भारत धीमे-धीमे लोकसभा चुनावों की तरफ बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार के दस वर्ष पूरे होने को हैं। अब वह समय आ गया है कि बीते 9.5 वर्षों में इस सरकार ने अलग-अलग फ्रंट पर कैसा प्रदर्शन किया है, उसका मूल्यांकन किया जाए।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार 2014 में सत्ता के आने के बाद से ही कई फ्लैगशिप योजनाएँ लाई है। इन योजनाओं के जरिए 1947 से 2014 तक ना हल की जा सकी जाने वाली मूलभूत समस्याओं को हल करने का प्रयास किया गया है। यह प्रयास कितना सफल है, यह आँकड़े और इनके लाभार्थी बताते हैं।
2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आने से पहले की सरकारें देश के लोगों को साफ़ पानी, पक्का आवास, गैस सिलेंडर, बैंक खाता, बिजली और शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाएँ तक नहीं उपलब्ध करवा सकी थीं। उन्होंने सबसे पहले इन समस्याओं को हल करने का निर्णय लिया। योजनावार तरीके से जानते हैं कि इनका क्या असर रहा है।
प्रधानमंत्री आवास योजना
एक पक्का घर किसी भी परिवार की सबसे बड़ी और मूलभूत आवश्यकता होती है। वर्ष 2014 से पहले देश के करोड़ों लोग कच्चे घरों या फिर किराए के घरों में रहने को मजबूर थे। अभी तक कोई भी सरकार उन्हें एक पक्की छत मुहैया नहीं करवा पाई थी। इस समस्या से लड़ने के लिए मोदी सरकार ने जून 2015 में प्रधानमंत्री आवास योजना शुरू की।
इस योजना के तहत शहरी क्षेत्रों में लाभार्थियों को ₹2.5 लाख और ग्रामीण क्षेत्रों में ₹1.2 लाख रूपए घर का निर्माण करवाने के लिए दिए जाते हैं। इस योजना के तहत लाभार्थियों का सर्वे करके उनका चयन किया जाया जाता है।
उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार, प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) के तहत अब तक 1.18 करोड़ घरों के निर्माण को मंजूरी दी जा चुकी है। इनमें से 77.5 लाख घरों का निर्माण भी हो चुका चुका है। सरकार इसके लिए ₹1.53 लाख करोड़ दे चुकी है।
वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में इस योजना के तहत 2.94 करोड़ घरों को मंजूरी दी जा चुकी है जिसमें से 2.48 करोड़ घर बन भी गए हैं। इसके लिए केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों के साथ मिलकर ₹2.6 लाख करोड़ की धनराशि दी है।
दोनों योजनाओं को मिलाकर मोदी सरकार के 9 वर्षों में देश भर में अब तक कुल 3.25 करोड़ घरों का निर्माण हो चुका है। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले की रहने वाली सुनीता इस योजना की लाभार्थी हैं। सुनीता एक मंदिर के बाहर फूल बेच कर जीवनयापन करती हैं।
सुनीता अवधी में कहती हैं, “भैया हम पक्का घर दसन साल नाई बनवाय पउतेन, मोदी सरकार घर दिहिस है। तब बनि पावा है। (हम तो दस सालों तक पक्का घर नहीं बनवा पाते, हमें मोदी सरकार ने घर दिया है।)”
प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना
देश के करोड़ों घरों को 2014 से पहले गैस सिलेंडर नहीं दिया जा सका था। इससे करोड़ों घरों में महिलाएँ चूल्हे पर धुएँ में खाना बनाने को मजबूर थीं। इससे जहाँ उनके स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता ही था, जलावन के लिए लकड़ी कटान और आग लगने जैसे खतरों से भी उन्हें दो चार होना पड़ता था। इसके अलावा प्रदूषण भी होता था।
इस समस्या से लड़ने के लिए 1 मई 2016 को उज्ज्वला स्कीम की शुरुआत की गई। इसके अंतर्गत गरीब परिवारों को मुफ्त एलपीजी कनेक्शन दिए गए। उन्हें इसके साथ गैस चूल्हे भी उपलब्ध करवाए गए। इस योजना के चालू होने से पहले देश के मात्र 62.1% घरों में ही एलपीजी कनेक्शन था।
योजना के चालू होने के बाद 99.8% घरों में स्वच्छ ईंधन पहुँच चुका है। इस योजना के तहत उज्ज्वला के पहले फेज में देश में 8 करोड़ कनेक्शन बांटे गए जबकि दूसरे फेज में 1.6 अतिरिक्त कनेक्शन भी बांटे गए हैं।
जिन सुनीता को पक्के घर का लाभ मोदी सरकार में मिला है, वह इस उज्ज्वला योजना का लाभ भी पाई हैं। इस योजना के विषय में वह कहती हैं, “पहिले लकड़ी लाइ केरे खाना बनाईत रहन, बरसात मैहा बड़ी समस्या होती रहय, सब लकड़ी भीगी होती रहय तौ चूल्हा जलति नाइ रहय, अब कोई समस्या नाई है। (पहले लकड़ी लाकर खाना बनाना पड़ता था, बरसात में बड़ी समस्या होती थी क्योंकि लकड़ियाँ भीगी होती थीं, अब कोई समस्या नहीं है।)” वह अपनी जिंदगी में आए इस बदलाव के लिए प्रधानमंत्री को आशीर्वाद देती हैं।
जलजीवन मिशन – हर घर नल से जल
मोदी सरकार के सामने सबसे बड़ी समस्या यह थी कि उसको वह काम भी करने पड़ रहे थे जो पिछले 7 दशकों में कबके हो जाने चाहिए थे। उसे साफ़ पानी घर घर पहुँचाने जैसी समस्या को हल करना पड़ रहा था।
इस समस्या से लड़ने के लिए वर्ष 2019 में जल जीवन मिशन की शुरुआत की गई। इसके तहत सरकार ने लक्ष्य रखा कि देश के एक-एक घर में नल के माध्यम से साफ़ पानी पहुँचाया जाएगा चाहे वह घर उत्तर प्रदेश के तराई मैदान में स्थित हो या फिर तमिलनाडु की नीलगिरी पहाड़ियों के बीच कहीं।
इस योजना के चालू किए जाने से पहले देश के मात्र 16.82% (3.23 करोड़) घरों तक नल से जल पहुँचता था। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों के मात्र 1.9% घरों में ही नल से जल पहुँचता था।
इस योजना को चालू हुए अब 4 वर्ष से अधिक हो चुके हैं। अब देश के 70.17% घरों में नल से जल पहुँच रहा है। अब देश के 13.5 करोड़ घरों में नल से जल पहुँच रहा है। सरकार योजना की शुरुआत होने के बाद से अब तक ₹1.52 लाख करोड़ राज्यों को दे चुकी है। हालाँकि, पश्चिम बंगाल और राजस्थान जैसे कुछ राज्य इस योजना को अब भी ढंग से लागू नहीं कर पा रहे।
इस योजना के लाभार्थी बलराम बताते हैं, “पहले नगर पंचायत के सार्वजनिक नल पर पानी लेने जाना पड़ता था जहाँ एक-दो घंटे के लिए ही आपूर्ति होती थी। ठंड में भी सुबह-सुबह 5-6 बजे उठकर पानी भरना पड़ता था। कभी-कभार देर हो जाती थी तो पानी हैण्डपंप से भरना पड़ता था जिसमें आर्सेनिक होता था। अब घर में ही पानी आता है।”
प्रधानमंत्री जन धन योजना
देश में 2014 से पहले विकास के लिए दिए जाने वाले पैसेज में लीकेज बहुत बड़ी समस्या थी। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने एक सार्वजनिक भाषण में स्वीकार किया था कि यदि केंद्र सरकार दिल्ली से ₹1 भेजती है तो लाभार्थी तक मात्र 15 पैसे ही पहुँच पाते हैं।
दशकों तक इस समस्या को नहीं सुलझाया जा सका था। इसके अतिरिक्त, देश में बड़ी आबादी ऐसी थी जिसका बैंकिंग सिस्टम से कोई परिचय ही नहीं था। ना ही इनके पास कोई बैंक खाता था और ना ही इन्हें बैंकों में कोई तरजीह दी जाती थी। सरकार यदि इन्हें कोई लाभ देना भी चाहती तो वह ऐसा करने में विफल होती थी।
इन दोनों समस्याओं को हल करने के लिए मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री जन धन योजना को सत्ता में आने के मात्र तीन महीने के भीतर 28 अगस्त 2014 को लॉन्च किया। इसके तहत देश के हर घर में कम से एक खाता हो, ऐसा लक्ष्य रखा गया। कैम्प लगाए गए, नई शाखाएँ खोली गईं।
यह योजना इतनी सफल रही कि इसके अंतर्गत 50.8 करोड़ खाते खोले जा चुके हैं। इन खातों के माध्यम से सरकार अब तक ₹32 लाख करोड़ लाभार्थियों को भेज चुकी है। इस पैसे में एक रूपए का भी लीकेज नहीं है।
जन धन योजना का लाभ केवल योजना क्रियान्वन तक सीमित नहीं है। इस योजना से सरकार ने सार्वजनिक बीमा योजना जन ज्योति को जोड़ा है। यह खाते प्रधानमंत्री मुद्रा योजना को सफल बनाने, रुपे (Rupay) कार्ड को बढ़ाने और डिजिटल इंडिया में तेजी लाने में बड़े सहायक रहे हैं।
जन धन योजना की लाभार्थी सुनीता भी हैं, जिन्हें उज्ज्वला और आवास योजना का लाभ मिला है। वह अपने खाते में अब छोटी बचत जमा करती हैं। वह कभी ₹200 तो कभी ₹500 बचा कर अपने खाते में जन सुविधा केंद्र के माध्यम से जमा करती हैं। उनका कहना है कि इन छोटी बचतों से उन्हें अपनी दो बेटियों ममता और सरिता की शादी करने में बड़ी सहायता मिली है।
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना
देश में जनधन योजना की सफलता के साथ ही यह रास्ता भी खुल गया कि अब उद्यमियों को आगे बढ़ाया जाए। सरकार ने छोटे उद्यमियों को आसान कर्ज देने के लिए मुद्रा योजना अप्रैल 2015 में चालू की गई थी। समस्या यह थी कि छोटे उद्यमियों को बैंक कर्ज नहीं देते थे क्योंकि उनके पास कभी कागज नहीं होते थे तो कभी बैंक उन्हें यह कह कर मना कर देता था कि कर्ज के एवज में देने के लिए उनके पास कोई गारंटी नहीं है।
इस योजना में इन समस्याओं को हल करके इसके तहत ₹50,000 रूपए से लेकर ₹50 लाख तक के कर्ज आसानी से देना चालू किए। इससे देश भर छोटे कारोबारियों को बड़ी सहायता मिली है। मुद्रा योजना से अब तक ₹23.2 लाख करोड़ के कर्ज 40 करोड़ से अधिक लाभार्थियों को दिए जा चुके हैं। इस योजना में सबसे बड़ी बात यह है कि इसकी 70% लाभार्थी महिलाएँ हैं।
रोड और रेल में क्रान्ति
वर्ष 2014 में मोदी सरकार के आने के समय देश की सड़कों की हालत कोई ख़ास अच्छी नहीं थी। रेलवे को एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश मजदूर ले जाने के साधन की हैसियत देकर छोड़ दिया गया था। ना ही कोई नई तकनीक थी ना ही कोई प्लान था।
मोदी सरकार की रेलवे के क्षेत्र में सबसे बड़ी उपलब्धि देश के रेलवे का 90% से अधिक बिजलीकरण है। वर्ष 2014 में मोदी सरकार आने से पहले आजादी के बाद 67 वर्षों में मात्र 21,413 रेलवे लाइनों का बिजलीकरण किया गया था। यह मात्र 9 वर्षों में ही दोगुने से अधिक बढ़ कर 59,818 किलोमीटर हो चुका है।
इस बिजलीकरण से रेलवे के डीजल का खर्चा बचा है और साथ ही प्रदूषण को भी रोकने में मदद मिली है। इसके अलावा रेलवे ने पुराने ICF डिब्बों को बदल कर LHB कोच अपनी ट्रेनों में लगाए हैं। यह अधिक सुरक्षित और आरामदायक हैं।
भारतवासियों को अच्छी सुविधाएँ देने के लिए रेलवे ने वन्दे भारत जैसी रेलगाड़ियाँ चलाई हैं जिनकी संख्या लगातार बढाई जा रही है। जहाँ कॉन्ग्रेस सरकार द्वारा वर्ष 1988 में चलाई गई शताब्दी रेलगाड़ियाँ 29 वर्षों में मात्र 21 की संख्या में चल सकीं वहीं 2019 में चलाई गई वन्दे भारत की संख्या 68 हो चुकी है।
रेलवे नेटवर्क की बात की जाए तो वर्ष 2014 में देश का कुल रेल नेटवर्क 65,808 किलोमीटर था जो कि अब 68,043 किलोमीटर हो चुका है। बाकी पहले से स्थापित नेटवर्क में पटरियों की क्षमता बढ़ा कर उस ओअर तेज रेलगाड़ियाँ चलाने के लिए अपग्रेड किया गया है। इसके अतिरिक्त, डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर भी इस क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि है।
सड़कों के क्षेत्र में मोदी सरकार की सफलता की प्रशंसा उनके विरोधी भी करते हैं। वर्ष 2013-14 में देश में नेशनल हाइवे की कुल लम्बाई 91,287 किलोमीटर थी जो कि अब बढ़ कर 1.45 लाख किलोमीटर से अधिक हो चुकी है। यह लगभग 59% की वृद्धि है।
इसके अलावा 2013-14 में मात्र 18,371 किलोमीटर नेशनल हाइवे ही फोरलेन थे जो कि अब बढ़ कर 45,000 किलोमीटर हो चुके हैं। मोदी सरकार आने के पहले जहाँ एक दिन में औसतन 10-12 किलोमीटर सड़क का निर्माण होता था वहीं यह 2021-22 में बढ़ कर 35 किलोमीटर हो चुका है।
साथ ही, पूरे देश में नए एक्सप्रेसवे भी बन रहे हैं। जहाँ 2014 से पहले उँगलियों पर एक्सप्रेसवे गिने जा सकते थे वहीं अब इनकी लम्बाई हजारों किलोमीटर में पहुँच चुकी है। उत्तर प्रदेश में अभी भी कई नए एक्सप्रेसवे का निर्माण चल रहा है।
IMEEC परियोजना
ऐसा नहीं है मोदी सरकार भारत के भीतर ही योजनाओं को तेजी से लागू कर रही है। वह ऐसी योजनाओं को भी तेजी से पूरा कर रही है जो कि विदेशों में है लकिन जिनसे भारत के हित जुड़े हैं। ऐसी ही एक परियोजना IMEEC (भारत मध्य पूर्व आर्थिक कॉरिडोर) पर भारत ने काम करना चालू कर दिया है।
यह योजना काफी महात्वाकांक्षी है और ₹3.5 लाख करोड़ की है। इसके तहत भारत मध्य पूर्व यूरोप आर्थिक गलियारा (IMEEC) के तहत भारतीय बंदरगाहों से शिप से संयुक्त अरब अमीरात के फुजैरा तक माल ट्रांसपोर्ट किया जाएगा।
इसके बाद वहाँ से कंटेनरों को ट्रेन के जरिए इजरायल में हाइफा तक ले जाना है। हाइफा से, कंटेनर इटली, फ्रांस, यूके और अमेरिका के साथ यूरोप तक जाएँगे। इस परियोजना के अंतर्गत भारत में बंदरगाहों को रेल लिंक से जोड़ने वाले काम पर भारत ने पहले ही काम चालू कर दिया हैं।
सबसे बड़ी बात यह है कि यह योजनाएँ सिर्फ दिल्ली की गुलाबी ठंड का लाभ ले रहे अफसरों की मेजों पर फाइलों के गट्ठरों में शामिल नहीं है। ना ही योजनाएं पूर्ववर्ती सरकार में बेल्जियम से लाए गए अर्थशास्त्रियों की हॉटटॉक के लिए बनी हैं। यह सभी योजनाएँ अपना असर जमीन पर दिखा रही हैं।
मोदी सरकार की देश से लेकर विदेश तक की इन योजनाओं में सबसे अच्छी बात उनका लाभार्थियों तक पहुँचना है। यदि 2024 का लोकसभा चुनाव इस बात पर लड़ा जाए कि मनमोहन सिंह सरकार ने अपने 10 वर्षों के कार्यकाल में क्या किया था और मोदी सरकार ने क्या किया है, तो निश्चित ही इसमें प्रधानमंत्री मोदी उनसे कहीं मीलों आगे होंगे।