मध्य प्रदेश के उज्जैन से गिरफ्तार किया गया कुख्यात गैंगस्टर, विकास दुबे, शुक्रवार (जुलाई 10, 2020) की सुबह मुठभेड़ में मारा गया था। पुलिस के अनुसार, जब गैंगस्टर विकास दुबे को उत्तर प्रदेश ले जाया जा रहा था उसी समय काफिले के साथ एक गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हुई।
इस दुर्घटना में जब पुलिस अधिकारी घायल हुए, तो विकास दुबे ने उनके हथियार छीनने और भागने की कोशिश की। उसे रोकने के प्रयास में वह पुलिस की गोली का शिकार हुआ और विकास दुबे की मौत हो गई।
गैंगस्टर विकास दुबे की मुठभेड़ में हुई मौत को लेकर सोशल मीडिया में कई तरह की प्रतिक्रियाएँ सामने आई हैं। एक ओर कुछ लोगों का कहना है कि आठ पुलिसकर्मियों को मारने वाले गैंगस्टर विकास दुबे के साथ यही होना चाहिए था जबकि कुछ ने कथित तौर पर उत्तर प्रदेश पुलिस को कानून अपने हाथों में लेने पर सवाल उठाया है। उनका कहना है कि उन्हें इस एनकाउंटर की विश्वसनीयता पर संदेह है और यह जानबूझकर किया गया।
हालाँकि, केवल एक दिन पहले ही, प्रोपेगेंडा वेबसाइट ‘द वायर’ विकास दुबे के फरार होने से लेकर उसकी गिरफ्तारी पर पूरी तरह से अलग ही दावे और काल्पनिक थ्योरी को गढ़ रहा था।
इसी ‘द वायर’ में प्रकाशित एक लेख में कहा गया है कि योगी आदित्यनाथ ‘जातिवादी’ थे, क्योंकि उनके ‘एनकाउंटर राज’ में, एक नामी ‘ब्राह्मण गैंगस्टर’ को कभी भी एनकाउंटर नहीं किया जाएगा या फिर पकड़ा नहीं जाएगा।
‘द वायर’ के लेख की शुरुआत उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के एक पुराने कथन से होती है, जिसमें उन्होंने कहा था कि अपराधियों को बख्शा नहीं जाएगा। उन्होंने कहा था कि अपराध करने वाले किसी भी व्यक्ति पर नकेल कसी जाएगी और अपराधी ‘ठोके जाएँगे।’
सबको याद है कि वर्ष 2017 में योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि उत्तर प्रदेश में अपराधी या तो जेल जाएँगे या मुठभेड़ों में मारे जाएँगे। इसके बाद द वायर के इस लेख में योगी आदित्यनाथ ही नहीं, बल्कि राज्य के पुलिसकर्मियों के कई कठोर बयान भी दिए गए हैं।
बदमाश और अपराधियों के प्रति यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के सार्वजनिक नजरिए के बारे में विस्तार से लिखते हुए ‘द वायर’ ने एक बेहद भ्रामक एजेंडा शुरू किया। द वायर ने इसमें लिखा –
“इन बयानों और प्रोत्साहनों ने पुलिस को राज्य में मुठभेड़ों के पिछले कई रिकॉर्ड तोड़ने को उकसाया और गणतंत्र दिवस, 2019 पर, आदित्यनाथ ने दावा किया कि 3,000 से अधिक मुठभेड़ों में 60 से अधिक अपराधी मारे गए थे। राज्य के मुख्य सचिव ने तुरंत आदेश जारी किए कि सभी जिला मजिस्ट्रेटों को सरकार की उपलब्धियों के रूप में इन तथ्यों को सक्रिय रूप से और व्यापक रूप से प्रचारित करना चाहिए।”
द वायर की इस रिपोर्ट में आगे लिखा गया है – ” कुछ लोगों ने देखा कि मुठभेड़ों में मारे गए और घायल हुए जिन अपराधियों के नाम हर थाने में चलाए जा रहे हैं उन लोगों की सूची में राज्य के 25 मोस्ट वांटेड अपराधी शामिल नहीं थे।”
यहाँ पर लगभग ऐसा प्रतीत होता है कि ‘द वायर’ यह तय कर पाने में असमर्थ है कि क्या वे अतिरिक्त-न्यायिक मुठभेड़ों का समर्थन करते हैं, चाहे वे परिस्थितियों का परिणाम हों या अन्यथा। या फिर क्या वे इसे मानवाधिकार उल्लंघन मानते हैं?
किसी भी तरह से, ‘द वायर’ का कहना है कि राज्य में एनकाउंटर किए गए अधिकांश लोग ‘छोटे-मोटे अपराधी’ हैं और राज्य में अब तक मोस्ट वांटेड वांछित अपराधियों में से कोई भी नहीं मारा गया।
इसी रिपोर्ट में ‘द वायर’ ने अपने प्रोपेगेंडा को और दिशा देते हुए लिखा है – “इन मुठभेड़ों के बारे में एक बात सामने आती है कि मारे गए लोगों में से आधे समुदाय विशेष से
हैं, जबकि अन्य सभी दलित और ओबीसी हैं।”
यहाँ पर ‘द वायर’ तीन बातें स्पष्ट रूप से कहता नजर आता है –
- योगी आदित्यनाथ सरकार का विकास दुबे के एनकाउंटर का कोई इरादा नहीं था।
- योगी आदित्यनाथ की सरकार सिर्फ खास समुदाय और दलितों के पीछे थी।
- योगी आदित्यनाथ की सरकार छोटे अपराधियों के पीछे थी, न कि जो बड़े नामी अपराधियों के।
ऐसे में ‘द वायर’ के इस एजेंडा से लेख का पूरा आधार ही तहस-नहस हो गया है। इस कथित लेख का आधार यह है कि योगी सरकार खास समुदाय और दलितों को ही निशाना बनाती है। हालाँकि, द वायर के दावे के विपरीत, अगर योगी सरकार का गैंगस्टर विकास दुबे से कोई मतलब नहीं होता, तो उत्तर प्रदेश पुलिस उसके अड्डे पर छापे भी क्यों मारती या उसके ठिकानों पर बुलडोजर क्यों चलवाती?
यहाँ यह ध्यान रखना आवश्यक है कि इन सभी वर्षों में, जबकि समाजवादी पार्टी के शासन में विकास दुबे ने बड़े अपराध किए और उसके खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। योगी आदित्यनाथ के शासनकाल के दौरान ही एक छापेमारी की गई थी जिसमें दुबे को पकड़ने का प्रयास किया गया था। इस प्रक्रिया में, 8 पुलिसकर्मियों की बेरहमी से हत्या कर दी गई और उसके बाद विकास दुबे पुलिस मुठभेड़ में मारा जाता है।
इसके अलावा, विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद, ‘द वायर’ का पूरा प्रपंच, जिसमें कि यह आरोप लगाने का प्रयास किया गया था कि ‘जातिवादी योगी आदित्यनाथ’ विकास दुबे को एनकाउंटर में नहीं मारेंगे या उसे गिरफ्तार नहीं करेंगे, पूरी तरह ध्वस्त हो गया।
वास्तविकता यह है कि ‘द वायर’ को विकास दुबे की मौत, उसकी गिरफ्तारी, या फिर उसके जीवित होने से भी कोई फर्क नहीं पड़ता। उसका उद्देश्य सिर्फ योगी सरकार के विरुद्ध अपना एजेंडा विकसित करना है, फिर चाहे वो किसी अपराधी की मौत पर चलाए जाए या उसके फरार होने पर।
अगर विकास दुबे बच निकलने या जिंदा रहने में कामयाब होता, तो ‘द वायर’ को भगवा पहने योगी के खिलाफ एक और लंबे समय तक चलने वाली खुराक मिल जाती। वे इस बात को दोहराते कि योगी आदित्यनाथ एक जातिवादी सीएम हैं, जिन्होंने सीएए विरोधी दंगों के दौरान खास समुदाय के खिलाफ कार्रवाई की थी, लेकिन एक गैंगस्टर, जो ‘ब्राह्मण’ था, को बस यूँ ही जाने दिया।
इसके अलावा, द वायर के पास यह घिसा-पिटा नेरेटिव तो था ही कि दुबे को ‘भागने की अनुमति’ थी क्योंकि वह राजनीतिक वर्ग के बारे में कई रहस्य जानता था और इसलिए यूपी सरकार ने उसे हिरासत में भी नहीं लिया था।
द वायर यह तथ्य भूल जाना चाहता है जो विकास दुबे की माँ ने कहा था। महज एक दिन पहले ही, विकास दुबे की माँ ने स्पष्ट रूप से कहा था कि विकास दुबे समाजवादी पार्टी का हिस्सा था। वास्तव में, उसकी पत्नी भी समाजवादी पार्टी का हिस्सा थी और भाजपा से उसका कभी भी कोई सीधा संबंध नहीं रहा।
अगर विकास दुबे फरार होने में सफल रहता तो अब तक यही ‘द वायर’ इस तरह के तथ्यों को छुपाकर हर सम्भव प्रयास करता कि गैंगस्टर विकास दुबे किसी तरह भाजपा से जुड़े।
मुठभेड़ों में बदमाशों को मारने के सिद्धांत में कोई विश्वास करता है या नहीं, एनकाउंटर पर किसी को यूपी पुलिस के बयान पर विश्वास है या नहीं, लेकिन इस पूरे प्रकरण में एक बात साबित हुई है कि योगी आदित्यनाथ की अपराध के खिलाफ लड़ाई किसी व्यक्ति की आस्था या जाति पर निर्भर नहीं है। और यह प्रेरणा निश्चित रूप से इस बात से प्रभावित होनी भी नहीं चाहिए कि ‘द वायर’ के एजेंडाबाज लोग क्या चाहते हैं।