मीडिया के अभिजात्य वर्ग में वीर सांघवी एक ऐसा नाम हैं जिनकी जिनकी शिक्षा और पत्रकारिता जगत में उपस्थिति को लेकर इंकार नहीं किया जा सकता। कल इन्हीं वीर सांघवी ने मुनव्वर फारूकी के “शर्मनाक उत्पीड़न” और तांडव को लेकर हुए “बेवजह के विवाद” पर एक लेख लिखा।
अपने लेख “हानिरहित हास्य और निर्मित क्रोध (Of harmless humour and manufactured anger)” पर उन्होंने भाजपा को लेकर बात की। इसमें उन्होंने बीजेपी पर निशाना साधने के लिए ‘सत्तावादी’, ‘आपातकाल’ और ‘अत्याचार’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया।
अब यदि आप मेरी तरह सोचते हैं तो शायद आप ये सब पढ़कर बिलकुल हैरान नहीं हुए होंगे। आखिर सच तो यही है कि इस वर्ग का एक भी दिन कैसे बीत सकता है, बिना ये कहे कि सरकार ने इनकी अभिव्यक्ति के अधिकार को इनसे छीन लिया है।
लेकिन क्या आप इस बात पर विश्वास करेंगे कि वीर सांघवी के इस आर्टिकल से लिबरल गिरोह उन पर भड़क गया है।
है न हैरानी की बात? आइए बताएँ कि वीर सांघवी के इस लेख से वामपंथियों को क्या दिक्कत हो गई।
दरअसल, वामपंथियों के लिए यहाँ तक के विचार स्वीकार्य है जब तक कोई भाजपा सरकार को अत्याचारी बताए। लेकिन ये उन्हें बर्दाश्त नहीं है कि कोई मौलवियों के लिए अपमानजनक भाषा का प्रयोग करे। उदाहरण के लिए नीचे ट्वीट देखिए।
वीर सांघवी का ट्वीट करीब 200 दफा कोट हुआ है और हर किसी ने उन पर अपनी नाराजगी सिर्फ़ एक वजह से दिखाई कि आखिर उन्होंने अपने आर्टिकल में मौलवी का अपमान कैसे किया। वीर सांघवी की टाइमलाइन पर देख सकते हैं कि वह उन चंद लोगों को रीट्वीट कर रहे हैं जिन्होंने उनके लेख के समर्थन में कहा, जबकि उनके फॉलोवर्स की संख्या 4.2 मिलियन है। यानी उनके अधिकतर साथी उनके पक्ष में नहीं है।
अब दूसरे शब्दों में यदि समझें तो हिंदू विरोधी नफरत घृणा की हद तक भारतीय लिबरल-सेकुलरों में हर पराकाष्ठा को पार कर चुकी है। ये वर्ग अब मुस्लिम समुदाय के किसी सदस्य की जरा भी आलोचना बर्दाश्त नहीं कर सकता। तब भी नहीं, जब आप भाजपा की आलोचना करते हुए उन्हें हिंदू कट्टरवादी कहें और केवल समझाने के लिए उनके समकक्ष मुस्लिम चरमपंथियों को रख दें।
लिबरल गिरोह आपको इतनी अनुमति भी नहीं देता कि आप ये समझें कि मुस्लिम चरमपंथियों का कोई अस्तित्व भी है। ये नए तरह के वामपंथी हैं, ये सिर्फ़ हिंदू कट्टरता के लिए भाजपा को इल्जाम देना चाहते हैं और उन्हें ही सबसे बड़ा और एकलौता भक्षक के तौर पर पेश करता चाहते हैं। उन्हें ये स्वीकार्य ही नहीं है कि उनकी तुलना किसी और से हो।
अब बताते हैं कि आखिर वीर संघवी ने अपने लेख में भाजपा की तुलना करते हुए ऐसा क्या लिख दिया कि सब वामपंथी इतना भड़क गए। उन्होंने लिखा:
यह एक रणनीति है जिसमें कई मुस्लिम कट्टरपंथियों ने सफलतापूर्वक महारत हासिल की है। सबसे प्रसिद्ध उदाहरण लें: सलमान रुश्दी के ‘satanic verses’ पर विवाद। उस क़िताब पर प्रतिबंध लगाने वाले लोगों में से किसी ने भी इसे नहीं पढ़ा था। उन्हें इस बात का कोई अंदाजा नहीं था कि क्या इसने इस्लाम का मजाक उड़ाया है। लेकिन उन्होंने किसी भी तरह से विरोध प्रदर्शन किया और उपन्यास को बैन कर दिया।”
इसमें लिखा, “एक अयातुल्ला खुमैनी (Ayatollah Khomeini,) जिन्होंने सलमान रुश्दी या किताब के बारे में पहले कभी सुना भी नहीं था, उन्होंने यह कह दिया कि किताब में पैगंबर का मजाक उड़ाया गया। खुमैनी ने तुरंत एक फ़तवा जारी किया जिसमें उनके चाटुकारों ने रुश्दी को मारने की बात कही।”
समझें? हिंदुओं से घृणा का स्तर कितना अधिक व्यापक है कि यदि भाजपा की तुलना अयातुल्ला खुमैनी (Ayatollah Khomeini,) से भी हो जाए तो नाराजगी दिखने लगती है। मानो जैसे बेचारे अयातुल्ला ने ऐसा भी क्या कर दिया कि उसकी तुलना ‘फासीवादी’ भाजपा से की जाए।
ये हकीकत है भारतीय लिबरलों की। आप यदि ये भी सोचें कि अयातुल्लाह खुमैनी से बद्तर सरकार को आपने चुना है तो भी आपकी बात बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
अब ध्यान दीजिए कि अगर भारतीय लिबरलों के लिए असली लिबरल वीर सांघवी जैसे पत्रकार नहीं हैं तो कौन है जो भाजपा पर भी निशाना साधे और मुस्लिमों के हित के लिए भी बोले? बता दें कि इस सूची में सबसे ताजा उदाहरण AIUDF के मुखिया बदरुद्दीन अजमल का हो सकता है।
जी हाँ, कल ही की बात है कि AIUDF के मुखिया बदरुद्दीन अजमल ने एक रैली में कहा है कि भाजपा के पास देश की 3,500 मस्जिदों की सूची है। अगर यह केंद्र में फिर से सत्ता में आते हैं , तो वे उन सभी मस्जिदों को ध्वस्त कर देंगे।
अजमल ने राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा, “यदि भाजपा असम चुनाव फिर से जीतती है, तो वे महिलाओं को ‘बुर्का’ पहनकर बाहर नहीं निकलने देंगे, दाढ़ी नहीं बढ़ाने देंगे, इस्लामी टोपी नहीं पहनेंगे देंगे और मस्जिदों में ‘अज़ान’ भी नहीं होने देंगे।”। क्या आप इस तरह से रह पाएँगे?”