"लोग असंवेदनशील और अदूरदर्शी लोगों को सत्ता में बैठाने की कीमत चुका रहे हैं। भारत में नागरिकता कानून 1955 लागू था और उसमें किसी संशोधन की जरूरत नहीं पड़ी थी। तो कानून में अब संशोधन की जरूरत क्यों पड़ी? संशोधन (सीएए) को तुरंत रद्द कर देना चाहिए।’’
देश के लिए जान देने वाले, दंगाइयों के हाथों मारे जाने वाले और अपना पूरा जीवन जनता की सुरक्षा में खपा देने वाले जवान के लिए कोई नेता आवाज़ क्यों नहीं उठा रहा? हिंसा करने वालों का नाम क्यों नहीं ले रहा?
सोशल मीडिया पर लिबरल गिरोह ने दंगाइयों के बचाव का सिलसिला तेज़ कर दिया है। पुलिस किसी पत्थरबाज को शिकंजे में ले रही है, तो उसकी फोटो वायरल कर उसे 2002 के गुजरात दंगे से जोर कर दिखाया जा रहा है। दंगाइयों को बढ़ावा दिया जा रहा है।
अलीगढ़ में भीम आर्मी, पीएफआई और एएमयू के एक छात्र संगठन के लोगों के बीच बैठक हुई। इसके बाद हिंसा भड़की। ठीक उसी पैटर्न पर दिल्ली में हिंसा की घटनाओं को अंजाम दिया गया है। इससे पहले दिल्ली के जामिया और यूपी में हुई हिंसा में भी पीएफआई की संलिप्तता सामने आई थी।
नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली में हिंसा के दौरान शाहरुख़ ने पुलिस पर फायरिंग की थी। उसने कुल 8 राउंड फायर किए थे। उस वक़्त उसने लाल रंग की टीशर्ट पहन रखी थी। पूछताछ के बाद उसके बारे में कई और खुलासे होने की उम्मीद है।
एक तरफ अघोषित नीति के तहत फेल होने वाले बच्चों का एडमिशन नहीं लिया जाता। दूसरी तरफ कहानियॉं सुनाकर उनको खुश दिखाने का प्रोपेगेंडा रचा जा रहा है। पर दुर्भाग्य से यह कसरत भी आधी-अधूरी ही है।
दिल्ली दंगों के दौरान केजरीवाल सरकार पर बहुत सवाल उठे। जाने-माने पत्रकारों से लेकर कई बड़ी हस्तियों ने उनसे इस मामले पर बोलने की गुहार लगाई। लेकिन अपनी मनमानी चलाने के विख्यात केजरीवाल को ये आलोचना रास नहीं आई और उन्होंने फौरन उन्हें अनफॉलो कर दिया।
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने कहा है कि हिंसा में शामिल लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा रही है। उन्होंने बताया कि दो महीने से ज्यादा समय से धरना चल रहा था। लेकिन, कल जिस तरह हिंसा हुई वह बर्दाश्त नहीं है।