"अगर ग़ैर-हिन्दू BHU का कुलपति नहीं हो सकता और यह वर्तमान एक्ट में है, तो धर्म विज्ञान संकाय के लिए बनाए विशेष अधिनियम एक्ट से बाहर कैसे हो गए? 1904, 1906, 1915, 1951 और 1969 के BHU के एक्ट में अगर धर्म विज्ञान संकाय के लिए विशेष अधिनियम बनाये गए थे तो उसको महामना के उद्देश्यों के विपरीत क्यों बदला गया?"
लेखक, indiafacts.org और अद्वैत एकेडमी के सम्पादक व धर्मशास्त्रों के जाने-माने टिप्पणीकार नितिन श्रीधर ने धर्म से जुड़े कई पक्षों पर ऑपइंडिया से बात की, जिसमें राजनीति, लोकतंत्र के बारे में दृष्टिकोण, हाल ही में आए सबरीमाला और राम मंदिर के फैसले, धर्म की व्यवहारिक परिभाषा आदि शामिल थे। पेश है इस साक्षात्कार के मुख्य हिस्सों का सारांश:
यह अभिषेक मातरम नामक हिन्दू साम्राज्य के स्वर्ण काल का भी परिचायक है। उस समय के हिन्दू तावुर अगुंग नामक एक अनुष्ठान करते थे, जिसके बारे में वे मानते थे कि इससे मनुष्यों के साथ समस्त ब्रह्माण्ड को ही पवित्र किया जाता है।
अपनी दरिद्रता की स्थिति में भी याचक को निराश न करना पड़े, इसलिए घर में मौजूद एकमात्र खाने योग्य वस्तु का दान करते ब्राह्मणी को देख उनके मुख से देवी लक्ष्मी की स्तुति में एक स्त्रोत फूट पड़ा। उन्होंने माँ लक्ष्मी से उस परिवार की निर्धनता दूर करने के लिए जो प्रार्थना की, उसे 'कनकधारा स्त्रोत' के नाम से जाना जाता है।
जानिए वाल्मीकि रामायण की उस कहानी के बारे में, जो 'रावण ने सीता को छुआ तक नहीं' वाले नैरेटिव को ध्वस्त करती है। रावण विद्वान था, संगीत का ज्ञानी था और शिवभक्त था। लेकिन, उसने स्त्रियों को कभी सम्मान नहीं दिया और उन्हें उपभोग की वस्तु समझा।
"रामायण में कई ऐसे काव्य हैं जो ज्ञान-विज्ञान, सुशासन सबका वर्णन करते हैं। स्त्री की मर्यादा कैसे रखी जाती है उसका रामायण में वर्णन है। स्त्री की मर्यादा के लिए युद्ध उचित है तो होना चाहिए।"
पटनायक दावा करते हैं कि वेदों में कहीं भी भगवान शिव का ज़िक्र ही नहीं है। इसके बाद भारतीय इतिहास के बारे में ट्वीट करने वाला मशहूर ट्विटर हैंडल 'true Indology' ने उन्हें पलट कर जवाब में वह वैदिक ऋचा बता दिया, जिसमें भगवान शिव को उनके अन्य नामों शम्भु, शंकर, पशुपति के अलावा "शिव" नाम से भी नमस्कार किया गया है।
शिक्षिका ने जब आरती करने के लिए कहा तो दूसरी कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों ने मना कर दिया, क्योंकि वे ईसाई हैं। शिक्षिका ने उनके अभिवावकों को समझाने की कोशिश की कि अगर वे महज़ आरती से इतना बिदक रहे हैं, तो भरतनाट्यम सीखेंगे कैसे?
इस अनोखे मंदिर में लोगों की अपार श्रद्धा है। यही वजह है कि भगवान अति वरदार भले ही 40 वर्ष तक जल समाधि में रहते हों, लेकिन पूरे साल इस मंदिर में भक्तों की भीड़ जुटती है। इससे पहले वर्ष 1979 में भगवान अति वरदान ने मंदिर के पवित्र तालाब से बाहर आकर भक्तों को दर्शन दिए थे।