देश से असम को काटकर अलग कर देने की बात करने वाले शर्जील इमाम की गिरफ्तारी के साथ ही सोशल मीडिया पर #ISUPPORTSHARJEEL ट्रेंड कराने की कोशिश शुरू हो चुकी है। एक समुदाय विशेष के लोगों के साथ मीडिया गिरोह के कुछ पत्रकार भी बढ़-चढ़कर शर्जील का समर्थन कर रहे हैं। अपनी एकजुटता प्रदर्शित कर रहे हैं। तर्क-कुतर्क करके ये साबित किया जा रहा है कि शर्जील ने जो कहा वो सही है और मोदी सरकार व उनके समर्थक जानबूझकर उसे देशद्रोही बता रहे हैं।
यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि ये सब पहली बार नहीं हो रहा। जिस तरह से देश के ख़िलाफ़ बयानबाजी करने वालों को अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में छिपाया जाता रहा है। उनके प्रति संवेदना दिखाई जाती रही है। एक तय क्रम के साथ उनके विवादों में आने के बाद उन्हें हीरो बनाने की कोशिश हुई। उससे पहले के घटनाक्रमों और इन गिरोहों के एजेंडे को देखते हुए ये स्पष्ट हो चुका है कि शर्जील इमाम के मामले में अब आगे क्या-क्या हो सकता है? पूरी तत्परता के साथ कार्य शुरू हो चुका है जिस पर आप सबकी नजर पड़ी होगी। अब जरा ध्यान से नीचे दी गई टाइमलाइन पर नजर डालिए।
क्या लगता है आपको कि याकूब मेमन, अफ़ज़ल गुरु और बुरहान वानी का समर्थन कर चुके लोग शरजील इमाम को उसके हाल पर छोड़ देंगे? नहीं ऐसा नहीं होगा तो क्या होने की संभावना है इसके लिए पूरी क्रोनोलॉजी समझिए।
- आज बड़ी चालाकी से उसे “जेएनयू का छात्र” लिखा जा रहा है, “द वायर का पत्रकार” नहीं।
- एक-दो दिन में उसके लिए सहानुभूति पैदा करने का काम शुरू होगा, जिसके लिए यही छात्र शब्द बुनियाद बनेगा।
- बताया जाएगा कि वो तो चिकेन नेक पर चक्का जाम की बात कर रहा था।
- सेक्युलर मीडिया उसके पक्ष में संपादकीय लिखेगा, संपादक ट्वीट करेंगे।
- बताया जाएगा कि जेएनयू के नकाबपोशों को तो पुलिस अब तक नहीं पकड़ पाई।
- मानो कैंपस में मारपीट करना और असम को देश से अलग करना एक जैसा अपराध है।
- धीरे-धीरे उसे ब्रांड बनाया जाएगा। यूएन का ह्यूमन राइट्स कमीशन उसकी गिरफ़्तारी पर चिंता जताएगा।
- प्रियंका वाड्रा शरजील इमाम की माँ से मिलने जाएगी। उनसे लिपटकर फ़ोटो खिचवाएँगी।
- दीपिका पादुकोण के बाद रघुराम राजन अब शर्जील का सपोर्ट करेंगे, ताकि पब्लिसिटी मिले।
- “विराट हिंदू” नाम के फ़ेसबुक अकाउंट से शरजील को ग़द्दार कहा जाएगा, जिसका स्क्रीनशॉट दिखाकर रवीश जी प्राइम टाइम करेंगे कि क्या भीड़ तय करेगी कि कौन ग़द्दार है।
- मेरठ में “हिंदू सेना” शरजील इमाम की गर्दन काटने पर 5 लाख रुपये इनाम घोषित करेगी। 3 दिन तक चैनलों पर ख़बर चलेगी।
- PFI कपिल सिब्बल के अकाउंट में 50-60 लाख रुपए भेजेगा, ताकि वो उसका मुकदमा लड़ें।
- मुक़दमा ट्रायल कोर्ट में नहीं, सीधे सुप्रीम कोर्ट में चलेगा।
- अदालत पर “जनभावनाओं” दबाव बनेगा और उसे ज़मानत पर रिहा कर दिया जाएगा।
- इसके बाद वो देशभर के चैनलों में नागरिक अधिकारों के प्रवक्ता के तौर पर बुलाया जाएगा।
- लिट्रेचर फ़ेस्टिवल में उसके सेशन में सबसे ज़्यादा भीड़ होगी। जहां बुर्के वालियां उसके साथ सेल्फ़ी खिचवाएँगी।
- धीरे-धीरे आम लोगों को भी को लगने लगेगा कि स्टूडेंट ही तो है। ग़लती हो गई। क्या फ़र्क़ पड़ता है?
- अगली बार कोई तमिलनाडु, केरल, बंगाल को देश से तोड़ने की बात करेगा। हम चुप रहेंगे छोड़ो जाने दो, हमको क्या फ़र्क़ पड़ता है।
इन सब बातों का अनुमान कर पहले से व्यक्त कर देना इतना भी मुश्किल नहीं है। क्योंकि लिबरल गिरोह कैसे संचालित होता रहा है, अब लोग उनके चालों और छल-कपट-धूर्तता से भली भाँति परिचित होने लगे हैं। हो सकता है कि पैटर्न में थोड़ा बदलाव भी नजर आए लेकिन मूल भावना शाहीन बाग़ के मास्टरमाइंड शरजील को पाक-साफ साबित कर एक नए युवा क्रन्तिकारी नेता के रूप में स्थापित करने की होगी। क्योंकि कन्हैया पर लगाया गया दाव वामपंथी गिरोह को फेल होता नज़र आ रहा है और उसकी मुस्लिम समुदाय में उतनी पैठ भी नहीं है।
नोट- यह क्रोनोलॉजी चंद्र प्रकाश जी के फेसबुक पोस्ट से ली गई है।