Saturday, July 27, 2024
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‘हिजाब अच्छा तो पुरुष क्यों नहीं पहनते?’: कर्नाटक BJP सरकार को बदनाम करने के लिए ‘2 BHK’ ने बदली राय, सरस्वती पूजा पर प्रोपेगंडा

रोहिणी सिंह ने तब लिखा था, "माँ-बहनों के पास इतना 'फ्री चॉइस' है कि अगर उन्होंने इसे पहनने से इनकार किया तो उन्हें इस्लाम से बेदखल होने और अपना नाम बदलने के लिए कहा जाएगा।"

तथाकथित पत्रकार रोहिणी सिंह आजकल लगातार हिजाब और बुर्का के समर्थन में लगी हुई हैं। कर्नाटक में भाजपा सरकार पर निशाना साधने के लिए वो ऐसा कर रही हैं। खास बात ये है कि यही रोहिणी सिंह पहले इन चीजों का विरोध करती थीं, लेकिन अब चूँकि मामला एक भाजपा शासित राज्य का है – इसीलिए, उन्हें अपना उल्लू सीधा करने का एक अच्छा मौका दिख गया है। अब तो उन्होंने हिन्दू त्योहार ‘सरस्वती पूजा (वसंत पंचमी)’ का सहारा लेकर भी प्रोपेगंडा फैलाना शुरू कर दिया है।

सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने वाले अंकुर सिंह ने रोहिणी सिंह को ‘2 BHK’ बताते हुए उनके इस दोहरे रवैये की पोल खोली है। इसके लिए उन्होंने उनके कुछ पुराने ट्वीट्स भी साझा किए। शनिवार (5 फरवरी, 2022) को किए गए ट्वीट में रोहिणी सिंह ने लिखा है, “आज सरस्वती पूजा है। आज के दिन भी उन युवा महिलाओं (छात्राओं) के लिए कॉलेज के दरवाजे बंद रहेंगे, सिर्फ इसीलिए क्योंकि वो कौन हैं और क्या पहनते हैं। भारत, आपको ‘सरस्वती पूजा’ की शुभकामनाएँ।” उनके इस ट्वीट पर लोगों ने तीखी प्रतिक्रियाएँ दी हैं।

अब बात करते हैं 22 सितंबर, 2019 को किए गए उनके एक ट्वीट की। इस ट्वीट में उन्होंने एक अन्य वीडियो ट्वीट को कोट किया था, जिसमें हिजाब और महिलाओं के बारे में बताया गया था। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए रोहिणी सिंह ने कहा था, “लोल! अगर हिजाब एक अच्छा विकल्प है तो फिर पुरुष इसे क्यों नहीं पहनते हैं?” वहीं 17 फरवरी, 2020 को इसके लिए वो इस्लामी कट्टरपंथी नेता वारिस पठान के साथ बहस कर रही थीं और बुर्का-हिजाब का विरोध कर रही थीं।

इस ट्वीट में वारिस पठान ने बुर्का/हिजाब को इस्लाम में महिलाओं के लिए अनिवार्य बताते हुए कहा था कि हमारी माँ-बहनें इसे स्वेच्छा से पहनती हैं, न कि उन पर इसके लिए कोई दबाव बनाया जाता है। इस पर रोहिणी सिंह ने उत्तर दिया था, “माँ-बहनों के पास इतना ‘फ्री चॉइस’ है कि अगर उन्होंने इसे पहनने से इनकार किया तो उन्हें इस्लाम से बेदखल होने और अपना नाम बदलने के लिए कहा जाएगा।” दरअसल, वारिस पठान ने भारत में शरणार्थी के रूप में रह रहीं बांग्लादेशी लेखिका तसलीमा नसरीन को ये सलाह दी थी।

वहीं 16 अक्टूबर, 2019 को किए गए एक ट्वीट में में रोहिणी सिंह ने ये समझने की सलाह दी थी कि ‘चॉइस’ भी सामाजिक परिवेश के हिसाब से होती हैं। उन्होंने लिखा था कि महिलाओं को सामाजिक रूप से ऐसे ही ढाल दिया गया है कि उन्हें कुछ निश्चित ‘चोइसज’ बनाने पड़ते हैं। उन्होंने बुर्का/घूँघट का विरोध करते हुए कहा था कि इससे महिलाओं को अपनी इज्जत साबित करने की जिम्मेदारी दे दी जाती है। उन्होंने इसे ‘खराब चॉइस’ बताते हुए कहा था कि उनकी यही राय है।

बता दें कि कर्नाटक के स्कूल-कॉलेजों में मुस्लिम छात्राएँ जबरन हिजाब पहन कर आना चाह रही हैं, लेकिन इन शैक्षिक संस्थानों का कहना है कि ये यूनिफॉर्म का हिस्सा नहीं है। हिन्दू छात्रों ने भी भगवा स्कॉर्फ और शॉल पहन कर आकर इसका विरोध जताया। राहुल गाँधी भी माँ सरस्वती का नाम लेकर इस मामले में राजनीति खेल रहे हैं। इस्लाम में महिलाओं पर अत्याचार को भूल कर अब मीडिया के गिरोह विशेष के पत्रकार खुल कर बुर्का/हिजाब के समर्थन में आ गए हैं।

भले ही इस विरोध प्रदर्शन को ‘हिजाब’ के नाम पर किया जा रहा हो, लेकिन मुस्लिम छात्राओं को बुर्का में शैक्षणिक संस्थानों में घुसते हुए और प्रदर्शन करते हुए देखा जा सकता है। इससे साफ़ है कि ये सिर्फ गले और सिर को ढँकने वाले हिजाब नहीं, बल्कि पूरे शरीर में पहने जाने वाले बुर्का को लेकर है। हिजाब सिर ढँकने के लिए होता है, जबकि बुर्का सर से लेकर पाँव। कई इस्लामी मुल्कों में शरिया के हिसाब से बुर्का अनिवार्य है। कर्नाटक में चल रहे प्रदर्शन को मीडिया/एक्टिविस्ट्स भले इसे हिजाब से जोड़ें, ये बुर्का के लिए हो रहा है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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