सना खान कहती हैं, "जब वो मुझे मिले तो जी बहन, जी बहन कह रहे थे और मैं भी उन्हें जी मौलाना, जी मौलाना कह रही थी। मुझे क्या पता था ये मेरे हमसफर बन जाएँगे।"
"आज हर हिंदुस्तानी मुसलमान को अपने आप से यह सवाल पूछना चाहिए कि उसे अपने मजहब में इस्लाम रिफॉर्म्ड और जिद्दत पसंदी चाहिए या पिछली सदियों के बहशीपन का इकदार (वैल्यूज़)।"