Thursday, May 2, 2024
Homeरिपोर्टमीडियावाह रे एडिटर्स गिल्ड! जो पत्रकार नहीं उसकी चाहिए रिहाई, जो एडिटर इन चीफ...

वाह रे एडिटर्स गिल्ड! जो पत्रकार नहीं उसकी चाहिए रिहाई, जो एडिटर इन चीफ उस पर खानापूर्ति: जुबैर और अर्नब में ऐसे फर्क करता है इकोसिस्टम

मोहम्मद जुबैर के समय EGI खुद ही जज बन बैठा है और कह रहा है कि AltNews की 'सतर्क चौकसी' ने उन लोगों को नाराज़ कर दिया था, जो दुष्प्रचार को एक हथियार बना कर समाज का ध्रुवीकरण करते हैं और राष्ट्रवादी भावनाओं को उकसाते हैं।

हिन्दू देवी-देवताओं का खुलेआम अपमान करने वाले मोहम्मद जुबैर की दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ़्तारी पर ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (EGI)’ ने लंबा-चौड़ा बयान जारी किया है। इसमें AltNews के सह-संस्थापक की गिरफ़्तारी की निंदा करते हुए कहा गया है कि 2018 के एक ट्वीट को लेकर सोमवार (27 जून, 2022) को ये कार्रवाई की गई। EGI ने दिल्ली पुलिस से मोहम्मद जुबैर को तुरंत रिहा करने की माँग की है।

गिल्ड ने अपने बयान में कहा, “घटनाओं को विचित्र मोड़ देते हुए दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने मोहम्मद जुबैर को पूछताछ के लिए बुलाया था। ये 2020 का मामला था, जिसमें उच्च न्यायालय ने उन्हें गिरफ़्तारी से राहत दे रखी है। जब जुबैर ने समन पर प्रतिक्रिया दी तो उन्हें इसी महीने शुरू की गई एक आपराधिक जाँच के अंतर्गत गिरफ्तार कर लिया गया। एक अज्ञात पहचान वाले ट्विटर हैंडल ने उनके 2018 के एक ट्वीट पर धार्मिक भावनाएँ भड़काने का आरोप लगाया था।” मोहम्मद ज़ुबैर ट्विटर पर कह चुका है कि वो पत्रकार नहीं है, फिर उसके लिए EGI सामने क्यों आया?

इस बयान में कहा गया है कि IPC की धाराओं 153 और 295 लगा कर मोहम्मद जुबैर को गिरफ्तार किया जाना काफी आकुल करने वाला है, क्योंकि उसकी वेबसाइट AltNews ने पिछले कुछ समय में फेक न्यूज़ को चिह्नित करने में ‘उदाहरण पेश करने वाले’ कार्य किए हैं और ‘दुष्प्रचार अभियानों को काटा’ है। EGI का कहना है कि मोहम्मद जुबैर ने ये सब तथ्यात्मक और वस्तुनिष्ठ तरीके से किया है। साथ ही संस्था ने कहा कि टीवी पर सत्ताधारी पार्टी के एक प्रवक्ता के ‘ज़हरीले बयान’ का खुलासा था, जिस कारण पार्टी को बदलाव करना पड़ा।

अर्णब गोस्वामी EGI के लिए पत्रकार होते हुए भी पत्रकार नहीं हैं। मोहम्मद जुबैर खुद को पत्रकार न बताते हुए भी इनके लिए पत्रकार है। तभी एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया सेलेक्टिव आउटरेज का एक बड़ा उदाहरण बनता जा रहा है, जहाँ वो खुद चुनता है कि कब किसकी गिरफ़्तारी को छिपाना है और किसे उठाना है। अब संस्था बताए कि क्या वो जुबैर के हिन्दू देवी-देवताओं वाले ट्वीट्स-पोस्ट्स का समर्थन करता है? वो खुद को खुलेआम हिन्दू विरोधी घोषित कर दे फिर।

वहीं अर्णब गोस्वामी को जब उन्हें और उनके परिवार को प्रताड़ित करते हुए उद्धव ठाकरे सरकार की मुंबई पुलिस ने गिरफ्तार किया था, तब EGI ने काफी दबाव के बाद दो पैराग्राफ में बयान जारी कर इतना लिख इतिश्री कर ली थी कि पुलिस उनके साथ अच्छा व्यवहार करे। रिहाई की माँग नहीं की गई थी और जिन आरोपों के तहत उन्हें गिरफ्तार किया गया था, उन्हें हाइलाइट किया गया था। जबकि जुबैर के मामले में उसके अपराधों के बारे में कुछ नहीं बताया गया है और सीधा उसे छोड़ने की माँग की गई है।

वहीं मोहम्मद जुबैर के समय EGI खुद ही जज बन बैठा है और कह रहा है कि AltNews की ‘सतर्क चौकसी’ ने उन लोगों को नाराज़ कर दिया था, जो दुष्प्रचार को एक हथियार बना कर समाज का ध्रुवीकरण करते हैं और राष्ट्रवादी भावनाओं को उकसाते हैं। एक तरह से ऐसा लग रहा है जैसे ये किसी विपक्षी पार्टी का बयान हो, पूर्णतः राजनीतिक। लोकतंत्र को लेकर G7 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिबद्धता की याद दिलाते हुए एडिटर्स गिल्ड ने ऑफलाइन और ऑनलाइन कंटेंट्स की सुरक्षा की सलाह दी है।

अब सवाल उठता है कि जो खुलेआम खुद को पत्रकार ही नहीं मानता, उसकी रिहाई के लिए ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया’ ने क्यों दिन-रात एक किया हुआ है? जबकि जो उस समय भारत के सबसे ज्यादा टीआरपी वाले चैनल का मैनेजिंग डायरेक्टर और एडिटर-इन-चीफ है, उसके लिए सिर्फ खानापूर्ति की गई थी। EGI ने जैसे अर्णब गोस्वामी के समय आत्महत्या के लिए उकसाने वाले आरोप का जिक्र किया था, अब उसने मोहम्मद जुबैर के सारे हिन्दूफोबिया वाले ट्वीट्स का जिक्र क्यों नहीं किया?

अगर ये संस्था पत्रकारों के हितों की बात करती है तो फिर इसे राष्ट्रवाद से क्या दिक्कत? हिन्दू एकता को ध्रुवीकरण का नाम देकर इसे क्यों भला-बुरा कह रहे ये? पत्रकारिता की बात करें ना। सत्ताधारी पार्टी से इनकी क्या दुश्मनी? बंगाल में पत्रकारों पर हमले पर हमले होते हैं, तब ये कहाँ चले जाते हैं? तब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी या TMC का नाम तो छोड़िए, एक बयान तक नहीं आता। छत्तीसगढ़ और आंध्र में पत्रकार गिरफ्तार किए जाते हैं तब इनकी घिग्घी बँधी रहती है, क्योंकि वहाँ इनके आकाओं की सरकार होती है।

असल में इनका काम पत्रकारिता है ही नहीं। इनका कार्य है कॉन्ग्रेस और TMC जिसे दलों के साथ मिल कर भाजपा विरोधी एजेंडा चलाना और इसी के तहत ये तय करते हैं कि किस पत्रकार को मार भी डाला जाए तो चूँ नहीं करना है और किसे मच्छर भी काट ले तो देश-दुनिया में हंगामा मचाना है। अब इनकी कोशिश होगी कि हर एक घटना के नैरेटिव का उर्दू और अरबी में अनुवाद कर के अपने क़तर के आकाओं को भेजें और उनसे बयान जारी करवाएँ।

Special coverage by OpIndia on Ram Mandir in Ayodhya

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

TV पर प्रोपेगेंडा लेकर बैठे थे राजदीप सरदेसाई, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने निकाल दी हवा: कहा- ये आपकी कल्पना, विपक्ष की मदद की...

राजदीप सरदेसाई बिना फैक्ट्स जाने सिर्फ विपक्ष के सवालों को पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त से पूछे जा रहे थे। ऐसे में पूर्व सीईसी ने उनकी सारी बात सुनी और ऑऩ टीवी उन्हें लताड़ा।

बृजभूषण शरण सिंह का टिकट BJP ने काटा, कैसरगंज से बेटे करण भूषण लड़ेगे: रायबरेली के मैदान में दिनेश प्रताप सिंह को उतारा

भाजपा ने कैसरगंज से बृजभूषण शरण सिंह का टिकट काट दिया। उनकी जगह उनके बेटे करण भूषण सिंह को टिकट दिया गया है।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -