Saturday, July 27, 2024
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थ्रोबैक (बिकॉज़ व्हाई नॉट): जब कन्हैया कुमार ने भरा था लड़की से ‘अभद्र व्यवहार’ का जुर्माना

बाक़ी, दास्तानगोई वाले महमूद फ़ारूकी का मामला हो या तहलका काण्ड के कुख्यात पत्रिका संचालक को बचाने की मुहीमें, गिरोहों के लिए अपने साथियों को बचाने की कोशिशें नई तो बिलकुल नहीं हैं।

कहते हैं फ़िल्में समाज का आईना होती हैं। अवसाद को बेचने में गिरोहों को कैसी महारत हासिल होती है, इसका एक नमूना ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’ नाम की पुरस्कृत फ़िल्म में दिखा था। ज्यादा भीख मिल सके इसके लिए फ़िल्म में एक गिरोह, अच्छा गाने वाले एक लड़के को अंधा बनाना चाहता था। उनका ख़याल था कि अंधा भिखारी अच्छा गाता हो तो ज़्यादा भीख मिलेगी। कुछ इसी तर्ज़ पर एक तथाकथित छात्र नेता भी अवसाद बेचने निकले तो उन्होंने बताया कि उनकी माँ की तनख़्वाह तीन हज़ार रुपये है।

फ़रवरी 2016 के जिस दौर में कन्हैया कुमार इस दावे के साथ सामने उतरे थे उनके पास सहानुभूति बटोरने की कोशिशों की वजह भी थी। ये वो दौर था जब भारत में सोशल मीडिया काफ़ी सज़ग हो चुका था और जनता को समझ में आने लगा था कि अगर उनके मुद्दे परम्परागत पेड मीडिया नहीं उठाता है तो वो ख़ुद इसे सोशल मीडिया के ज़रिए लोगों के सामने ला सकते हैं। सोशल मीडिया की दी हुई इसी ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ का फ़ायदा एक स्त्री ने उठाया। जब अभिजात्यों का वर्ग नए पोस्टर बॉय के इंटरव्यू के दौरान कॉन्डोम की तलाश में लगा था तो उन्होंने जुर्माने की चिट्ठी सार्वजनिक कर दी!

उसके बाद तो वही हुआ जो होना था। गिरोहों का सबसे पहला काम होता है कि अभियुक्त अगर अपने पक्ष का हो तो सामाजिक रूप से पीड़िता का ही चरित्रहनन करने में जुट जाओ। अदालतों में ऐसे मामलों में पीड़िता के चरित्र पर सवाल उठाना भारी पड़ सकता है, लेकिन आम बातचीत में गिरोहों को ऐसा करने से कौन रोकता? जब झूठे होने और मीडिया लाइमलाइट के लिए मक्कारी करने जैसे आरोप आने लगे तो यूनिवर्सिटी से ज़ारी काग़ज़ भी आरोप लगाने वाली लड़की ने सार्वजनिक कर दिए।

आख़िरकार, अभिजात्य गिरोहों को झुकना पड़ा और पहले टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने, और फिर अगले ही दिन 11 मार्च 2016 को द हिन्दू और द पायनियर ने इस ख़बर को अपने पन्नों पर जगह दी। पीड़िता ने शिक़ायत यूनिवर्सिटी के चीफ़ प्रॉक्टर के पास दर्ज करवाई थी। इस शिक़ायत के मुताबिक़ 10 जून 2015 की सुबह जब पीड़िता सुबह जॉगिंग के लिए निकली थी तो पूर्वांचल रोड पार करते वक़्त उन्होंने ब्रह्मपुत्र छात्रावास में रहने वाले कन्हैया कुमार को सड़क पर पेशाब करते पाया।

उन्होंने छात्र नेता को ये कहते हुए मना किया कि हॉस्टल में इतनी जगह है तो वो बाहर सड़क पर ये अश्लील हरक़त क्यों कर रहा है? इसपर भड़ककर कन्हैया कुमार उनके काफ़ी पास आ गया, लड़की से अभद्रता की, धमकाने वाले अभद्र इशारे किये, और ‘देख लूँगा’ की धमकी देता हुआ गया। जब जाँच में इन आरोपों को सही पाया गया तो लड़की से “अभद्रता” करने के जुर्म में कन्हैया कुमार पर विश्वविद्यालय प्रशासन ने जुर्माना लगाया था। कमलेश ने इस मामले पर लिखा था कि कैसी विडंबना है कि महिलाओं से “अभद्रता” करने वाला विमेंस डे पर भाषण दे रहा है! इस ग़रीब ने बिलकुल उतना ही जुर्माना भरा है, जितनी वो अपनी माँ की तनख़्वाह बताता रहता है।

बाक़ी, दास्तानगोई वाले महमूद फ़ारूकी का मामला हो या तहलका काण्ड के कुख्यात पत्रिका संचालक को बचाने की मुहीमें, गिरोहों के लिए अपने साथियों को बचाने की कोशिशें नई तो बिलकुल नहीं हैं। हाँ ग़लती और अपराध में आम लोग अब अंतर याद दिला देते हैं, ये और बात है।

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Anand Kumar
Anand Kumarhttp://www.baklol.co
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