Friday, April 19, 2024
Homeराजनीति166 लोगों की मौत के तुरंत बाद 800 लोगों के साथ 'पार्टी ऑल नाइट'...

166 लोगों की मौत के तुरंत बाद 800 लोगों के साथ ‘पार्टी ऑल नाइट’ में मशगूल हो गए थे राहुल गाँधी

मुंबई हमले के तुरंत बाद राहुल गाँधी दिल्ली के ग्रामीण इलाक़े में स्थित एक फार्महाउस में पार्टी करते पाए गए थे। तब तक बलिदानी मेजर संदीप उन्नीकृष्णन की माँ की आँखों के आँसू भी नहीं सूखे थे। 174 मृत लोगों के परिजनों का गम ताज़ा ही था। 300 घायलों के परिचित अभी भी अस्पतालों के चक्कर काट रहे थे

“राहुल गाँधी ने 26/11 मुंबई हमलों में वीरगति को प्राप्त हुए जवानों का तिरस्कार किया है। उन्होंने देश के लिए अपनी जान न्योछावर कर देने वाले हेमंत करकरे, अशोक कामटे, तुकाराम अम्बोले और विजय सालस्कर जैसे मराठा पुलिसकर्मियों की बहादुरी का अपमान किया है। उन्होंने एनएसजी के मेजर संदीप उन्नीकृष्णन को अपमानित किया है। जब मुंबई में हमला हुआ, तब राहुल कहाँ थे?”

ये बयान शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे का है। पुराना है। वही उद्धव ठाकरे, जिनकी उपस्थिति में सोमवार (नवंबर 25, 2019) को कॉन्ग्रेस, शिवसेना और एनसीपी के विधायकों को शपथ दिलाई गई। वह शपथ क्या थी? शपथ थी कि सभी विधायक सोनिया गाँधी, शरद पवार और उद्धव के नेतृत्व में अपनी पार्टियों के प्रति निष्ठावान बने रहेंगे। इस दौरान पूर्व मुख्यमंत्री और कॉन्ग्रेस नेता अशोक चव्हाण ने शिवसेना के साथ गठबंधन के लिए सोनिया और राहुल गाँधी को धन्यवाद दिया। ऊपर उद्धव के जिस बयान का हमने जिक्र किया है, वो फ़रवरी 2010 का है। दरअसल, राहुल गाँधी ने शिवसेना के उत्तर भारत विरोधी रुख पर प्रहार करते हुए बताया था कि कैसे उत्तर भारतीय एनएसजी कमांडोज़ ने आतंकियों को चित किया। उद्धव इसी पर प्रतिक्रिया दे रहे थे।

राजनीति है। उद्धव के उस बयान के 9 साल होने को आए। सब कुछ बदल गया है। अब उद्धव कभी राहुल से ये नहीं पूछेंगे कि वो मुंबई हमलों के वक़्त या उसके बाद वे कहाँ थे? कम से कम इन परिस्थितियों में तो बिलकुल भी नहीं पूछेंगे। तो इस बयान से सवा 2 साल और पीछे चलते हैं। नवम्बर 26, 2008 का दिन किसको याद नहीं? यही वो दिन है, जब पाकिस्तान से आए 10 आतंकियों ने मुंबई को थर्रा दिया था। इस हमले में 174 लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा था। यूपीए-1 की सरकार थी। राहुल गाँधी कॉन्ग्रेस के महासचिव थे। मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री थे। सोनिया गाँधी सरकार की सर्वेसर्वा थीं, कॉन्ग्रेस की अध्यक्ष थीं।

मुंबई हमले के तुरंत बाद राहुल गाँधी दिल्ली के ग्रामीण इलाक़े में स्थित एक फार्महाउस में पार्टी करते पाए गए थे। तब तक बलिदानी मेजर संदीप उन्नीकृष्णन की माँ की आँखों के आँसू भी नहीं सूखे थे। 174 मृत लोगों के परिजनों का गम ताज़ा ही था। 300 घायलों के परिचित अभी भी अस्पतालों के चक्कर काट रहे थे। लेकिन, कॉन्ग्रेस के भावी अध्यक्ष पार्टी करने में मशगूल थे। उन्होंने नवंबर 31, 2008 को शाम से ही पार्टी शुरू कर दी थी। पार्टी रात भर चली। भारतीय सुरक्षा बलों का ऑपरेशन नवंबर 29, 2008 तक चला था।

राहुल गाँधी की पार्टी अगले दिन सुबह 5 बजे ख़त्म हुई। मौक़ा स्पेशल था। राहुल के स्कूल के दिनों के सहपाठी समीर शर्मा की शादी थी। ये ‘संगीत’ का कार्यक्रम था। लेकिन, राहुल ये भूल गए कि वो सत्ताधारी पार्टी के महासचिव और भावी अध्यक्ष के रूप में पेश किए जा रहे थे। उनपर कुछ समाजिक जिम्मेदारियाँ बनती थीं। उनके हर क़दम पर मीडिया की नज़र थी। उन्हें जनता को सन्देश देना था। उस क्षण में भारत के साथ खड़ा होना था। लेकिन नहीं, वो दोस्तों संग रात भर मौज करने में व्यस्त हो गए।

पार्टी की जगह भी शानदार थी- छतरपुर के राधे मोहन चौक पर स्थित भव्य फार्महाउस, काफ़ी बड़े क्षेत्र में फैला हुआ। उस दौरान दिल्ली में चुनाव भी चल रहे थे। जिस दिन राहुल गाँधी ने पार्टी करनी शुरू की, उससे एक दिन पहले ही उनकी बहन प्रियंका गाँधी भी वोट देने निकली थीं। प्रियंका ने इस दौरान 26/11 मुंबई हमलों पर चर्चा करते हुए कहा था कि अगर उनकी दादी इंदिरा गाँधी प्रधानमंत्री होतीं तो मुंबई हमले को इस तरह हैंडल करतीं, जिससे सभी को गर्व महसूस होता। एक ऐसी महिला ने ये बात कही, जिसकी माँ नेपथ्य से भारत सरकार चला रही थी। प्रियंका ने याद दिलाया कि कैसे आतंकवाद ने उनके पिता की जान ले ली थी।

आपके मन में एक सवाल ज़रूर कौंध रहा होगा कि ये समीर शर्मा कौन हैं, जिनकी शादी थी? दरअसल, वो अमेरिका में बसे फर्नीचर डिजाइनर थे। वो राजीव गाँधी के फ़्लाइंग पार्टनर कैप्टन सतीश शर्मा के बेटे हैं। सतीश शर्मा ने ही राजीव गाँधी की हत्या के बाद अमेठी से उनकी जगह लोकसभा चुनाव लड़ा था और जीत कर नरसिम्हा राव सरकार में कैबिनेट मंत्री बने थे। वो गाँधी परिवार के दूसरे गढ़ अमेठी से भी सांसद रहे हैं। यह भी जानने लायक बात है कि मुंबई हमलों के बाद कई रेस्टॉरेंट्स ने पूर्व में निर्धारित कई पार्टियाँ रद्द कर दी थी। सरकारी अधिकारियों ने आयोजनों में जाना मुनासिब नहीं समझा था।

राहुल इन चीजों से दूर थे। देश के मूड से दूर थे। वे 800 अन्य अतिथियों के साथ पार्टी कर रहे थे। इससे मुंबई हमलों को क़रीब से देखने वाले लोगों को तो ख़ासा दुख हुआ। इसकी बानगी तब देखने को मिली, जब 26/11 के दौरान ओबेरॉय होटल में फँसे कॉर्पोरेट वकील अभय बहल ने उनकी आलोचना की। बहल ने कहा कि इन्हीं हरकतों की वजह से देश का उन लोगों पर से विश्वास उठ जाता है, जिन्हें भविष्य का नेता कहा जाता है। ‘इंडिया टुडे’ की एक रिपोर्ट में उसी पार्टी के एक अतिथि का बयान प्रकाशित हुआ। उस अतिथि ने कहा कि यहाँ जो भी लोग पार्टी कर रहे हैं, उनमें से कोई भी सार्वजनिक जीवन में नहीं है। नाम न छपने की शर्त पर उसने बताया कि राहुल गाँधी ज़रूर सार्वजनिक जीवन में हैं और उन्हें किन मौक़ों पर कहाँ और कैसे दिखना है, इसका ध्यान रखना चाहिए।

यूपीए काल के दौरान बम ब्लास्ट जैसे आम बात थे। जुलाई 2011 में भी मुंबई को दहलाया गया था। 26 लोग काल के गाल में समा गए थे और क़रीब 150 घायल हुए थे। तब राहुल गाँधी ने कहा था कि सभी आतंकी हमलों को नहीं रोका जा सकता। साथ ही उन्होंने दावा किया था कि 99% आतंकी हमलों को समय रहते रोक लिया जाता है। उनका कहना था कि आतंकवाद ऐसी चीज है, जिसे हर समय के लिए रोकना असंभव है। अभी 2014 के बाद से भारत के बड़े शहरों में कोई आतंकी हमला नहीं हुआ। अप्रैल 2019 में गुजरात के अमरेली में एक रैली को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बताया था कि 2014 के बाद से पूरे देश में कोई बड़ा आतंकी बम ब्लास्ट नहीं हुआ।

‘मेल टुडे’ के दिसंबर 1, 2008 संस्करण में छपी ख़बर: पार्टी मूड में राहुल गाँधी

राहुल गाँधी कॉन्ग्रेस के उपाध्यक्ष बने। फिर अध्यक्ष बने। फिर इस्तीफा दे दिया। अब राहुल कहते हैं कि वो बस एक मामूली कार्यकर्ता हैं। पार्टी के सेवक हैं। न तो सत्ता में रहते उन्होंने जिम्मेदारी निभाई और न ही उनसे विपक्ष की राजनीति हो पाई। राहुल अब इटली और थाईलैंड जाते हैं। पार्टी करते हैं। लेकिन, अब मुंबई हमले जैसी वारदातों के बाद सरकार चुप नहीं बैठती। उरी हमले के बाद पीओके में घुस कर आतंकियों का सफाया किया जाता है। पठानकोट हमले के बाद पाकिस्तान में घुस कर वायुसेना बम बरसाती है और आतंकी कैम्पों को तबाह करती है। दुश्मन वही हैं, बस उन्हें हैंडल करने का तरीका बदल गया है। अब डोजियर नहीं सौंपे जाते, स्ट्राइक किया जाता है।

हाँ, प्रियंका गाँधी अब भी दादी इंदिरा पर ही अटकी हैं। मुंबई हमलों के बाद उनके परिवार की सरकार रहते हुए भी वो इंदिरा गाँधी को याद कर रही थीं। लोकसभा चुनाव से पहले जब राजनीति में उनकी एंट्री हुई, तब उनके नैन-नक्श को इंदिरा से मिलता-जुलता बता कर उनमें दादी की छवि देखी गई। लोकसभा चुनाव में उन्हें यूपी की जिम्मेदारी मिली और कॉन्ग्रेस वहाँ फुस्स रही। प्रियंका इधर ट्वीट करती रही कि दादी कैसे उन्हें कहानियाँ सुनाया करती थीं। सब कुछ बदल गया लेकिन प्रियंका गाँधी की इंदिरा से तुलना होती रही। शायद होती ही रहेगी। तब तक, जब तक वो भी अपने भाई की तरह कॉन्ग्रेस की ‘मामूली कार्यकर्ता’ न बन जाएँ। या फिर क्या पता? राजनीति से ही निकल जाएँ।

Special coverage by OpIndia on Ram Mandir in Ayodhya

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
चम्पारण से. हमेशा राइट. भारतीय इतिहास, राजनीति और संस्कृति की समझ. बीआईटी मेसरा से कंप्यूटर साइंस में स्नातक.

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

‘PM मोदी की गारंटी पर देश को भरोसा, संविधान में बदलाव का कोई इरादा नहीं’: गृह मंत्री अमित शाह ने कहा- ‘सेक्युलर’ शब्द हटाने...

अमित शाह ने कहा कि पीएम मोदी ने जीएसटी लागू की, 370 खत्म की, राममंदिर का उद्घाटन हुआ, ट्रिपल तलाक खत्म हुआ, वन रैंक वन पेंशन लागू की।

लोकसभा चुनाव 2024: पहले चरण में 60+ प्रतिशत मतदान, हिंसा के बीच सबसे अधिक 77.57% बंगाल में वोटिंग, 1625 प्रत्याशियों की किस्मत EVM में...

पहले चरण के मतदान में राज्यों के हिसाब से 102 सीटों पर शाम 7 बजे तक कुल 60.03% मतदान हुआ। इसमें उत्तर प्रदेश में 57.61 प्रतिशत, उत्तराखंड में 53.64 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -

हमसे जुड़ें

295,307FansLike
282,677FollowersFollow
417,000SubscribersSubscribe