प्रसार भारती ने दि प्रिंट की इस खबर को शेयर करते हुए बताया है कि ये फेक न्यूज है। उनका कहना है कि प्रसार भारती इस खबर को लेकर लगातार कैबिनेट के संपर्क में है और कैबिनेट ने इसे लेकर हैरानी जताई है। कैबिनेट का साफ कहना है कि अभी तक उनके पास इस तरह का कोई प्लान नहीं है कि वे लॉकडाउन को एस्टेंड करने वाले हैं।
साथ ही उन्होंने ये भी दावा किया कि वहाँ पर 'इन्फेक्शन रेट' बाकी दुनिया से एकदम अलग है। उन्होंने लिखा कि ये सब बिना लॉकडाउन के ही संभव हुआ। हालाँकि, आज ही ख़बर आई है कि सिंगापुर के दो इंटरनेशनल स्कूलों के बच्चों के 6 पेरेंट्स कोरोना वायरस के शिकार हो गए हैं।
जिनके बच्चे मरे, जिनकी बेटियों को नग्न करके दुराचार किया गया, जिनकी शादी में सिलिंडरों को उड़ाने की योजना थी, जिनके बच्चों को छः कट्टरपंथियों ने दो-दो घंटे चाकू मारे... उन्हें अब आर्थिक मदद से भी महरूम किया जाएगा? क्या मार डाले गए हिन्दुओं के परिवारों को सहायता करना पाप है? शेखर गुप्ता को दिक्कत किससे है?
द प्रिंट के पत्रकार ने कपिल मिश्रा से इंटरव्यू के लिए समय देने की गुहार लगाते हुए कहा कि बीजेपी नेता को हर जगह से ख़ासा समर्थन मिल रहा है। उसने कहा कि वो 'द प्रिंट' में उन पर लेख अथवा प्रोफाइल तैयार करना चाहता है।
शेखर गुप्ता ने दावा किया कि नागरिकता संशोधन विधेयक वह नहीं है, जिसके लिए भाजपा को वोट दिया गया था। जबकि थोड़ा सा गूगल कर लेते तो उनके जैसे 'वरिष्ठ' पत्रकार को लोकसभा चुनाव 2019 में BJP का घोषणापत्र मिल जाता, जिसमें साफ-साफ लिखा है कि...
दरअसल द प्रिंट और शिवम विज का सोचना यह है कि एक दशक पुरानी बात, जब समय और परिस्थितियाँ अलग थीं, उस समय की घटनाओं और परिस्थितियों का हवाला देते हुए आज के समय में वो अपने प्रोपेगेंडा को फैलाने में इस्तेमाल कर सकते हैं।
लेखक ने अपने भाषण में अरबी-फारसी शब्दों के इस्तेमाल से बचने और उनकी जगह हिन्दी का इस्तेमाल करने की सलाह दी थी। लेकिन, कृतिका शर्मा ने कई जगहों पर अपनी सहूलियत से फ़ारसी को 'उर्दू' कर दिया। नित्यानंद मिश्र का यह भी कहना है कि उन्होंने केवल "शासन/प्रभुत्व" बनाम "सरकार" शब्दों की बात की थी, लेकिन कृतिका ने रिपोर्ट को सनसनीखेज़ बनाने के लिए "मोदी" जोड़कर "मोदी सरकार" बनाम "मोदी शासन" कर दिया।
अगर मुगलों की बात करें तो बाबर ने 16वीं शताब्दी में दिल्ली में राज करना शुरू किया, जबकि चीनी यात्री ने उससे लगभग 900 वर्ष पूर्व भारत में अंगूरों और अंगूर के रस का जिक्र किया है। इससे पता चलता है कि 'द प्रिंट' के लेख में किया गया दावा बिलकुल ही ग़लत है।
‘द प्रिंट’ की स्थापना के बाद से शेखर गुप्ता को कई झूठ फैलाने के लिए जाना जाने लगा है। इस बार उन्होंने सूचना और प्रसारण मंत्रालय के बारे में फ़र्जी ख़बरें फैलाने का फ़ैसला किया है।