ओवैसी, शरजील इमाम, हुसैन हैदरी, इकबाल, जिन्ना, लादेन की फेहरिश्त में आप नाम जोड़ते जाइए उन सबका भी जो शायद आपके आसपास बैठा हो, जो आपके साथ काम करता हो, जिनका पेशा कुछ भी क्यों न हो लेकिन वो लगे हों उम्मत के लिए ही।
'नमस्ते ट्रंप' कार्यक्रम के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति ने इस्लामिक आतंकवाद और पाकिस्तान का मसला जोर-शोर से उठाया। इससे पहले प्रधानमंत्री के अमेरिकी दौरे के वक्त 'हाउडी मोदी' में भी उन्होंने इस्लामिक आतंकवाद का मिलकर सफाया करने की बात कही थी।
साल 2000 में अमेरिकी राष्ट्रपति क्लिंटन की भारत यात्रा के दौरान 19-20 मार्च की रात आर्मी की ड्रेस में आए हमलावरों ने 35 सिखों को मौत के घाट उतार दिया था वहीं 36 वीं मौत इस भयंकर मंजर को देख, एक महिला को हुए कार्डियक अरेस्ट के कारण हुई थी।
"आज बम बाँध कर फटने वाले ज्यादातर आतंकी आखिर और किस मजहब को मानने वाले हैं? अगर इन में से ज्यादातर मुस्लिम ही हैं तो क्यों नहीं इनकी प्रोफाइलिंग की जाए?"
इस्लामिक आतंकवाद के कारण बीते साल बुर्किना फासो और उससे सटे नाइजर तथा माली में करीब 4000 लोगों की मौत हुई थी। करीब 600,000 लोग मजबूर होकर अपना ही घर छोड़कर भाग चुके हैं।
टीजे जोसेफ उस प्रोफेसर का नाम है जो अपनी ही समुदाय का मारा है। बकौल जोसेफ, चर्च ने उनका साथ नहीं दिया। उन्हें आधिकारिक तौर पर बहिष्कृत कर दिया। उनकी पत्नी, दो बच्चे और बुजुर्ग माँ को भी हाशिए पर खड़ा कर दिया।
मेहता अपनी किताब में लिखते हैं कि 'मिशन कश्मीर' के लिए स्क्रिप्ट लिखते समय विधु विनोद चोपड़ा समुदाय विशेष की भावनाओं का ख्याल रखने और 'पोलिटिकली करेक्ट' बने रहने पर खासा जोर देते थे। चोपड़ा का मानना है कि भारत सरकार ने कश्मीर में 'रंग में भंग' डाला।
लंदन में मार गिराए गए आतंकी अम्मान का मानना था कि यजीदी औरतें तवायफ होती हैं और कुरान में उनका बलात्कार करने की इजाजत है। अपने नोटबुक में उसने बम बनाने के तरीके लिखे हुए थे। साथ ही लिखा था कि शहीदों की तरह मरकर वह जन्नत जाना चाहता है।
19 जनवरी 1990 की भयावह घटनाएँ बस शुरुआत थी। अंतिम प्रहार 26 जनवरी को होना था, जो उस साल जुमे के दिन थी। 10 लाख लोग जुटते। आजादी के नारे लगते। गोलियॉं चलती। तिरंगा जलता और इस्लामिक झंडा लहराता। लेकिन...
खतरा गली-गली पसर गया है। नहीं चेते तो आज का कोई अशफाक कल आपके कमलेश का गला रेत जाएगा। मजहबी कट्टरपंथ को आज दफन नहीं किया तो बात हिंदुत्व के कब्र खुदने जैसे नारों पर ही नहीं रुकेगी। समाज के तौर पर इससे लड़ना ही होगा।