पुष्यमित्र शुंग ने भारतवर्ष में क्षीण हो रहे सनातन धर्म की पुनर्स्थापना का स्वप्न देखा था। इसकी वजह से वामपंथी इतिहासकारों ने उसे नरसंहारक और कट्टर के तौर पर पेश किया।
वीर सावरकर ने एक बार लंदन में लेनिन को 3 दिन तक शरण दी थी। कम्युनिस्ट यह स्वीकार नहीं कर पाते कि सावरकर को कई प्रमुख वामपंथियों ने वीर कहने का साहस किया था।
आज भारत की संस्कृति ने फिर से अपनी पहचान बनानी शुरू की है, क्योंकि हमने उस पर बिना किसी झेंप के गर्व करना सीख लिया है। आइए भय, पूर्वाग्रह और तुष्टिकरण के परदे से बाहर निकल कर खुली आँखों से सत्य के प्रकाश का अवलोकन करें।