कॉन्ग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और वायनाड से लोकसभा सांसद राहुल गाँधी ने एक ही दिन में ट्विटर पर 69 लोगों को फॉलो करना छोड़ दिया है। पहले जहाँ वे 315 लोगों को ट्विटर पर फॉलो कर रहे थे, वहीं यह संख्या अब गिर कर 246 हो गई है। पहले का आँकड़ा उनके ट्विटर अकाउंट के आर्काइव्ड संस्करण से लिया गया है।
वेबसाइट socialblade.com पर राहुल गाँधी के अकाउंट की जानकारी खंगालने पर हमें पता चला कि उन्होंने 21 नवंबर, 2019 को एक ही झटके में 69 लोगों को अनफॉलो कर दिया था।
इस आकस्मिक बदलाव का कारण क्या है, इसको लेकर कयास ही लगाए जा सकते हैं।
कॉन्ग्रेस IT सेल के नेतृत्व में बदलाव
“भाजपा आईटी सेल” को अपने खिलाफ उठने वाली हर आवाज़ का ज़िम्मेदार ठहराने वाली कॉन्ग्रेस की भी खुद की आईटी सेल है, जिसकी अध्यक्षा कन्नड़ फिल्मों की अभिनेत्री राम्या उर्फ़ दिव्या स्पंदना को मई, 2017 में बनाया गया था। लेकिन अपने दाहिने हाथ कहे जाने वाले चिराग पटनायक के खिलाफ यौन उत्पीड़न के मामले को दबाने और पीड़िता को परेशान करने के आरोपों के बाद राम्या ने यह पद छोड़ दिया। बाद में राहुल गाँधी ने यह ज़िम्मेदारी रोहन गुप्ता को सौंपी।
ऐसे में यह सम्भव है कि इन 69 लोगों में से कई स्पंदना के नेटवर्क के लोग रहे होंगे, जिन्हें राहुल ने केवल शिष्टाचारवश या स्पंदना के कहने पर फॉलो कर दिया होगा। अब जबकि आईटी सेल में नए निजाम रोहन गुप्ता हैं, तो ज़ाहिर सी बात है कि राम्या के लोगों को मिल रही सुविधाएँ, जिनमें लग रहा है कि राहुल बाबा द्वारा फॉलो किया जाना भी शामिल है, बंद होंगी।
JNU का बवाल
एक एंगल यह भी हो सकता है कि राहुल गाँधी के राजनीतिक सलाहकारों में से एक प्रमुख नाम संदीप सिंह इस कदम के पीछे हों। एक समय कॉन्ग्रेस के विरोधी रहे और जेएनयू में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को काले झंडे दिखाने वाले संदीप अब राहुल के भाषण भी लिखते हैं।
एक संभावना यह भी हो सकती है कि अगर राहुल गाँधी का अकाउंट संभालने की ज़िम्मेदारी उन्हें दे दी गई होगी तो उन्होंने कॉन्ग्रेस के वामपंथी इकोसिस्टम का हिस्सा रहते हुए भी जेनएयू में फीस और अन्य नियमों को लेकर हुए बवाल पर कम्युनिस्टों से अलग लाइन लेने वाले या मौन साध लेने वाले अकाउंट्स को अनफॉलो कर दिया होगा। इस हाइपोथिसिस को बल इस बात से भी मिलता है कि जेएनयू का बवाल भी चरम पर 21 नवंबर के ही आसपास पहुँचा था।
विशुद्ध राजनीति?
महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में कॉन्ग्रेस कई तरह की उथल-पुथल से जूझ रही है। मध्य प्रदेश में जहाँ ज्योतिरादित्य सिंधिया न केवल मुख्यमंत्री कमलनाथ के समानांतर शक्ति का केंद्र बनकर उभर रहे हैं बल्कि आलाकमान को भी पार्टी छोड़ने की मौन धमकी अपने ट्विटर बायो में से कॉन्ग्रेस हटा कर दे चुके हैं, वहीं महाराष्ट्र में भी चीज़ें उनकी मर्ज़ी के हिसाब से नहीं जा रहीं हैं।
माना जा रहा है कि ‘हिंदुत्ववादी’ के बिल्ले को छोड़ने से शिव सेना के परहेज के चलते राहुल उसके साथ जाने के पक्ष में नहीं थे, लेकिन सोनिया गाँधी, जिन्हें कमलनाथ ने कथित तौर पर मनाया था, ने अपनी मुहर इस बेमेल गठबंधन पर लगा दी थी। ऐसे में हो सकता है कि कॉन्ग्रेस के भीतर ही अपनी मनमर्ज़ी के रास्ते में खड़े होने वालों को राहुल गाँधी ने अनफॉलो कर दिया हो।
बहरहाल, चाहे इतने सारे लोगों को एक ही झटके में अनफॉलो करने की राहुल गाँधी की जो भी वजहें रहीं हों, बेहतर यही होगा कि वे अपने संसदीय क्षेत्र, अपनी पार्टी और देश के प्रति ज़िम्मेदारी को समझते हुए विपक्षी नेता के तौर पर ज़मीन पर उतरें, न कि ट्विटर पर ही सारी वीरता दिखाएँ। वायनाड, कॉन्ग्रेस, लोकतंत्र और खुद राहुल गाँधी- चारों का हित इसी में है।
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