प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक बात हाल ही में दुनिया भर में खासी लोकप्रिय हुई थी, जिसे दुनिया भर के अंतरराष्ट्रीय राजनेताओं ने भी सराहा था। उन्होंने रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के साथ चर्चा में कहा था कि ये युद्ध का काल नहीं है। रूस और यूक्रेन के बीच 11 महीने से युद्ध चल रहा है और अब तक इसके कोई परिणाम नहीं निकले हैं। ऐसे में भारत के प्रधानमंत्री की ये बात बिलकुल ही सही थी। ये, युद्ध का काल नहीं है।
लेकिन, दुनिया भर में बन रही परिस्थितियों की देखें तो ये युद्ध से बचाव का काल ज़रूर है। ये ऐसा काल है, जो युद्ध का तो नहीं है लेकिन युद्ध से निपटने की तैयारी सर्वश्रेष्ठ रहनी चाहिए। ये बातें विरोधाभासी ज़रूर लगती हैं, लेकिन हैं नहीं। ऐसा इसीलिए, क्योंकि दो छोटे से देशों के बीच युद्ध आज पूरी दुनिया को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। रूस-यूक्रेन युद्ध के दूरगामी परिणाम पूरी दुनिया पर पड़े हैं। खासकर जब कोई महाशक्ति युद्ध में उतर जाए तो शायद ही विश्व का कोई भाग इससे अछूता रहेगा।
ऐसे समय में दुनिया के चौथे सबसे बड़े द्वीपीय समूह देश ने एक चौंकाने वाला निर्णय लिया है, जिसकी उम्मीद खुद वहाँ के लोग भी नहीं कर रहे थे। जापान ने अपनी रक्षा और सुरक्षा योजनाओं का पूरा का पूरा खाका ही बदल कर रख डाला और भविष्य के लिए ऐसी योजना बनाई है जो चीन को उसकी तरफ आँख उठा कर देखने से भी रोकेगा। इसे ऐसे समझ लीजिए कि अपनी सेना के सम्बन्ध में जापान ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद शायद ही इस तरह की तैयारी की हो।
रूस-यूक्रेन युद्ध और चीन के आतंक के बीच जापान ने रक्षा क्षेत्र में उठाया बड़ा कदम
जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने महीनों तक चले विचार-विमर्श, बहस और चर्चाओं के बाद चीन से टक्कर लेने के लिए सैन्य क्षेत्र में अपने देश को मजबूत करने वाले दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए। ताइवान पर जिस तरह से चीन अपना दावा ठोकता रहा है और अगर ताइवान पूरी तरह चीन के हाथों में चला गया तो जापान के सुदूर दक्षिणी-पश्चिमी द्वीपों को बचाने वाला कोई नहीं रहेगा। सेनकाकू द्वीप पर चीन पहले से ही दवा करता रहा है।
अव्वल तो ये कि चीन, ताइवान पर कब्जे के बाद जापान के व्यापारिक रूटों को भी ध्वस्त करने में सफल हो सकता है और किसी भी देश पर वित्तीय मार पड़ने का मतलब आप अच्छी तरह समझ सकते हैं। चीन के साथ-साथ ही एक अन्य सनकी वामपंथी शासक किम जोंग उन का उत्तर कोरिया भी जापान के लिए खतरा साबित हो सकता है। जापान के लिए ये पारिस्थितिक मजबूरी बन गई है कि वो अमेरिका, भारत और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ अपनी रक्षा साझेदारी को ज्यादा से ज्यादा मजबूत करे।
तो, जापान ने इस दिशा में सबसे बड़ा कदम उठा दिया है। जापान ने नई ‘राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति (National Security Strategy/NSS)’ बनाई है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से जापान एक शांत राष्ट्र रहा है और उसने अपनी रक्षा ज़रूरतों को सीमित कर के रखा हुआ था। लेकिन, जापान अब अगले 5 वर्षों में ¥43 ट्रिलियन (26.06 लाख करोड़ रुपए) अपनी सैन्य शक्ति को मजबूत करने में खर्च करेगा। इसमें काउंटर-स्ट्राइक की तकनीक को विकसित करना सबसे बड़े लक्ष्यों में से एक है, ताकि हर हमले का जवाब हमले के साथ ही दिया जाए।
दुश्मन के क्षेत्र में ही हमला करने वालों को निशाना बनाया जा सके, जापान का जोर ऐसी तकनीकों को विकसित करने पर है। इसका परिणाम ये होगा कि 2027 तक जापान अपनी GDP का 2% डिफेंस बजट पर खर्च करेगा। जापान की पूरी सुरक्षा योजना रक्षा क्षेत्र को मजबूत करने पर टिकी होगी। जापान अब तीनों ही वामपंथी शासन वाले देशों रूस, चीन और उत्तर कोरिया को एक बड़े खतरे और चिंता के रूप में देख रहा है।
जापान की चिंता ये है कि पूर्वी और दक्षिणी चीन सागर में ड्रैगन यथास्थिति को बदलने का प्रयास कर रहा है। साथ ही साइबर क्षेत्र में चीन के लगातार हमलों के कारण जापान डिजिटल सुरक्षा में भी खुद को मजबूत बनाएगा। थलसेना, नौसेना और वायुसेना के एक संयुक्त कमांड की भी स्थापना होगी। अमेरिका से साझेदारी पर जोर है। चीन कहता रहा है कि वो ताइवान को अपने मेनलैंड को मिलाएगा, ऐसे में जापान के लिए ये आपात स्थिति पैदा कर सकता है।
सारी तैयारी उसी के बचाव की है, रूस-यूक्रेन युद्ध और उत्तर कोरिया तो बस छोटी चिंताएँ हैं। मिसाइल हमलों से निपटना जापान के लिए बड़ी चुनौती है। अमेरिका द्वारा बनाई गई 1600 किलोमीटर तक मार करने वाली Tomhawk मिसाइलें भी जापान खरीदेगा। जब 2013-14 में जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री शिंजो अबे ने सैन्य क्षेत्र में मजबूती की ओर कदम बढ़ाया था, तब पश्चिमी मीडिया ने ‘शांतिपूर्ण देश’ के इस कदम का खासा विरोध किया था। अब चीन के खतरे के कारण यही देश इसका स्वागत कर रहे हैं।
Japan unveiled its biggest military build-up since World War Two with a $320 billion plan that will ready it for sustained conflict, citing concerns that China will pose a regional threat https://t.co/EUTFVgQd5X pic.twitter.com/O1oFNoGeZL
— Reuters (@Reuters) December 16, 2022
शिंजो अबे ने जिस खतरे को लेकर दुनिया को आगाह किया था, अब चीन नामक वो खतरा पश्चिमी देशों के लिए भी चिंता का सबब बन रहा है। चीन, ताइवान को दूसरा हॉन्गकॉन्ग बनाना चाह रहा है। आसपास के सभी देशों के सीमावर्ती क्षेत्रों पर दावे कर के उसने पड़ोसियों को दबाव में रखा है। दुनिया में सबसे ज्यादा जनसंख्या वाली सेना, साइबर क्षेत्र में मजबूती और देश में तानाशाही को हथियार बना कर वो कुछ भी कर सकता है।
सेमीकंडक्टर: तकनीक के क्षेत्र में भी चल रहा है एक युद्ध
सेमीकंडक्टर चिप – ये वो चीज है जो आने वाले समय में तकनीक के क्षेत्र में एक बड़ी क्रांति लाएगा, ला रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूँ ही नहीं कहा था कि वो भारत को सेमीकंडक्टरों का हब बनाना चाहते हैं। जिस देश में दुनिया के 20% सेमीकंडक्टर डिजाइन इंजीनियर हैं, उसे भला कौन रोक सकता है? 2026 तक भारत का ही सेमीकंडक्टर खपत 80 बिलियन डॉलर (6.61 लाख करोड़ रुपए) तक हो सकता है। ऐसे समय में अब अमेरिका भी चीन को सेमीकंडक्टर बनाने के उपकरणों के निर्यात को लेकर कटौती के मूड में है।
चीन अपनी चिप इंडस्ट्री को 1 ट्रिलियन युआन (143 बिलियन डॉलर/11.58 लाख करोड़ रुपए) के पैकेज से मजबूत करने की योजना पर काम कर रहा है। ऊपर से दबाव बनाते हुए उसने अमेरिका के चिप एक्सपोर्ट को लेकर WTO (विश्व व्यापार संगठन) में आपत्ति भी दर्ज करा दी है। दुनिया में जहाँ भी अमेरिकी उत्पादों से आधुनिक सेमीकंडक्टर बन कर चीन को जा रहे हैं, अमेरिका उस पर लगाम लगाना चाहता है। जापान और नीदरलैंड – ये दो देश हैं जो चिप बनाने के उपकरणों के सबसे बड़े सप्लाईकर्ता हैं।
इन दोनों ही देशों से अमेरिका ने बात की है। जापान और नीदरलैंड अब इस सम्बन्ध में अमेरिका का साथ देंगे। ‘एक्सपोर्ट कंट्रोल’ को लेकर फोन पर अमेरिका-जापान में चर्चा भी हो चुकी है। जापान की चिप टेस्टिंग इक्विपमेंट कंपनी Advantest Corp के लिए ताइवान के बाद चीन सबसे बड़ा बाजार है। जापान दुनिया का सबसे अत्याधुनिक चिप बनाने के लिए भी अमेरिका से करार कर रहा है। ऐसे में नए ‘चिप युद्ध’ पर दुनिया की निगाहें रहेंगी।
जापान और चीन में 2 बार हो चुके हैं युद्ध: तीसरे युद्ध की आशंका से जापान ने उठाए हैं ये कदम?
कोरिया पर नियंत्रण को लेकर जापान और चीन में पहली बार युद्ध हुआ था, जो जुलाई 1894 से लेकर अप्रैल 1895 तक चला था। वहीं दूसरी बार भिड़े, तभी एशिया में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो गया था। तब जापान सम्राट मेइजी के शासन में मजबूत था, वहीं चीन के क्विंग राजवंश को तब एहसास हुआ था कि उसने अपनी सैन्य मजबूती पर ध्यान ही नहीं दिया। मेइजी ने अपने शासनकाल में जापानी युवाओं को पश्चिमी देशों में भेजा, ताकि वो वहाँ से आधुनिक तकनीक और विज्ञान सीख कर आएँ।
कोरिया और मंचुरिया पर नियंत्रण को लेकर हुए इस युद्ध में जापान विजयी हुआ था। सन् 1868 के बाद जापान में आधुनिकता का जो वातावरण बना और उसकी उन्नति शुरू हुई, उसे ‘Meiji Restoration’ भी कहते हैं। कोरिया और जापान में संधि होने से दोनों देशों में व्यापार बढ़ रहे थे और कोरिया में जापानी सेना को स्थापित करने की अनुमति मिल गई थी। बदले में ‘Donghak’ किसान विद्रोह को चीन ने समर्थन दे दिया, जिन्होंने कोरियन राजवंश के खिलाफ बगावत कर विदेशी शक्तियों के हस्तक्षेप को खत्म करने की माँग की थी।
इसके बाद जापानी सेना ने चीन की तरफ मार्च किया और पुन्गडो, सियोंघवान, असं, प्योंगयांग और यालू नदी के ास्पा भयंकर युद्ध हुआ। पोर्ट आर्थर में जापानी सेना द्वारा नरसंहार को याद कर चीनी आज भी काँप उठते हैं। अब बात करते हैं दूसरे युद्ध की, जब चीन ने नाजी जर्मनी, रूस, यूके और अमेरिका का सहयोग पाकर चीन से लड़ाई की थी। ये युद्ध जुलाई 1937 से लेकर सितंबर 1945 तक चला। जापान उस समय अपने साम्राज्य का प्रभाव बढ़ाता जा रहा था।
बीजिंग, संघई और नान्जिंग जैसे बड़े चीनी महानगरों पर जापान ने आना नियंत्रण स्थापित कर लिया था। वुहान के युद्ध में चीन की हार हुई और जापान के आक्रमण के कारण चीन को अपनी राजधानी भी शिफ्ट करनी पड़ी थी। दिसंबर 1941 में जापान ने अमेरिका से युद्ध का दिया और अमेरिका ने चीन का साथ देना और मजबूती से शुरू कर दिया। अंततः जापान पर परमाणु बम गिरे। लेकिन, उस समय भी आधुनिक जापान ने चीन की अप्रशिक्षित सेना को हरा ही दिया था।
दोकलाम-गलवान के बाद तवांग में जो हुआ, उससे चीन को मिलेगा सबक: लेकिन, भारत को रहना होगा तैयार
हाल ही में तवांग में चीनी सेना ने अरुणाचल प्रदेश में आक्रमण का प्रयास किया, लेकिन भारतीय सेना ने संख्या में कम होने के बावजूद उसे लाठी से मार-मार कर भगाया। इसके बाद चीन के अपने ही लोग वहाँ के सोशल मीडिया में अपनी सरकार की आलोचना करने लगे। चीन भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के गठबंधन को AUKUS (ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, और ब्रिटेन का संयुक्त सैन्य गठबंधन) के समान ही अपने लिए खतरे के रूप में देखता है।
हाल ही में ये खबर भी आई है कि चीन ने प्रशांत महासागर में एक लड़ाकू जहाज भेजा है और साथ ही जापान की नई रक्षा नीति की आलोचना भी की है। कूटनीतिक स्तर पर जापान और भारत के सम्बन्ध और उनकी साझेदारी जितनी ज़्यादा मजबूत होगी, चीन को ये उतना ही ज़्यादा खलेगा। 2017 में दोकलाम, 2020-21 में गलवान और 2022 में तवांग में भारतीय सेना से मार खाने के बावजूद चीनी फ़ौज सुधरने का नाम नहीं ले रही है।
हालाँकि, भारत में कॉन्ग्रेस पार्टी जैसे कुछ ऐसे तत्व हैं जो चीन को फायदा और देश को नुकसान पहुँचाने वाली बातें करते हैं। जापान के 90% लोगों का मानना है कि देश को चीन के हमले के लिए पहले से तैयार रहना चाहिए। यहाँ राहुल गाँधी जैसे लोग जनता को ये कह कर बरगलाने में लगे हैं कि हमारी सेना पिट रही है। केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने तवांग जाकर भारतीय सैनिकों से मुलाकात भी की है। भारत ने साफ़ किया है कि हमारी सेना हमलों को रोकने में पूर्णरूपेण सक्षम है।