Tuesday, May 7, 2024
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नई दिल्ली में अफगानिस्तान का दूतावास बंद, कहा- वैध सरकार बनने तक हमारा झंडा लहराने दे भारत: तालिबानी शासन के बाद से था निष्प्रभावी

राष्ट्रपति अशरफ घनी के नेतृत्व वाली अफगानिस्तान की पूर्ववर्ती सरकार से संबंधित दूतावास ने दिल्ली में स्थित अपने राजनयिक मिशन को स्थायी तौर पर बंद करने की घोषणा कर दी है। दूतावास के नाम से जारी किए गए बयान में कहा गया है कि भारत और तालिबान सरकार की ओर से लगातार मिल रही चुनौतियों के कारण यह निर्णय लिया गया है।

राष्ट्रपति अशरफ घनी के नेतृत्व वाली अफगानिस्तान की पूर्ववर्ती सरकार से संबंधित दूतावास ने दिल्ली में स्थित अपने राजनयिक मिशन को स्थायी तौर पर बंद करने की घोषणा कर दी है। ‘इस्लामी रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान’ के दूतावास के नाम से जारी किए गए बयान में कहा गया है कि भारत और तालिबान सरकार की ओर से लगातार मिल रही चुनौतियों के कारण यह निर्णय लिया गया है।

बता दें कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद तालिबान ने 15 अगस्त 2021 को अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद अशरफ घनी ने अफगानिस्तान छोड़ दिया था। वहीं, घनी सरकार में उपराष्ट्रपति रहे अमरुल्लाह सालेह ने कहा था कि तालिबान के साथ उनका संघर्ष अंतिम साँस तक जारी रहेगा।

भारत में अफगानिस्तान का दूतावास पूर्ववत जारी रहा। कब्जे के बाद तालिबान ने अफगानिस्तान नाम ‘इस्लामी रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान’ से बदलकर ‘इस्लामिक एमिरेट्स ऑफ अफगानिस्तान’ कर दिया था। हालाँकि, भारत सरकार ने आधिकारिक तौर पर अफगानिस्तान की तालिबान सरकार के साथ राजनयिक संबंध रखने की घोषणा अब तक नहीं की है।

दरअसल, पूर्ववर्ती सरकार से संबंधित अफगान दूतावास ने 30 सितंबर 2023 को दिल्ली में अपने दूतावास का संचालन बंद कर दिया था और अब इसे स्थायी तौर पर बंद कर दिया है। दूतावास ने अपने बयान में कहा कि उसे अपेक्षित समर्थन नहीं मिल रहा है। पिछले 2 वर्षों 3 महीनों में भारत में अफगान समुदाय की संख्या में भारी गिरावट देखी गई है।

दूतावास ने कहा कि इस अवधि में अफगानिस्तान छोड़ने की कोशिश करने वाले लोगों को बहुत ही सीमित नए वीजा जारी किए गए। इस कारण से अफगान शरणार्थियों, छात्रों और व्यापारियों के देश छोड़ने के कारण अगस्त 2021 के बाद से यह संख्या लगभग आधी रह गई है।

अफगान दूतावास ने आगे कहा कि मिशन बंद करने के निर्णय को कुछ लोग आंतरिक संघर्ष के रूप में लेबल करने का प्रयास कर सकते हैं। दूतावास ने यह भी कहा कि कुछ लोग यह भी कह सकते हैं कि राजनयिकों ने तालिबान के प्रति अपनी निष्ठा बदल ली है, लेकिन यह निर्णय नीति और हितों में व्यापक बदलाव का परिणाम है।

दूतावास ने आगे कहा, “नई दिल्ली में हमारे मिशन के दौरान अफगान नागरिकों के समर्थन के लिए हम भारत के प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। काबुल में वैध सरकार की अनुपस्थिति और सीमित संसाधनों एवं शक्तियों के बावजूद हमने भारत में मौजूद अपने नागरिकों की बेहतरी के लिए अथक प्रयास किए।”

इससे पहले 30 सितंबर 2023 को दूतावास ने कहा था, “हम मेजबान सरकार (भारत) से अपेक्षित समर्थन नहीं मिलने, संसाधनों एवं कार्मिकों की कमी के कारण अफगानिस्तान के सर्वोत्तम हितों की सेवा करने की अपेक्षाओं को पूरा करने में सफल नहीं हो रहे हैं। इसलिए हम 1 अक्टूबर 2023 से अपना परिचालन बंद कर रहे हैं।”

तालिबान की वर्तमान सरकार को लेकर नई दिल्ली स्थित अफगान दूतावास ने कहा, “जो लोग किसी अन्य समूह का प्रतिनिधित्व करते हैं, वे तालिबान का समर्थन करते हैं तो यह भारत सरकार का निर्णय होगा। हालाँकि, हमने भारत सरकार से कहा है कि जब तक अफगानिस्तान में कोई वैध सरकार नहीं आती है, तब तक हमारे गौरवशाली झंडे को फहराते रहने का सम्मान दिया जाए।”

दूतावास ने यह भी कहा, “हमने भारत सरकार से यह भी कहा कि राजनयिक संबंधों पर वियना कन्वेंशन 1961 के मानदंडों के आधार पर दूतावास को तब तक बंद रखा जाए, जब तक अफगानिस्तान में कोई वैध सरकार काबिज नहीं होती। आज से भारत में ‘इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान’ का प्रतिनिधित्व करने वाला कोई राजनयिक नहीं होगा। अगर कोई ऐसा दावा करता है तो उसे ‘इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान’ का प्रतिनिधि नहीं माना जाए।”

दूतावास ने यह भी कहा कि भारत साल 2001 से अफगानिस्तान की पूर्ववर्ती सरकार का रणनीतिक साझेदार रहा है। हालाँकि, बदली हुई भू-राजनीतिक स्थितियों में शक्तियों के संतुलन के लिए की आवश्यकता को वह समझता है। इसलिए वह अपने मिशन को बंद करते हुए इसकी संपत्तियों को भारत को सौंपने का निर्णय लिया है। उसने भारत से इन संपत्तियों और भारत में रह रहे लोगों की सुरक्षा की अपील की।

दूतावास ने कहा कि अगर कोई उसके मिशन में अब वहीं लोग बचे हो सकते हैं, जो तालिबान के संबद्ध या उसके प्रतिनिधि होंगे। दूतावास ने यह भी कहा कि अपनी संपत्तियों को भारत सरकार के हवाले कर दिया है और यह भारत पर निर्भर है कि इसे वह अपने पास रखता है या उसे तालिबान से संबद्ध राजनयिकों के हवाले करता है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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