Monday, November 4, 2024
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दलित घोड़ी क्या चढ़ने लगे, शादी में दिखने लगी क्रूरता: हिंदूफोबिक ही नहीं, एंटी दलित भी है पेटा

पेटा के इस ट्वीट पर प्रतिक्रिया देते हुए यूजर्स ने उसके हिंदू विरोधी चरित्र को भी उजागर किया है। खुद को जानवरों के हित और अधिकारों का पैरोकार बतातने वाली पेटा ने पिछले साल रक्षाबंधन पर्व के लिए चमड़ा मुक्त अभियान (लेदर फ्री कैम्पेन) चलाया था।

कॉन्ग्रेस शासित राजस्थान की राजधानी है जयपुर। जयपुर जिले के विराटनगर का एक छोटा सा गाँव है सूरजपुरा। ज्यादा पुरानी बात नहीं है, इसी साल अप्रैल में खबर आई थी कि पहली बार इस गाँव में कोई दलित दूल्हा घोड़ी पर चढ़ा। ऐसी खबरें बेहद सुकून देती हैं, क्योंकि ऐसी हर खबर मुस्लिम-अंग्रेजी दासता के दौरान हिंदुओं को विभाजित करने के नाम पर समाज में घुसेड़ी गई गंदगी के खिलाफ स्वच्छता अभियान का हिस्सा हैं।

देश के स्वतंत्र होने के बाद कॉन्ग्रेसी और वामपंथी गिरोह ‘ब्राह्मणवादी/सवर्ण मानसिकता’ का नाम देकर ऐसी गंदगी को खाद देने का काम करते रहे हैं। मसलन 2018 में स्वयंभू दलित मसीहा दिलीप मंडल ने बीबीसी में बकायदा एक लेख लिखकर पूछ भी लिया था- ‘दलितों के घोड़ी पर चढ़ने से सवर्णों को कष्ट क्यों है?’

बीबीसी के लिए लिखा गया दिलीप मंडल का लेख

अब ऐसा लगता है कि अपने हिंदूफोबिक करतूतों को लेकर अक्सर चर्चा में रहने वाला पेटा इंडिया भी ब्राह्मणवादी मानसिकता से ग्रसित है। यदि ऐसा नहीं होता तो सूरजपुरा की खबर के चंद महीने बाद ही पेटा को यह कहने की क्या जरूरत थी, “शादी समारोहों में घोड़ी का उपयोग करना अपमानजनक और क्रूर है।”

पेटा यानी पीपल फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनिमल्स ने सोमवार (11 अक्टूबर 2021) को शाम के करीब 7 बजे यह ट्वीट किया था। इसका विरोध किया जाना चाहिए था और सोशल मीडिया में लोग कर भी रहे हैं। पेटा इंडिया पर प्रतिबंध की माँग रही है।

पूर्व आईपीएस अधिकारी एम नागेश्वर राव ने बताया है कि चैरिटेबल संस्था पेटा हिंदू और भारत विरोधी है। उन्होंने केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को टैग करते हुए कंपनीज एक्ट की धारा-8 के तहत इसका पंजीकरण तुरंत रद्द करने की अपील की है। कुछ और यूजर्स की प्रतिक्रिया पर नीचे गौर करिए;

आर्यन शुक्ला नाम के यूजर ने लिखा है, “जानवरों को मार कर खाना सही है, क्योंकि खाने की आजादी है। क्या जानवरों का भक्षण करने वालों का पेटा पालतू है? घोड़ी पर बैठना अपमानजनक और क्रूर है? जानवरों को मार कर खाने वाले सही हैं?”

एक यूजर ने लिखा है, “पोलो के लिए घोड़ों की सवारी करना अच्छा है! दौड़ प्रतियोगिता के लिए घोड़ों की सवारी करना कुलीन है! पुलिस के लिए घोड़ों की सवारी करना सिविल है! लेकिन… शादी के लिए घुड़सवारी करना क्रूर है! यदि कट्टरता को संस्थागत रूप दिया गया, तो इसे ‘पेटा’ के रूप में जाना जाएगा।”

सपना मदान नाम की एक यूजर ने ट्वीट कर रहा है कि घोड़ी का इस्तेमाल क्रूरता है। लेकिन त्योहारों पर जानवरों को काटना क्रूर नहीं है। मैं खुश हूँ कि मैंने बहुत पहले पेटा को डोनेट करना बंद कर दिया था।

एक यूजर ने ट्वीट किया है, “घोड़ों से इतनी मोहब्बत है पेटा को पर बकरों और ऊँट से नफरत क्यों है। उन्हें जब कुर्बानी के नाम पे मारते हैं तो पेटा को बहुत अच्छा लगता है। इस डरपोक संस्था को बंद करो इसका कोई महत्व नहीं है। सभी डरते हैं। इनका टारगेट सिर्फ हिंदू हैं।”

पेटा के इस ट्वीट पर प्रतिक्रिया देते हुए यूजर्स ने उसके हिंदू विरोधी चरित्र को भी उजागर किया है। खुद को जानवरों के हित और अधिकारों का पैरोकार बतातने वाली पेटा ने पिछले साल रक्षाबंधन पर्व के लिए चमड़ा मुक्त अभियान (लेदर फ्री कैम्पेन) चलाया था। जबकि इसका किसी भी सूरत में इस पर्व से कोई लेना-देना नहीं है। वैसे पेटा कैसा ‘पशु प्रेमी’ है इसे आप इस बात से भी समझ सकते हैं कि उसे बूचड़खानों (कानूनी) में गायों के कटने से दिक्कत नहीं। लेकिन आपके दूध और पनीर से है। हिंदू त्योहारों पर प्रकृति प्रेमी, जीव प्रेमी हो जाने वाला पेटा बकरीद जैसे मौकों पर जब हजारों की संख्या में खुलेआम जानवर काटे जाते हैं तब चुप हो जाता है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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