एसजेटीए ने इन मठों को जगन्नाथ मंदिर की संपत्ति बता कर ढाहना शुरू कर दिया। सरकार का कहना है कि इन मठों के बिल्डिंग सुरक्षित नहीं हैं और इसीलिए इन्हें हटाना ज़रूरी है। लांगुली मठ 300 वर्ष पुराना था। इसे रैपिड एक्शन फाॅर्स और पुलिस की मौजूदगी में ढाह दिया गया। 900 वर्ष पूर्व निर्मित एमार मठ को भी नहीं बख्शा गया।
सोलंकी ने कहा कि प्लेटफॉर्म हिन्दूफोबिया से पीड़ित है। उन्होंने अधिकारियों से माँग की कि नेटफ्लिक्स के प्रतिनिधियों को बुला कर उनसे स्पष्टीकरण माँगा जाए और हिन्दुओं की भावनाएँ आहत करने वाले सारे कंटेंट्स को प्लेटफॉर्म से हटाए जाएँ।
हिन्दू का व्यवसाय धंधा तो मजहब विशीष का कारोबार इबादत कैसे? क्यों असहिष्णुता गणेश चतुर्थी पर ही आती है, मुहर्रम पर नहीं? क्यों कम्पनियॉं मानती हैं कि जूते खाकर भी आप उनका ही प्रोडक्ट खरीदेंगे। जवाब है, हिन्दू आज अपनी ही संस्कृति, दर्शन और इतिहास का मज़ाक बनाने वालों के पोषक बने हुए हैं।
हिन्दुओं को इससे फर्क नहीं पड़ता कि वो कौन-सा मांस खा रहे हैं। जिन्हें फर्क पड़ा, तो उन्हें 'बिगट', 'कम्यूनल', 'असहिष्णु' और पता नहीं क्या-क्या कह दिया गया। क्योंकि बहुसंख्यकों का न तो कोई धर्म है, न उनकी भावना आहत होती है।
इस घटना में एक मुस्लिम भीड़ ने हरिद्वार जाने वाले काँवड़ियों को ले जा रही एक बस पर हमला किया था। घटना के दौरान 30 से अधिक काँवड़िए गंभीर रूप से घायल हो गए थे, वहीं क़रीब एक दर्जन से अधिक बसों को आग लगा दी गई थी।
पटनायक लिखते हैं कि गांधारी ने अपने बच्चे को शरीर से बाहर निकालने के लिए अपनी दासियों को अपने पेट पर लोहे की छड़ से वार करने को कहा लेकिन महाभारत में ऐसा कोई प्रसंग नहीं है। असल में गांधारी ने ख़ुद से अपने पेट पर मारा और क्षणिक गुस्से में 'Self-Abortion' किया।
इस फ़ोटों के लिए आर माधवन को लिबरल्स गैंग द्वारा ट्रोल किया जा रहा है। उनके अनुसार, जनेऊ, यज्ञोपवीतम या जिसे तमिल में पूनल कहा जाता है, जातिवाद का प्रतीक है और माधवन को अपने पूर्वजों की परंपराओं को बनाए रखने के लिए ख़ुद पर शर्म आनी चाहिए।
वैष्णव मान्यताओं में इस कहानी की प्रतीकों के रूप में मान्यता भी है। ऐसा माना जाता है कि हाथी यहाँ जीव का स्वरूप है, मगरमच्छ उसके पाप और माया हैं, जिस नदी के कीचड़ जैसे स्थान में हाथी मगरमच्छ के जबड़े में फँसा है, वो कीचड़ संसार है।