वामपंथी प्रोपेगेंडा आउटलेट द वायर की पत्रकार रोहिणी सिंह ने हाल ही में ट्विटर पर पीआईएफ (पब्लिक इन्वेस्टमेंट फंड) सऊदी अरामको के गवर्नर यासिर अल-रुमायन के साथ रिलायंस इंडस्ट्रीज के सौदे पर सवाल उठाया, जिससे भारतीय व्यापारिक समूह के खिलाफ इस्लामी हमला शुरू हो गया।
अपने ट्वीट में रोहिणी सिंह ने रिलायंस इंडस्ट्रीज में हिस्सेदारी खरीदने के लिए सऊदी अरब की तेल कंपनी अरामको पर सवाल उठाया। साथ ही उसने रिलायंस पर मीडिया नेटवर्क न्यूज़ 18 के माध्यम से भारत में मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने का आरोप लगाया। सिंह ने अपने ट्वीट में यासिर अल-रुमायन को भी टैग किया है।
रोहिणी ने ट्वीट किया, ”अंबानी परिवार खुशी-खुशी मुस्लिम देशों के साथ व्यापार करते हैं। अरामको रिलायंस इंडस्ट्रीज में हिस्सेदारी खरीदने के लिए बातचीत कर रही है। वहीं, भारत में रिलायंस का मीडिया नेटवर्क मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने में व्यस्त है। यासिर अल-रुमायन क्या आप इसका समर्थन करते हैं?”
जैसे ही सिंह ने अपने ट्वीट में सऊदी अरब से रिलायंस इंडस्ट्रीज के साथ अपने व्यापारिक सौदे पर विचार करने की अपील की, उसके कुछ मिनट बाद ही द वायर की पत्रकार की पोस्ट पर अंबानी ग्रुप के खिलाफ मुस्लिमों ने जहर उगलना शुरू कर दिया। उन्होंने सऊदी अरब से रिलायंस ग्रुप के साथ अपने संबंध तोड़ने को कहा।
एक ट्विटर यूजर ने रिलायंस के खिलाफ सिंह के ट्वीट का हवाला दिया और अरामको को टैग करते हुए सऊदी ऑयल कंपनी से टेरर फंडिंग को रोकने के लिए कहा।
एक अन्य इस्लामवादी ने आमिर अज़ीज द्वारा लिखी गई ‘सब याद रखा जाएगा’ कविता का हवाला दिया, जिसने इसे सीएए के विरोध के दौरान यह बताने के लिए लिखा था कि भारत में मुसलमान यह नहीं भूलेंगे कि भारत सरकार सताए गए धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता देना चाहती है। उन्होंने पड़ोसी इस्लामिक देशों और सऊदी तेल कंपनी अरामको से एक ऐसी कंपनी से संबंध तोड़ने का आह्वान किया गया है, जिसके मीडिया चैनल ने ‘मुसलमानों के नरसंहार’ का समर्थन किया था।
ध्यान दें कि सीएए ने मुसलमानों सहित किसी भी भारतीय की नागरिकता को किसी भी तरह से प्रभावित नहीं किया। CAA कानून के जरिए नरेंद्र मोदी सरकार ने केवल अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और इसाई समुदाय के लोगों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान किया है।
हालाँकि, सिंह ने रिलायंस इंडस्ट्रीज पर मुसलमानों से नफरत करने वाला एक मीडिया चैनल चलाने का निराधार आरोप लगाया, लेकिन उनके इस्लामवादी फॉलोअर्स ने कंपनी को आतंकवादी संगठन और मुसलमानों का नरसंहार करने वाला बताया है। दरअसल, इसी तरह से सोशल मीडिया पर नफरत फैलती है। एक सोशल मीडिया यूजर जिसके बड़ी संख्या में फॉलोअर्स हैं, अगर वह जानबूझ कर इस तरह के भ्रामक पोस्ट शेयर करता है, तो उससे सांप्रदायिक उन्माद फैलाता है। साथ ही सांप्रदायिक दंगे होने की संभावना भी होती है।
रोहिणी सिंह ने भी ट्विटर पर यही काम किया है। इस मामले में सऊदी अरब एक इस्लामी देश है, जहाँ अल्पसंख्यकों के पास सीमित अधिकार हैं। पाकिस्तान जैसे अन्य इस्लामिक देशों में अक्सर गैर-मुसलमानों को निशाना बनाया जाता है, क्योंकि उनकी आस्था इस्लाम में नहीं है। इनमें से कई देशों में मानवाधिकारों के उल्लंघन और प्रेस की स्वतंत्रता का संदिग्ध रिकॉर्ड भी है।
बता दें कि 2010 में, कॉन्ग्रेस के शासनकाल के दौरान, एक घोटाला सामने आया था जिसमें पत्रकार बरखा दत्त और एमके वेणु (जो द वायर के संस्थापक संपादक हैं, जहाँ अब रोहिणी सिंह काम करती हैं) कॉर्पोरेट लॉबिइंग नीरा राडिया के साथ सम्पर्क थे। एमके वेणु को कॉरपोरेट लॉबिस्ट नीरा राडिया से अनुरोध करते हुए सुना गया था कि वो रोहिणी सिंह को अपने (लॉबीस्ट के) सर्कल (राजनेताओं, व्यापारियों, लॉबिस्टों आदि) में इंट्रोड्यूज़ करें। राडिया के बारे में पता चला था कि वो यूपीए सरकार से अपने कॉर्पोरेट ग्राहकों के लिए अनुकूल सौदे करने के लिए दलालों के रूप में पत्रकारों का इस्तेमाल कर रही थीं। फ़िलहाल, रोहिणी सिंह वर्तमान में द वायर के साथ ही काम कर रही हैं।