Saturday, April 20, 2024
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‘खुले में नमाज पर आपत्ति क्यों?’ काँवड़ियों पर पुष्प वर्षा से बरखा दत्त को लगी मिर्ची, लोगों ने कहा- भोले के भक्त सड़क नहीं कब्जाते

"भोलेनाथ के भक्त काँवड़िया साल में एक महीने के लिए आते हैं। ज़मीन पर क़ब्ज़ा करके नहीं बैठ जाते। तुलना तो ठीक से करिए बरखा दत्त जी।"

सावन के महीने में काँवड़िए बाबा भोलेनाथ को जल चढ़ाने के लिए कोई हरिद्वार तो कोई काशी निकल पड़ा है। उनके लिए जगह-जगह लंगर, आराम करने की जगह से लेकर हरिद्वार में उनपर पुष्प वर्षा भी हो रही है। इस बीच NDTV की पूर्व पत्रकार और मोजो न्यूज़ की संपादक, बरखा दत्त को पुष्प वर्षा से मिर्ची लगी है। जिसके बाद उन्होंने ट्विटर पर आकर इस इसमें प्रशासन की संलिप्तता का विरोध किया है।

उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, “राज्य के अधिकारियों के लिए काँवड़ियों पर पंखुड़ियों की बौछार करना लेकिन सार्वजनिक स्थानों पर नमाज़ पर आपत्ति जताना कैसे ठीक है? मैं साझा सार्वजनिक स्थानों पर फैले धर्म की प्रशंसक नहीं हूँ, लेकिन यह खुले तौर पर पक्षपातपूर्ण है।”

एक तरह से सार्वजनिक स्थानों पर नमाज के विरोध को देखते हुए उन्होंने काँवड़ियों पर सधा हुआ अटैक किया है। यहाँ उन्हें राज्य की संलिप्तता अखर रही है जबकि कोई त्यौहार सही से उस देश या प्रदेश के लोग मना पाएँ यह भी उसी की जिम्मेदारी होती है। हालाँकि, बरखा दत्त के ट्वीट पर जहाँ लिबरल और वामपंथी गिरोह समर्थन में उतरा तो वहीं बहुत से लोगों ने सोशल मीडिया पर करारा जवाब दिया है।

बरखा दत्त को जवाब देते हुए मृत्युंजय कुमार ने लिखा, “भोलेनाथ के भक्त काँवड़िया साल में एक महीने के लिए आते हैं। ज़मीन पर क़ब्ज़ा करके नहीं बैठ जाते। तुलना तो ठीक से करिए बरखा दत्त जी।”

वहीं स्टोरीटेलर नामक ट्विटर हैंडल ने लिखा, “आपकी बात सराहनीय है लेकिन नमाज़ रोज़ाना 5 बार होती है, जो सुबह अज़ान के साथ शुरू होती है और शाम को समाप्त होती है। नमाज और संबंधित लोगों की संख्या और वार्षिक काँवड़ियों के अनुपात में दूसरे मामले में असुविधा ज़्यादा है। कुरान में सड़कों पर नमाज़ अनिवार्य नहीं है लेकिन वे सड़क… यह एक लंबी बहस है।”

इस मामले में कई लोगों ने बरखादत्त के नमाज से काँवड़ियों की तुलना पर उन्हें यही बात समझाई कि नमाज एक दिन में पाँच बार होती है और जिसके लिए मस्जिद जाने में कोई मनाही नहीं है लेकिन सड़क पर नमाज अनिवार्य नहीं है। और वह रोज की असुविधा है जबकि काँवड़िया साल भर में एक महीने के लिए बाहर निकलते हैं और काँवड़ यात्रा घर में नहीं हो सकती। इसलिए इनकी तुलना ही बेकार है। लोगों ने बरखा दत्त को इस बात पर भी लताड़ भी लगाई है।

आप लोगों के रिएक्शन देख सकते हैं। नीचे कुछ ट्वीट दिए गए हैं।

हालाँकि, देखा जाए तो यही बरखा दत्त खुलकर कभी हज सब्सिडी या सड़कों पर नमाज के विरोध में एक शब्द भी कहने या लिखने नहीं आतीं। कभी सरकारी संस्थानों या यहाँ तक कि पूर्व के मंत्रियों-नेताओं के घरों में दिए गए रोजा इफ्तार पर के खिलाफ कभी सवाल नहीं उठाया होगा। इनके ट्वीट अक्सर होली, दिवाली या सनातन हिन्दू धर्म से जुड़े पर्वों पर ही आते हैं। इसलिए बहुत से लोग अपनी टिप्पणियों में इन्हीं मुद्दों पर बरखा दत्त जैसे वामपंथी-लिबरल गिरोह से जवाब माँग रहे हैं।

बता दें कि हाल ही में एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें मेरठ के आईजी रेंज प्रवीण कुमार और डीएम दीपक मीणा हेलिकॉप्टर से काँवड़ियों पर फूल बरसा रहे हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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