अर्नब गोस्वामी ने कहा ने कहा कि वह काफी लंबे वक्त से एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के सदस्य हैं लेकिन अब यह मात्र कुछ लोगों का समूह है जिनमें फेक खबरों को फेक कहने का दम नहीं है।
वो चाहते हैं कि आप हिंसा की बात करें, वो चाहते हैं कि आप कानून को हाथ में ले जिस से उनके किए गए कामों को एक कारण मिल सके। क्यों करना है आपको राणा अयूब की ट्वीट को कोट और जवाब देना है? क्यों आपको स्वरा को गद्दार कहना है? राजदीप को क्यों गाली देना है आपको?
कौन हैं वो 'मसीहा पत्रकार', जिनकी पूर्ववर्ती सरकारों में अच्छी-ख़ासी मौज रहती थी? मोदी के आने से उन्हें दिक्कत क्यों हुई? 'इंडिया टीवी' के न्यूज़ एंकर सुशांत सिन्हा से समझिए कि अवार्ड-वापसी और 'लिंचिंग' की कैसे रची गई पूरी साज़िश। लुटियंस गैंग की तिलमिलाहट का पोस्टमॉर्टम।
JNU उपद्रव के बाद मीडिया द्वारा खुद को विक्टिम दिखाना। पुलिस-प्रशासन को विलेन बता, सोशल मीडिया पर लिखना। अगर यही सारे पत्रकार नक्सलियों द्वारा गला रेत लाश टाँगने की रिपोर्टिंग करने गए होते तो खबर गायब हो जाती और प्राइम टाइम होता अर्द्धसैनिक बल वाले सरदार की गाली और रिपोर्टरों की चाशनी में लिपटे प्रोपेगेंडा पर।
अगर शिकार मुस्लिम या दलित है, तो अपराधी के नाम में पहचान ढूँढी जाती है। मजहब विशेष वालों ने एक-दूसरे को मारा, तो ये मुन्नी बेगम की ग़ज़लें गाने लगते हैं। दलित ने दलित को मारा, तो ये भारतीय नारी किस-किस से, कितनी बार, और कब-कब सेक्स करे, इस चर्चा में लीन हो जाते हैं।