द वायर और उसके सम्पादक सिद्धार्थ वरदराजन एक बार फिर बेनकाब हो गए हैं। इस बार उन्हें आईना खुद सुप्रीम कोर्ट में दिखाया गया है, जहाँ उनके और पत्रकारिता के समुदाय विशेष के द्वारा कश्मीर के बारे में फैलाए जा रहे झूठ की पोल एक बार फिर खुल गई है। घाटी में बच्चों को अवैध रूप से हिरासत में लिए जाने की जाँच करने गए हाईकोर्ट जजों के विशेष दल ने लौटकर सुप्रीम कोर्ट को बताया कि राज्य की सभी जेलें देखने के बाद भी उन्हें कोई बच्चा या किशोर कैद नहीं मिला।
Four judges of Jammu and Kashmir High Court, today filed their report in Supreme Court saying that the allegation by the petitioner, Enakshi Ganguly, that minors were detained by state authorities in the Valley, after the abrogation of article 370, is wrong. pic.twitter.com/VBIw4B3E6F
— ANI (@ANI) December 13, 2019
उनकी रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार करते हुए वॉशिंगटन पोस्ट में छपी खबरों को नकार दिया है। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि जब 4 हाईकोर्ट जज जाकर देख कर आए हैं और एक बात कह रहे हैं, तो मीडिया की सुनी-सुनाई बातों पर जाने का क्या तात्पर्य।
SC says that it cannot give credence to a news report published in Washington Post on illegal detention of children in J&K after fact finding team of four HC judges find that no child is detained. https://t.co/4KTlHEkcUm
— Amit Anand Choudhary (@amitanandTOI) December 13, 2019
गौरतलब है कि कश्मीर से 370 के तहत मिला विशेष दर्जा छिनने के तुरंत बाद से ही मीडिया गिरोह ने चिल्लाना शुरू कर दिया था कि कश्मीर में बच्चों और किशोरों को सेना व पुलिस ने उठा कर वयस्कों की तरह ही जेल में ठूँस दिया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय से लेकर के तत्कालीन राज्यपाल सत्यपाल मलिक, सेना के अधिकारियों से लेकर पुलिस के स्थानीय थानेदारों तक सभी के नकारने के बाद भी यह प्रोपेगेंडा थमा नहीं, बल्कि इसे अंतरराष्ट्रीय हवा भी दी जाने लगी।
आज जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के 4 जजों ने साफ कहा कि याचिकाकर्ता एनाक्षी गांगुली का किशोरों के जेलों में अवैध रूप से बंद होने का दावा गलत है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि फिर वायर इस आशय की रिपोर्ट कैसे और क्यों छाप रहा है।
यह पहली बार हो रहा हो, ऐसा भी नहीं है। इसके पहले भी अक्टूबर में उसी हाई कोर्ट के 4 जज गए थे पत्रकारिता के समुदाय विशेष के इन्हीं आरोपों के चलते, और लौटकर उन्होंने रिपोर्ट दी सुप्रीम कोर्ट को कि सारे आरोप बेबुनियाद हैं।
लेकिन एक महीने बाद इन्हें तसल्ली देने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट से फिर से एक बार कहा कि 4 जज जाएँ और हालात का ताज़ा जायज़ा लें। वे गए, और लौटकर फिर से एक बार वही बात बताई, जो पहले भी सामने आ चुकी थी।
ऐसे में मीडिया गिरोह और इसके सबसे बड़े सरगना सिद्धार्थ वरदराजन को यह बताना चाहिए कि उनकी कहानी के हिसाब से जेलों में बंद करीब 150 नाबालिग कहाँ चले गए। यही नहीं, इस विषय पर उनका हालिया प्रोपेगंडा लेख पाकिस्तान के अख़बार डॉन के साथ साझे की खेती में छपा है। इसके बारे में भी उन्हें स्पष्टीकरण देना चाहिए कि इसके लिए उन्होंने डॉन से पैसा लिया और उसे भारत-विरोधी प्रोपेगेंडा बना कर दिया, या फिर उनके पास भारत का नमक खाते हुए नमकहरामी करने वालों की पौध में कमी आ गई, जो डॉन से प्रोपेगेंडा खरीदना पड़ रहा है।
अंत में मोदी सरकार और गृह मंत्री अमित शाह से वह सवाल, जो सोशल मीडिया पर आज सैकड़ों लोग पूछ रहे हैं: अमेरिकी नागरिक वरदराजन को आखिर किस मजबूरी के तहत भारत के मीडिया संस्थान (भले ही वामपंथी प्रोपेगंडा पोर्टल ही क्यों न हो) का मुखिया बने रहने दे रही है सरकार? क्यों नहीं कोई कानून ले आती कि भारतीय राजनीति को भारत की ज़मीन पर और भारत के संसाधनों से कवर कर रहे अख़बारों, चैनलों, पोर्टलों आदि में प्रमुख पदों पर केवल भारतीय नागरिक ही नियुक्त हो सकते हैं? आखिर अभिव्यिक्ति की स्वतंत्रता झूठ फ़ैलाने का तो लाइसेंस नहीं होती!
How can Yankee comrade @svaradarajan still be allowed to operate in India? pic.twitter.com/1sBcSTRBxF
— iMac_too (@iMac_too) December 13, 2019