अफगानिस्तान के पूर्व उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने रविवार (11 मई 2025) को भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया तनाव को लेकर भारत की कार्रवाई को एक बड़ी रणनीतिक सफलता बताया। उन्होंने कहा कि भारत का ‘ऑपरेशन सिंदूर‘ साफ तौर पर एक निर्णायक जीत है और इसके बाद हुआ युद्धविराम भारत की कूटनीतिक कामयाबी को दिखाता है।
सालेह ने भारत के ऑपरेशन सिंदूर की तुलना पाकिस्तान के ऑपरेशन ‘बनयान उल मरसूस’ से करते हुए कहा कि भारत का नजरिया ज़्यादा साफ, आत्मनिर्भर और रणनीतिक रूप से असरदार रहा। उन्होंने भारत की उस नीति की तारीफ की जो उसके सैन्य और राजनीतिक फैसलों को निर्णायक बनाती है।
Operation Sindoor vs. Operation Bunyan Ul Marsoos
— Amrullah Saleh (@AmrullahSaleh2) May 10, 2025
Some of the firsts
One :
Realizing the stalemated status or irrelevance of the UNSC, India didn’t seek to request sympathy from the five of the 1945. Operation Sindoor clearly demonstrated a strong sense of self-confidence and…
भारत की रणनीतिक आजादी और आत्मविश्वास
अमरुल्लाह सालेह ने ऑपरेशन सिंदूर को भारत की रणनीतिक आजादी का प्रतीक बताया। सालेह ने कहा कि भारत ने इस बार पहली बार किसी भी तरह से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) से न तो अनुमति माँगी और न ही कोई सहानुभूति, उसने पाँचों महाशक्तियों को नजरअंदाज दिया। यह भारत के आत्मविश्वास, संप्रभुता और स्वतंत्र सोच का मजबूत संदेश था।
आतंकियों और उनके मददगारों दोनों पर सीधा वार
सालेह ने कहा कि भारत ने आतंकवादियों और उसे पालने-पोसने वाले, दोनों को एकसाथ निशाना बनाकर ये दिखा दिया कि अब राज्य प्रायोजित आतंकवाद बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। भारत ने यह सोच खत्म कर दी कि आतंकी अपने राज्य से अलग-थलग काम करते हैं। भारत ने पाकिस्तान में न सिर्फ आतंकियों, बल्कि उन्हें पालने वालों के खिलाफ भी कार्रवाई की, जो अब एक नए रणनीतिक दौर की ओर इशारा करता है। इससे पाकिस्तान की ‘इनकार की नीति’ पर सवाल खड़े हो गए हैं।
पाकिस्तान की सैन्य महत्वाकांक्षाएँ और उसकी कमजोर आर्थिक हालत
अफगानिस्तान के पूर्व उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने कहा कि युद्ध के दौरान ही पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से कर्ज माँगा और हैरानी की बात है कि उसे कर्ज मिल भी गया। लेकिन यह जंग लड़ने के लिए काफी नहीं है। सालेह के मुताबिक, पाकिस्तान के पास युद्ध शुरू करने की ताकत हो सकती है, लेकिन उसे लंबे समय तक खींचने की क्षमता नहीं है। IMF से मिला पैसा कोई युद्ध नहीं जिता सकता।
रणनीतिक संयम की परीक्षा
सालेह ने बताया कि 22 अप्रैल को लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों ने भारत के रणनीतिक संयम की परीक्षा लेने की कोशिश की। संभव है कि वे जानते-बूझते यही नतीजा चाहते थे, लेकिन उन्हें इससे कोई फायदा नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि आतंकी शायद भारत को खुलेआम शर्मिंदा करना चाहते थे, लेकिन उनकी सोच आज भी 2008 में अटकी हुई लगती है।
नूर खान एयरबेस पर हमला – भारत की पहुँच का बड़ा संदेश
पूर्व उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत ने अपनी ताकत और पहुँच का ज़बरदस्त प्रदर्शन किया है। रावलपिंडी स्थित नूर खान एयरबेस, जिसे पाकिस्तान का सबसे सुरक्षित इलाका माना जाता था, वह भी हमले से नहीं बच पाया। सालेह ने कहा, “मैं हमेशा सोचता था कि यह एयरबेस पाकिस्तान का सबसे महफूज़ ठिकाना है, लेकिन अब साफ हो गया कि पाकिस्तान का कोई भी हिस्सा भारत की पहुँच से बाहर नहीं है।”
मजहबी फतवों में भी भारत की कूटनीतिक जीत
पाकिस्तान ने हमेशा मुस्लिम दुनिया की सहानुभूति पाने के लिए मजहबी फतवों का सहारा लिया है, लेकिन इस बार यह दाँव भी नहीं चला। भारत के उलेमा, खासकर देवबंद के उलेमा ने भारत के समर्थन में फतवा जारी किया, जिससे पाकिस्तान का यह खास ‘हथियार’ भी उससे छिन गया। सालेह ने कहा, “पाकिस्तान अब इस्लामी दुनिया में सहानुभूति पाने के लिए जो मजहबी दावे करता था, वह अब खत्म हो चुके हैं। वैसे भी देवबंद भारत में ही है।”
भारत ने ऑपरेशन में पूरी गोपनीयता बरती
सालेह ने कहा कि भारत ने लोकतंत्र की तमाम चुनौतियों के बावजूद ऑपरेशन के दौरान जबरदस्त गोपनीयता बनाए रखी। जहाँ लोकतांत्रिक देशों में अक्सर जानकारी लीक हो जाती है, भारत से ऑपरेशन के बारे में बहुत कम खबरें बाहर आईं। यह बात दर्शाती है कि भारत ने ऑपरेशन की गोपनीयता को बनाए रखने में बेहद कुशलता दिखाई।
पाकिस्तान का ऑपरेशन – सिर्फ प्रचार और दावा
अफगान नेता ने पाकिस्तान के ऑपरेशन ‘बनयान उल मरसूस’ की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाए। सालेह ने कहा कि इससे जुड़ी कोई ठोस तस्वीर या सबूत सामने नहीं आया है। उन्होंने कहा, “मैंने पाकिस्तान के इस ऑपरेशन से जुड़ी कोई स्पष्ट तस्वीर (फोटो-वीडियो) नहीं देखा, जिससे लगता है कि यह शायद कभी ठीक से हुआ ही नहीं। वास्तव में युद्धविराम ने पाकिस्तान को शर्मिंदगी से बचा लिया।”
पूर्व अफगानी उप-राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि पाकिस्तान के सैन्य नेतृत्व ने जरूर बड़ी-बड़ी बातें की हैं, लेकिन हकीकत में भारत का आकाश खुला रहा, उड़ानें सामान्य रहीं और न दिल्ली, न ही अमृतसर में कोई मिसाइल गिरने जैसी घटना हुई। इससे साफ होता है कि पाकिस्तान के दावे खोखले थे और युद्धविराम ने उसे बड़ी बेइज्जती से बचा लिया।