Saturday, July 27, 2024
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कैसे कोई गरीब देश असरदार वैक्सीन बना लेगा? PM मोदी ने ‘चुपके’ से लिया विदेशी डोज: ‘वामपंथी’ FT ने जमकर फैलाया झूठ

लिबरल मीडिया और उसके पत्रकार इस बात को मान ही नहीं पा रहे कि जिस देश को वे 'थर्ड वर्ल्ड नेशन' के तौर पर चिह्नित करते थे, उस देश ने इतने अच्छे से महामारी के समय को न केवल मैनेज किया बल्कि दूसरे देशों की मदद करने से भी नहीं चूका।

वैश्विक स्तर पर सबसे बड़े वैक्सीनेशन अभियान को चलाने और 60 से ज्यादा देशों को वैक्सीन पहुँचाने की सफलता को लेकर हर जगह भारत की चर्चा हो रही है। हालाँकि, पश्चिमी मीडिया का कुछ वर्ग ऐसा है जिसे भारत की इस कामयाबी से आपत्ति है। वह लगातार भारत का मखौल उड़ाने में लगा है और हर मुमकिन प्रयास करके देश व पीएम मोदी को बदनाम करना चाहता है।

दरअसल, लिबरल मीडिया और उसके पत्रकार इस बात को मान ही नहीं पा रहे कि जिस देश को वे ‘थर्ड वर्ल्ड नेशन’ के तौर पर चिह्नित करते थे, उस देश ने इतने अच्छे से महामारी के समय को न केवल मैनेज किया बल्कि दूसरे देशों की मदद करने से भी नहीं चूका।

इसी क्रम में फाइनेंशियल टाइम्स की साउथ एशिया ब्यूरो चीफ एमी काजमिन ने भारत की वैक्सीनेशन अभियान को बदनाम करने का प्रयास  किया। उन्होंने कुछ कॉन्सिपिरेसी थ्योरी को जोड़ते हुए ये संदेश देना चाहा कि हो सकता है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुपके से कोई विदेशी वैक्सीन का टीका ले लिया हो, क्योंकि वह खुद भारतीय वैक्सीन पर यकीन नहीं करते।

26 जनवरी 2021 को एमी काजमिम की फाइनेंशियल टाइम्स में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने भारत में चल रहे वैक्सीनेशन अभियान पर सवाल उठाए थे। साथ ही इस बात को कहा था कि पीएम मोदी ने विदेशी वैक्सीन का डोज लिया है, लेकिन ये बात सीक्रेट रखी गई है।

भारतीय वैक्सीन पर सवाल खड़े करने वाली रिपोर्ट

रिपोर्ट ने बताया कि मोदी सरकार टीकाकरण के लिए दो वैक्सीन का इस्तेमाल कर रही है, कोवीशील्ड (Covishield) और कोवैक्सीन (Covaxin)। इस पर भी विदेशी पत्रकार ने झूठ फैलाते हुए भारत बायोटेक द्वारा बनाई गई वैक्सीन पर कहा है कि इस वैक्सीन पर भारत के ही शीर्ष वैज्ञानिकों ने सवाल उठाए हैं। इतना ही नहीं रिपोर्ट में इस वैक्सीन की क्षमता पर सवाल उठाए गए। साथ ही ये दावा किया गया कि कई डॉक्टर व नर्सों ने इसे लगवाने से एतराज भी जताया।

पीएम मोदी भारतीय वैक्सीन लेने से हिचक रहे थे: FT

विदेशी पत्रकार का कहना है कि जब जो बाइडन, कमला हैरिस, इजरायल प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू, सउदी प्रिंस समेत कई विदेशी नेता सामने आकर वैक्सीन लगवा रहे थे, तब भारत के प्रधानमंत्री वैक्सीन लेने से डर रहे थे। अब गौर दीजिए कि भारत में 16 जनवरी से फ्रंटलाइन पर रहने वाले वर्करों से अभियान की शुरूआत हुई थी। ये स्पष्ट था कि इनके बाद ही किसी अन्य को टीका लगेगा। कोई राजनेता भी इस बीच पंक्ति में आगे कूदकर वैक्सीन नहीं लगवा सकता था क्योंकि हर किसी को अपनी बारी का इंतजार करना था।

बावजूद इसके एमी काजमिन एक अजीब थ्योरी लेकर सामने आईं वो भी ‘कुछ लोगों’ के हवाले से। उन्होंने ये आशंका जताई कि पीएम मोदी ने ऐसी वैक्सीन लगवा ली है जिसके प्रभाव पक्के हो चुके थे। हालाँकि, उनकी ये सारी कॉन्सपिरेसी थ्योरी तब फेल हो गई जब पीएम मोदी ने वैक्सिनेशन अभियान का दूसरा फेज शुरू होते ही कोवैक्सिन वैक्सीन का पहला शॉट 1 मार्च को लिया। इसी वैक्सीन पर एमी ने अपने कुतर्क रिपोर्ट में पेश किए थे। पीएम के वैक्सीन लेते ही लोगों में भारतीय वैक्सीन को लेकर अधिक विश्वास बढ़ा।

उल्लेखनीय है कि कुछ अन्य विदेशी न्यूज पोर्टलों ने भी कई थ्योरी दी थी। जैसे कि Pfizer और Moderna ज्यादा प्रभावी वैक्सीन हैं। लेकिन अपनी रिपोर्ट्स में शायद वो ये बताना भूल गए कि कैसे ये वैक्सीन कितनी महंगी हैं और इनसे बड़े स्तर पर वैक्सीनेशन अभियान नहीं चलाया जा सकता। इनके लिए न केवल स्टोरेज बल्कि ट्रांस्पोर्टेशन की भी आवश्यकता होती है।

इसके अलावा ये भी बड़ा सवाल है कि कई पश्चिमी वैक्सीन ऐसी हैं जो अभी ट्रायल पर हैं या जिन्हें सिर्फ़ इमरजेंसी अप्रुवल मिला है, फिर भी लिबरल मीडिया कैसे मान रहा है कि भारतीय वैक्सीन से बेहतर पश्चिमी वैक्सीन हैं।

विदेशी मीडिया में फैलाई जा रही फर्जी जानकारी

लेख में जो शीर्ष वैज्ञानिकों का हवाला देकर वैक्सीन पर सवाल उठाए गए हैं। तो उसके लिए मालूम हो कि Covaxin को भारत के प्रमुख चिकित्सा अनुसंधान निकाय ICMR के सहयोग से विकसित किया गया था। क्लीनिकल परीक्षण करने के लिए भारत बायोटेक के साथ आईसीएमआर भी काम कर रहा था। फिर ये कौन से शीर्ष वैज्ञानिक हैं?

विदेशी मीडिया का ये आर्टिकल ये तो बताता है कि प्रधानमंत्री कैमरे पर आने से शर्माए और भारत निर्मित वैक्सीन नहीं ली। लेकिन ये बताना भूल गया कि कैसे महामारी के समय में पीएम मोदी ने प्रमुखता से हर स्थिति से निपटने स के लिए चीजों को तैयार किया, जबकि विदेशी विशेषज्ञ उसमें असफल थे।

हाल में प्रकाशित एक डेटा के अनुसार, कोवैक्सीन को 81% प्रभावी पाया गया है। सिर्फ़ पीएम मोदी ही नहीं बल्कि कई नेताओं ने हड़बड़ी न करते हुए ये उदाहरण स्थापित किया कि ये वैक्सीन पहले बुजुर्ग वर्ग को दी जाएगी। पीएम ने स्वयं सभी नेताओं से उनकी बारी का इंतजार करने को कहा। ऐसे में विदेशी मीडिया में फैलाया जा रहा झूठ सिर्फ़ उनकी घटिया नीति का ही एक प्रमाण है। 

1 मार्च को दूसरे फेज की शुरुआत में पीएम एम्स पहुँचे और सुबह-सुबह एक आम नागरिक की तरह वैक्सीन लगाया।  उसके बाद मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और नीतिश कुमार समेत कई नेताओं ने आगे आकर वैक्सीन लगवाई।

अगर कोई एमी की कॉन्सिपिरेसी थ्योरी पर यकीन करता है कि पीएम ने पहले ही विदेशी वैक्सीन ले ली है, तो 1 मार्च को पीएम मोदी की वैक्सीन लगवाती तस्वीरें उनके लिए जवाब हैं। साथ ही उन अफवाहों पर भी एक विराम है जो भारतीय वैक्सीन पर सवाल उठा रहीं थे।

सबसे दिलचस्प बात ये हैं कि फाइनेंशियल टाइम्स के झूठ से पर्दा उठने के बावजूद उन्होंने पीएम मोदी पर लिखा अपना बेबुनियाद आर्टिकल डिलीट नहीं किया है और न ही उसके लिए माफी माँगी है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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