Thursday, November 14, 2024
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लाज़िम है वो NDTV नहीं देखेंगे: चैनल ने लेफ्ट को बताया JNU फसाद की जड़, वामपंथियों ने कहा- धोखा

एनडीटीवी ने दावा किया है कि जब ये हमला हुआ, तब जेएनयू के सारे स्ट्रीट लाइट्स को ऑफ कर दिया गया था। वैसे, ये पहली बार नहीं है जब जेएनयू के उपद्रवियों के प्रदर्शन के दौरान स्ट्रीट लाइट्स ऑफ किया गया हो। जब हॉस्टल फी बढ़ाने को लेकर उन्होंने विरोध प्रदर्शन शुरू किया था, तब भी स्ट्रीट लाइट्स ऑफ कर दिए गए थे।

एनडीटीवी एक ऐसा नाम है, जो किसी भी मसले की रिपोर्टिंग इस आधार पर करता है कि उसमें भाजपा, मोदी-शाह अथवा हिंदुत्व का नाम घसीटा जा सके। जहाँ इनका नाम आने की सम्भावना नहीं रहती, वहाँ एनडीटीवी ऐसा कुछ नहीं करता। मुस्लिम फ़क़ीर को काला जादू वाले तांत्रिक बना कर पेश करने वाला एनडीटीवी अरविन्द केजरीवाल को चुनावी फायदा पहुँचाने के लिए एक इंटरव्यू किया, जिसमें आप कार्यकर्ताओं को ‘आम आदमी’ बता कर उनसे केजरीवाल की तारीफ करवाई गई। ख़ासकर जब मामला भाजपा व दक्षिणपंथी संगठनों से जुड़ा हो, एनडीटीवी उसमें उनके किरदार को नकारात्मकता के साथ पेश करेगा, ऐसा तय होता है।

लेकिन, अबकी नकारात्मकता फैलाने वाले एनडीटीवी ने भी वामपंथियों को धोखा दे दिया है। एनडीटीवी ने स्वीकार किया है कि जेएनयू में हिंसा की वारदात शुरू करने में वामपंथियों का हाथ था। वामपंथी संगठन आइसा ने हिंसा की शुरुआत की। यानी, एनडीटीवी ने माना है कि इस पूरे फसाद की जड़ वामपंथी उपद्रवी हैं। पहला हमला लेफ्ट छात्रों की ओर से हुआ। एनडीटीवी की इस ख़बर से उन वामपंथियों को झटका लगना तय है, इनकी सारी उम्मीदें इस चैनल पर टिकी हुई थीं। उन्हें अप्रत्याशित तरीके से धोखा मिला है। वो शायद ही एनडीटीवी को माफ़ कर पाएँ।

एनडीटीवी ने माना है कि जब वामपंथी छात्रों ने हॉस्टल में हमला किया, तब वहाँ एबीवीपी के काफ़ी कम छात्र थे। इससे पता चल जाता है एबीवीपी से जुड़े छात्रों को किस कदर पीटा गया होगा। एनडीटीवी ने अपनी रिपोर्ट में ये भी माना है कि वामपंथियों ने वहाँ मौजूद 10 पुलिसकर्मियों से भी हाथापाई की। इसपर चुटकी लेते हुए एक ट्विटर यूजर ने लिखा- “लाजिमी है, अब वो एनडीटीवी नहीं देखेंगे!” इस पंक्ति से फैज़, एनडीटीवी और वामपंथी- तीनों पर ही निशाना साधा गया।

यहाँ तक कि एनडीटीवी की इस सूचना को एबीवीपी वालों ने भी शेयर किया। एबीवीपी ने कहा कि अब तो एनडीटीवी ने भी मान लिया है कि सारे फसाद की जड़ वामपंथी हैं। एनडीटीवी भी मान रहा है कि वामपंथियों ने एबीवीपी के कार्यकर्ताओं पर हमले करने शुरू किए। एबीवीपी ने इस ख़बर पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अगर शांति स्थापित करनी है तो ये वामपंथी संगठनों को प्रतिबंधित करने का सबसे सही समय है। इससे देश के सभी विश्वविद्यालयों में शांति आएगी। एबीवीपी की राष्ट्रीय महासचिव निधि त्रिपाठी ने इस ख़बर पर प्रतिक्रिया देते हुए लिखा:

“अब तो एनडीटीवी भी स्वीकार कर चुका है कि हिंसा का स्रोत कम्यूनिस्ट हैं। ऐसे में, फिल्म जगत और बौद्धिक जगत के भ्रमित तथाकथित लिबरल्स को भी स्वीकार करने में कोई संकोच नही करना चाहिए कि वामपंथियों ने हिंसा की है। एबीवीपी के विषय में कल से सोशल मीडिया में जो भी भ्रामक प्रचार हुआ, एनडीटीवी की ख़बर के साथ ही उसका अंत हो चुका है।”

हालाँकि, एनडीटीवी को जल्द ही समझ में आ गया गया कि उसे क्या प्रोपेगंडा फैलाना है और उसने कई ऐसे न्यूज़ रिपोर्ट्स किए, जिसमें एबीवीपी को इस हमले के लिए जिम्मेदार ठहराया गया। एबीवीपी ने संदिग्ध स्क्रीनशॉट्स के माध्यम से ऐसा दावा किया। ऐसे ही एक स्क्रीनशॉट को बरखा दत्त ने शेयर किया था। बाद में पता चला कि वो जिसे एबीवीपी का कार्यकर्ता बता कर हिंसा की साज़िश रचने का आरोप लगा रही थी, वो कॉन्ग्रेस का निकला। वो नंबर कॉन्ग्रेस से जुड़ा हुआ है, पार्टी ने भी ऐसा स्वीकार किया है। हालाँकि, कॉन्ग्रेस ने कहा कि अब वो उस नंबर की सेवाएँ नहीं ले रहा है।

दिल्ली पुलिस ने बताया है कि कई नकाबपोशों की शिनाख्त हो गई है और क्राइम ब्रांच को मामला सौंप दिया गया है। एनडीटीवी ने पत्थरबाजी के बहाने एबीवीपी पर आरोप लगाया है। एक प्रोफेसर का बयान प्रकाशित किया गया है, जिसमें उसने कहा है कि बड़े-बड़े पत्थरों से उपद्रवियों ने हमला किया। जबकि, ऑपइंडिया से बातचीत में घायल छात्रा वेलेंटिना ने बताया कि उपद्रवी शॉल के नीचे पत्थर छिपा कर लाए थे और वो सभी वामपंथी थे। ऐसे में एनडीटीवी की ख़बर को ही आधार बनाएँ और उसे वेलेंटिना के बयान से जोड़ कर देखें तो पता चलता है कि प्रोफेसरों पर भी वामपंथियों ने ही हमला किया।

एनडीटीवी ने दावा किया है कि जब ये हमला हुआ, तब जेएनयू के सारे स्ट्रीट लाइट्स को ऑफ कर दिया गया था। वैसे, ये पहली बार नहीं है जब जेएनयू के उपद्रवियों के प्रदर्शन के दौरान स्ट्रीट लाइट्स ऑफ किया गया हो। जब हॉस्टल फी बढ़ाने को लेकर उन्होंने विरोध प्रदर्शन शुरू किया था, तब भी स्ट्रीट लाइट्स ऑफ कर दिए गए थे। इसके बाद जेएनयू के छात्रों द्वारा पुलिस पर पत्थरबाजी करने की सूचना मिली थी। हालाँकि, जेएनयू के छात्रों ने कहा था कि पुलिस ने उन पर लाठीचार्ज किया। क्या ऐसा संभव नहीं कि दंगाई वामपंथियों ने पकड़े जाने के डर से स्ट्रीट लाइट्स ऑफ कर दिए हों?

हालाँकि, एनडीटीवी अब भले ही वामपंथियों को ख़ुश करने के लिए भाजपा व एबीवीपी को इस हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए 1000 लेख लिखे, डैमेज हो चुका है। वो कहते हैं न, सच छिपाए नहीं छिपता। शायद एनडीटीवी पर यही कहावत फिट बैठती है। एक लाइन की ख़बर ने वामपंथियों को इतना निराश किया है कि वो ‘अपने’ टीवी चैनल पर भी भरोसा करने से पहले शायद कई बार सोचें। वैसे, एनडीटीवी ने बड़ी चालाकी से एबीवीपी छात्रों द्वारा लगाए गए आरोपों व जारी किए गए सबूतों को छिपा लिया।

एनडीटीवी ने अपने एक भी लेख में उन स्क्रीनशॉट्स और वीडियो का जिक्र नहीं किया, जिसमें वामपंथियों द्वारा हमले करने की बात पता चलती है। शुक्रवार (जनवरी 3, 2020) को दोपहर में वामपंथी गुंडों ने रजिस्ट्रेशन कराने आए छात्रों की खुलेआम पिटाई की। प्रसार भारती सहित कई बड़े मीडिया संस्थानों ने अपने ट्विटर हैंडल से इस वीडियो को शेयर किया। लेकिन, एनडीटीवी ने एक बार भी इस वीडियो का जिक्र तक नहीं किया। हाँ, उसने ‘सूत्र’ के हवाले से दावा किया कि जेएनयू में पहले हमला लेफ्ट वालों ने किया।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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