कोटा के जेके लोन अस्पताल में दिसंबर से अब तक मरने वाले बच्चों की संख्या बढ़कर 105 हो गई है। शुक्रवार की सुबह यहॉं एक और मासूम ने दम तोड़ दिया। जिस बच्ची की मौत हुई वह केवल 15 दिन की थी। मॉं-बाप ने उसका नाम भी नहीं रखा था। वैसे राज्य के स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा के दौरे से पहले प्रशासन ने अस्पताल को चकाचक कर दिया है। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार उनके स्वागत के लिए अस्पताल में ग्रीन कारपेट बिछाया गया है।
यह राजस्थान के उस खस्ताहाल अस्पताल की हकीकत है जहॉं बीते 6 साल में 6646 बच्चे मरे हैं। ये आँकड़े खुद राजस्थान सरकार के हैं और इसे राज्य के स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा ने ट्विटर पर साझा किया है। इन्हीं आँकड़ों का हवाला दे राज्य सरकार कह रही कि पहले 1500 बच्चे मरते थे। इस साल सबसे कम बच्चे मरे हैं। आप जब इन आँकड़ों पर गौर करेंगे तो पाएँगे कि बच्चों की मौत के मामले में मामूली कमी सरकारी व्यवस्था में सुधार के कारण नहीं हुआ है। इन आँकड़ों का एक सच यह भी है कि इस अस्पताल में दिसंबर महीने में सबसे ज्यादा मौत पिछले साल ही हुई है।
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राजस्थान पत्रिका की रिपोर्ट बताती है कि इतनी मौतों के बाद भी प्रदेश की कॉन्ग्रेस सरकार की नींद टूटती नहीं दिख रही। अस्पताल भगवान भरोसे ही चल रहा है। एनआईसीयू वार्ड में एक वार्मर पर दो-दो शिशु भर्ती हैं। डॉक्टर जॉंच के लिए तो लिख देते हैं पर जॉंच के लिए कोई वार्ड में नहीं आता। बच्चे की सॉंस चलती रहे इसके लिए परिजन खुद ऑक्सीजन का सिलेंडर हाथ में थामे चल रहे हैं।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार राजस्थान के एक भी अस्पताल में बच्चों का सुपर स्पेशलिटी डॉक्टर नहीं है। राज्य में हर साल 28 दिन से कम उम्र में ही 34 हजार से ज्यादा बच्चे दम तोड़ देते हैं। एक वर्ष तक की उम्र के 41 हजार से अधिक बच्चों की मौत हो रही। राज्य के मेडिकल कॉलेजों से संबद्ध अस्पतालों में 230 में से 44 वेंटीलेटर खराब हैं। 1430 वार्मर खराब पड़े हैं। नतीजतन हर उम्र के प्रति सप्ताह 490 से अधिक बच्चे दम तोड़ रहे हैं।
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राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की रिपोर्ट बताती है कि अस्पताल की जर्जर हलात और वहाँ पर साफ-सफाई को लेकर बरती जा रही लापरवाही बच्चों की मौत का एक अहम कारण है। रिपोर्ट में बताया गया है कि जेके लोन अस्पताल की ख़िड़कियों में शीशे नहीं हैं। दरवाजे टूटे हुए हैं। इसके कारण अस्पताल में भर्ती बच्चों को मौसम की मार झेलनी पड़ती है। अस्पताल के कैंपस में सूअर भी घूमते रहते हैं। अराजकता का आलम यह है कि जेके लोन अस्पताल के वार्ड में लगाने के लिए पिछले सप्ताह 27 हीटर खरीदे गए। लेकिन, ये हीटर कहॉं गए यह अस्पताल के अधीक्षक तक को मालूम नहीं है।
Rajasthan: A carpet laid out at Kota’s JK Lon Hospital ahead of the visit of State Health Minister Raghu Sharma, was removed after seeing media presence. #KotaChildDeaths pic.twitter.com/WJRmoqry2S
— ANI (@ANI) January 3, 2020
इस संबंध में सवाल पूछे जाने पर शर्मा कहते हैं कि राज्य में सबसे पहले ICU की स्थापना कॉन्ग्रेस की सरकार ने 2003 में की थी। कोटा में भी बच्चों के ICU की स्थापना कॉन्ग्रेस सरकार ने 2011 में की थी। जेके लोन अस्पताल बीमार शिशुओं की मृत्यु पर सरकार संवेदनशील है। इस पर राजनीति नही होनी चाहिए।
योगी जी आप ज़रा गोरखपुर के अस्पताल पे भी ध्यान दे दीजिए।लोग परेशान हो रहे हैं।हम ऐसे गम्भीर विषयों पर राजनीति नही करते।बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध करवाना हमारी सरकार की प्राथमिकता है और उम्मीद है आप भी राजनीति करने के बजाए उत्तर प्रदेश की चिकित्सा सुविधाओं पे ध्यान देंगें।(2/2) pic.twitter.com/9EcfrnQCHs
— Dr. Raghu Sharma (@RaghusharmaINC) January 2, 2020
लेकिन, इस मसले को राजनीतिक रंग देती तो खुद राज्य सरकार दिख रही है। ऐसा नहीं होता तो शर्मा ट्विटर पर गोरखपुर के एक अस्पताल को लेकर अखबार में प्रकाशित खबर की कटिंग ट्विटर पर शेयर नहीं कर रहे होते। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ से नहीं पूछ रहे होते कि क्यों उत्तर प्रदेश में शिशु मृत्यु दर राजस्थान से अधिक है? इतना ही नहीं वे यह भी कह चुके हैं कि बच्चों की मौत का मामला पीएमओ के इशारे पर उठाया जा रहा ताकि सीएए के खिलाफ विरोध दबाया जा सके। मौतों को नई बात नहीं मानने वाले राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी कह चुके हैं कि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ पूरे देश में जो माहौल बना हुआ है, उससे ध्यान हटाने के लिए इस मुद्दे को उठाया जा रहा है।