Thursday, October 31, 2024
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सामूहिक अपील वाले नेता कहाँ हैं पार्टी में? हमारे पास न नेता, न पैसा: दिग्गज कॉन्ग्रेसी नेता सुशील शिंदे

"इंदिरा गाँधी के समय भी कॉन्ग्रेस बुरे दौर से गुजरी थी। तब ग़रीब लोगों ने कॉन्ग्रेस का समर्थन किया था और पार्टी को बुरे दौर से उबार दिया, इसके बाद पार्टी पहले से अधिक मज़बूत हुई। लेकिन अभी..."

पूर्व केंद्रीय मंत्री और दिग्गज कॉन्ग्रेसी नेता सुशील कुमार शिंदे ने अपने एक बयान से राजनीतिक गलियारे में हलचल पैदा कर दी है। दरअसल, उन्होंने कहा है कि आने वाले समय में कॉन्ग्रेस और राष्ट्रवादी कॉन्ग्रेस पार्टी (NCP) का विलय हो जाएगा। आपको बता दें कि शिंदे की बेटी प्रणति शिंदे सोलापुर शहर की सीट से तीसरी बार कॉन्ग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रही हैं।

इंडियन एक्सप्रेस के मनोज मोरे को दिए साक्षात्कार में उन्होंने कई मुद्दों पर चर्चा की। इस दौरान उन्होंने कई सवालों के जवाब दिए। इनमें से एक सवाल कॉन्ग्रेस और NCP के विलय का था, जिसे उन्होंने अपना निजी विचार बताया और कहा कि दोनों पार्टियों की विचारधाराएँ और सिद्धांत एक हैं। उन्होंने कहा कि जो नेता पार्टी (कॉन्ग्रेस) को छोड़कर जा चुके हैं अगर वे वापस आ जाएँ तो पार्टी देश की सबसे शक्तिशाली पार्टी बन जाएगी। कॉन्ग्रेस के लिए यह समय एकजुट होने का है।

कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता शिंदे की इन निजी टिप्पणियों पर पूर्व पार्टी सदस्यों की क्या प्रतिक्रिया रही? इस पर उन्होंने कहा उनके पास कई पूर्व नेताओं का फोन आया और उन सबने उनकी प्रशंसा की। शिंदे ने बताया कि पूर्व सदस्यों ने उनकी बात का समर्थन करते हुए कहा कि अगर देश भर के पार्टी नेता एकजुट होंगे तो कॉन्ग्रेस मज़ूबत होगी।  

इस संदर्भ में NCP की क्या प्रतिक्रिया है, इस पर शिंदे ने कहा,

“मैंने एक बहस शुरू की है, देखते हैं कि क्या होता है… मैंने अब तक उनके (पवार) मुद्दे पर चर्चा नहीं की है। टिप्पणी करने के बाद उन्होंने मुझे फोन नहीं किया। मैं उनसे जल्द ही पंढरपुर में मिलूँगा। देखते हैं कि उस बैठक में क्या होता है।”

सुशील कुमार शिंदे से यह पूछे जाने पर कि उनके द्वारा की गई टिप्पणी से कॉन्ग्रेस पार्टी का कोई लेना-देना है कि नहीं, तो उन्होंने इंदिरा गाँधी के दौर का ज़िक्र करते हुए बताया कि उनके समय में भी कॉन्ग्रेस बुरे दौर से गुजरी थी। ग़रीब लोगों ने कॉन्ग्रेस का समर्थन किया और पार्टी को बुरे दौर से उबार दिया, इसके बाद पार्टी पहले से अधिक मज़बूत हुई। फ़िलहाल, पार्टी में केवल सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी के रूप में दो मज़बूत नेता हैं। सामूहिक अपील वाले नेता कहाँ हैं? कॉन्ग्रेस के पास नेता या पैसा नहीं है… वहीं दूसरी तरफ़, भाजपा भावनात्मक रूप से लोगों को धर्म के नाम पर ब्लैकमेल कर रही है… राम मंदिर और अनुच्छेद-370 जैसे मुद्दों को उठा रही है।

साक्षात्कार में शिंदे से महाराष्ट्र की स्थिति के बारे में पूछा गया कि वहाँ कॉन्ग्रेस का बुरा हाल है, लोकसभा चुनाव 2019 में पार्टी ने केवल एक सीट जीती, इसके मद्देनज़र विधानसभा चुनाव से पार्टी को क्या उम्मीदें है? इस पर शिंदे ने भाजपा की आलोचना करते हुए कहा कि भाजपा ने धर्म के नाम पर वोट माँगे। उस समय VBA से प्रकाश आंबेडकर चुनावी मैदान में खड़े हुए, जिन्होंने जाति कार्ड खेला… लेकिन अब कॉन्ग्रेस में सुधार हो रहा है और हम इस चुनाव में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि हमें (कॉन्ग्रेस-एनसीपी) 125 से 152 सीटें जीतने की उम्मीद है।

सीटों के लेकर किए गए शिंदे के दावे पर सवाल किया गया कि NCP के अजीत पवार ने तो कहा है कि गठबंधन 170 सीटें जीतकर सरकार बनाएँगे। इस पर शिंदे ने कहा,

“अगर अजीत पवार ऐसा कह रहे हैं, तो यह संभव हो सकता है। वह (शिंदे) महाराष्ट्र से बाहर हो गए हैं इसलिए वो (अजीत पवार) बेहतर जानते है। मैं ज़्यादा यात्रा नहीं कर पाया हूँ।”

पत्रकार ने उनसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और मुख्यमंत्री द्वारा भाजपा की रैलियों के संदर्भ में सवाल किया तो शिंदे ने बताया कि उन्हें महाराष्ट्र में चुनाव हारने का डर है। उनके मन में अभी भी मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव का असर है, इसलिए वो (भाजपा) इस शर्मिंदगी से बचने के लिए बाहर जा रहे हैं।

प्रकाश अंबेडकर को कॉन्ग्रेस अपने पाले में नहीं ला सकी, इसकी क्या वजह हो सकती है? इस पर शिंदे ने कहा कि यह बेहद दु:खद है कि उन्होंने बाबासाहेब अम्बेडकर द्वारा प्रचारित धर्मनिरपेक्षता के आदर्शों के ख़िलाफ़ व्यवहार किया। शिंदे ने खेद जताते हुए कहा कि प्रकाश अम्बेडकर धर्मनिरपेक्षता की हत्या कर रहे हैं। लोकसभा चुनाव के दौरान भी उनके रुख़ से कॉन्ग्रेस-NCP जैसी धर्मनिरपेक्ष दलों के 9-10 उम्मीदवारों की हार हुई। अंत में उनसे शरद पवार को प्रवर्तन निदेशालय (ED) से मिले नोटिस के बारे में पूछा गया, जिसे उन्होंने उत्पीड़न का नाम देते हुए पूरी तरह से राजनीतिक प्रतिशोध करार दिया।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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