है कि वे जीवन भर किसी और से शादी करने के बारे में नहीं सोच सकती। परिवार के बेटों को कुरान से शादी करने वाली लड़कियों की संपत्ति पर अधिकार मिल जाता है।

पाकिस्तानी कानून के अनुसार, हक बख्शीश एक प्रतिबंधित प्रथा है। हालाँकि, क्षेत्र में काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि हक बख्शीश के मामलों के बारे में जानना सरकार के लिए संभव नहीं है, क्योंकि ये मामले परिवार के अंदर ही रखे जाते हैं। अशरक अल-अवसात के 2007 के एक पत्र के अनुसार, सिंध और अन्य क्षेत्रों में, जहाँ यह प्रथा प्रचलित है, कुरान की कम-से-कम 10,000 दुल्हनें थीं।

DW ने हाल ही में मूमल (बदला हुआ नाम) नामक कुरान की दुल्हन की एक वीडियो कहानी प्रकाशित की थी। जिस दिन उसे कुरान की दुल्हन घोषित किया गया था, उस दिन को लेकर मूमल ने DW को बताया, “उस दिन ना बारात आई, ना ढोल बजा। ना मेंहदी लगी, ना मौलवी आया। बस एक बात नई थी कि मुझे नया सूट पहनाया गया था। नया जोड़ा। फिर मेरे अब्बू ने कुरान शरीफ लाकर मेरे हाथ में रख दिया और कहा कि हम तुम्हारी शादी कुरान के साथ करवा रहे हैं। तुम कसम उठाओ कि कभी किसी शख्स और दोबारा शादी के बारे में नहीं सोचोगी। अब आपकी शादी कुरान शरीफ के साथ हो गई है।”

रिपोर्ट में कहा गया है कि मूमल के अब्बू ने उससे उसकी जाति के बाहर शादी नहीं की, लेकिन कथित तौर पर रूढ़िवादी सैयद जनजाति के अंदर भी कोई उपयुक्त लड़का नहीं मिला। मूमल ज्यादातर समय घर पर ही रहती है और घर का काम करती है। उसने कहा, “बाहर मैं कभी नहीं गई, क्योंकि सारा दिन मैं ‘पर्दे’ में होती हूँ। मुझे ये भी नहीं पता कि बाहर क्या होता है और क्या नहीं। बस घर का काम और घर में ही रहती हूँ। कोई महिला आ जाए, फिर भी मैं बाहर नहीं जाती।”

अधिकार कार्यकर्ताओं के अनुसार, पाकिस्तानी कानून द्वारा अवैध माने गए इस प्रथा का उपयोग बेटियों और बहनों के बीच संपत्ति और जमीन के बँटवारे को रोकने के लिए किया जाता है। DW को सामाजिक कार्यकर्ता शाजिया जहाँगीर अब्बासी ने बताया, “परिवार के पुरुष सदस्य जानते हैं कि अगर लड़की की शादी होती है तो उन्हें संपत्ति में से उसे हिस्सा देना पड़ेगा। इस प्रकार वे उसे ‘बीबी’ घोषित करते हैं, जिसका अर्थ है कुरान से विवाहित। पिता, भाइयों और परिवार की इज्जत बचाने के लिए लड़की अपने भाग्य को स्वीकार कर लेती है।”

ज्यादातर मामलों में कुरान से निकाही गई वह महिला परिवार की गुलाम बनकर रह जाती है। उसे कैद में रखा जाता है और घर के काम करने के लिए मजबूर किया जाता है। इसके बदले में कुछ मिले बिना वह परिवार की सेवा करती रहती है।

‘द न्यू ह्यूमैनिटेरियन’ ने 2007 में 25 वर्षीय फरीबा की कहानी प्रकाशित की थी, जिसकी कुरान से शादी हुई थी। उसकी तत्कालीन सात वर्षीय बहन जुबैदा ने उसकी कहानी IRIN को सुनाई थी। वह शादी के सभी आयोजनों और मेहमानों को देख रही थी, लेकिन कोई दूल्हा नहीं था। यह देखकर वह भ्रमित थी। अब 33 वर्ष की हो चुकी ज़ुबैदा ने बताया, “यह बेहद अजीब था और दुखद था। फ़रीबा बहुत ही सुंदर लड़की थी और उस समय लगभग 25 वर्ष की थी। उसे दुल्हन की तरह लाल जोड़े में सजाया गया, आभूषण पहनाए गए और हाथों एवं पैरों में ‘मेहंदी’ लगाए गए, लेकिन कुल मिलाकर यह एक घना अंधेरा वाला चादर था। संगीत था और बहुत सारे मेहमान थे, लेकिन कोई दूल्हा नहीं था। ”

इस मामले पर पुरीसरार दुनिया की एक डॉक्यूमेंटरी के अनुसार, कुरान से शादी करने से पहले लड़की से सलाह नहीं ली जाती है और परिवार निर्णय कर लेता है। इससे फर्क नहीं पड़ता कि वह इसे पसंद करती है या नहीं। लड़की के घरवाले कागज पर कुरान की कुछ आयतें लिखकर उसकी कमर पर बाँध देते हैं और बता देते हैं कि अब कुरान ही उसका शौहर है। इसके बाद एक समारोह में संपत्ति में उसके हिस्से को उसके भाइयों को हस्तांतरित कर दिया जाता है।

पाकिस्तान में संपत्ति का उत्तराधिकार परिवार की इस्लामी जाति या जनजाति के वर्गों और उप-वर्गों के आधार पर तय किया जाता है, जैसे कि कच्छी मेमन, खोजा, सुन्नी या शिया। सामान्य तौर पर एक पुरुष का हिस्सा एक परिवार की महिला के हिस्से का दोगुना होता है। हालाँकि, अधिकांश मामलों में ठीक से इसका बँटवारा नहीं किया जाता है। बहुत कम मामलों में महिलाएँ अदालतों का दरवाजा खटखटाती हैं। अगर ऐसा होता भी है तो कानूनी व्यवस्था की कछुआ चाल की वजह से विवाद को सुलझाने में दशकों लग जाते हैं।

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Anurag
Anurag
B.Sc. Multimedia, a journalist by profession.

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