बीबीसी ने दो ऐसी भारत-विरोधी राय तो प्रसारित की, जिनके अनुसार भारत-पाकिस्तान तनाव 'मोदी स्टंट' है लेकिन चैनल ने डॉक्टर मोनिका की राय प्रसारित नहीं की क्योंकि उन्होंने कश्मीर और आतंकवाद के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया।
जब इनकी दुकान बंद होने को आती है, इन्हे लालू यादव जैसे भ्रष्टाचारियों में भी नायक दिखने लगता है। इन खलनायकों को अब एक नया नायक मिल गया है। चूँकि अब इन्हे देश के अंदर कोई नायक नहीं मिल रहा, इन्होनें पाकिस्तान का रुख किया है।
फ़र्ज़ी खबर फ़ैलाने वाले इस ट्विटर एकाउंट को कॉन्ग्रेस पार्टी प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी से लेकर कॉन्ग्रेस सांसद शशि थरूर फॉलो करते हैं। प्रियंका चतुर्वेदी जिस तरह से रोजाना फ़र्ज़ी खबर और फोटो सोशल मीडिया पर शेयर करते हुए पाई जाती हैं, इसकी वजह शायद यही है कि उनकी सूचनाओं के स्रोत और 'कच्चे माल' की निर्भरता इस तरह के फेक न्यूज़ एकाउंट्स हैं।
बन्दूक की नाली पर सत्ता लेने की बात करने वाले जब #SayNoToWar का रोना रोने लगें, तो समझ जाइए कि दाल में कुछ काला है। जैसे ही आतंकियों पर कार्रवाई का समय आता है, ये अपने बिल से निकल आते हैं और युद्ध बनाम शांति की बहस क्रिएट कर उसमें कूद पड़ते हैं।
पत्रकार रहीमुल्ला ने ऐसे शब्दों का प्रयोग किया, यह कुछ हद तक समझा जा सकता है लेकिन आप दिल्ली में बैठ कर इसे काट-छांट सकते थे। लेकिन नहीं। 'बहनोई' की इज्जत में लिखे गए शब्दों पर संपादकीय कैंची कैसे?
यह राहुल गाँधी, सोशल मीडिया के वामपंथी ट्रोल और फुल टाइम प्रचारक पत्रकारों द्वारा प्रचारित एक और झूठ, उनकी कभी न खत्म होने वाली महाझूठ और प्रोपेगंडा का हिस्सा है।
जब आपको तारीफें मिली, प्रसिद्धि मिली, आज आप जो कुछ हैं, जब वो सब मिला तो आपने कभी नहीं कहा कि ये सब 'भारत माँ' की वजह से है। और जब आपकी 'पक्षकारिता' की वजह से गालियाँ मिल रही हैं तो किस हक़ से इसे 'भारत माँ' को समर्पित कर रहे हैं?
अशरफ़ और कारवाँ ने इन जवानों की जाति का पता लगाने के लिए जिस नीचता का परिचय दिया, उसे जान कर आप कारवाँ मैगज़ीन के पन्नों का टॉयलेट पेपर की तरह प्रयोग करने से भी बचेंगे। मृतकों के परिजनों से हुतात्मा की जाति पूछना इनकी नीचता का परिचायक है।
वेणु जी वायर ही पढ़ते हैं, वायर पर ही लिखते है, वायर से ही बिजली पाते हैं, और वायर से ही इस तरह के फर्जी आर्टिकल से शॉर्ट सर्किट करके आग लगाते हैं। यही कारण है कि सत्य से बहुत दूर रहते हैं क्योंकि प्रोपेगेंडा पोर्टल पर तथ्य तो कोने में छुपा रहता है।