कोटा के जेके लोन अस्पताल में शुक्रवार की सुबह एक और बच्ची ने दम तोड़ दिया। लेकिन, खस्ताहाल अस्पताल में स्वास्थ्य मंत्री को फील गुड कराने का प्रशासन ने पूरा इंतजाम कर दिया है। वैसे भी जिस राज्य के सीएम ही मौतों को CAA से जोड़े वहॉं अधिकारियों से उम्मीद रखना भी बेमानी है।
गहलोत को पता है कि गोरखपुर और मुजफ्फरपुर में बच्चों की मौत पर चीखने वाली मीडिया को नरगिस के मॉं-बाप की सिसकी सुनाई नहीं देगी। रेखा और कांता तो खैर हिंदू नाम हैं। उनके माँ-बाप का रूदन तो वैसे भी उन्हें सुनाई पड़ना नहीं है।
अस्पताल में मासूमों की मौत के बीच राजस्थान की कॉन्ग्रेस सरकार का असंवेदनशील चेहरा फिर आया सामने। कहा- PMO के इशारे पर भाजपा कर रही सियासत। बच्चों की मौत से दबाना चाहती है CAA का विरोध।
भाजपा ने कहा कि उसके विधायकों ने 50 लाख रुपए की सहायता राशि दी है लेकिन कॉन्ग्रेस की तरफ़ से कोई देखने तक नहीं आया है। भाजपा सांसदों ने आरोप लगाया कि जब बच्चों की मौत हो रही थी, तब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत झारखण्ड में जश्न मनाने गए हुए थे।
कोटा में एक महीने के भीतर 77 बच्चों की मौत हो गई, जिनमें से एक सप्ताह के भीतर 12 शिशुओं की मौत हुई। पिछले एक साल में 940 से अधिक बच्चों की मौत हुई है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने मुख्यमंत्री गहलोत से "संवेदनशील" मुद्दे से निपटने का आग्रह किया है।
'कब्रगाह' साबित हो रहा कोटा का अस्पताल, 14 और मौत के साथ एक महीने में 91 बच्चों की गई जान। NCPCR की टीम ने हॉस्पिटल में देखा कि ख़िड़कियों में शीशे नहीं, दरवाजे टूटे हुए हैं। अस्पताल के कैंपस में ही सुअर घूमते हैं।
किसानों ने कहा कि टिड्डियों के हमले के कारण वे पूरी तरह बर्बाद हो चुके हैं। उन्होंने बताया कि उनके घर में खाने के लिए रोटी तक नहीं बचा है। कर्जमाफी का वादा पूरा न किए जाने से किसान पहले से ही बेहाल है। मुख्यमंत्री के सामने कई किसान अचानक से रो पड़े।
एक साल में 940 बच्चों की मौत। मुख्यमंत्री गहलोत कहते हैं कि ये कोई नई बात नहीं। वो हेमंत सोरेन के शपथ ग्रहण समारोह में व्यस्त हैं। मीडिया चुप है क्योंकि ये भाजपा शासित राज्य में नहीं हुआ है। जाँच में पता चला है कि अस्पताल में व्यवस्थाएँ लचर हैं। अगर बच्चे मरते रहें तो सरकार किस लिए?
2 दिन में 10, 1 महीने में 77 बच्चों की मौत। ये आपके लिए भले बच्चे हों। लेकिन, राजस्थान की कॉन्ग्रेस सरकार के लिए बस नंबर हैं। जिन्हें गिनकर उसने बता दिया है कि इस बार सबसे कम मरे हैं। यह भी बताया है कि अस्पतालों में रोज दो-चार मरते ही हैं, कोई नई बात नहीं है।
"नैशनल एनआईसीयू रेकॉर्ड के अनुसार, शिशुओं की 20 प्रतिशत मौतें स्वीकार्य हैं, जबकि कोटा में शिशु मृत्यु दर 10 से 15 प्रतिशत है जो खतरनाक नहीं है क्योंकि अधिकतर बच्चों को गंभीर हालत में अस्पताल लाया गया था।"