Saturday, November 23, 2024
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खोज उस क्रिएटिव डॉक्टर की, जिसने नकली पीड़ितों के हिजाब और जैकेट पर बैंडेज लगाया

जिन पत्थरबाज दंगाइयों को सच में पुलिस ने पीटा है, वो पोस्टर-बैनर लेकर बाहर निकल कर विरोध प्रदर्शन करने की हालत में हैं ही नहीं। आख़िर इतनी पिटाई के बाद कोई उपद्रवी फिर से बाहर निकलने की जहमत क्यों उठाएगा? योगी के मंत्री पहले ही ऐलान कर चुके हैं कि ऐसी कार्रवाई की जाएगी कि दंगाइयों की सात पुश्तें याद रखेंगी।

एक आँख बाहर ताकती हुई, दूसरी आखों के ऊपर से सफ़ेद रंग की पट्टी, सिर में बैंडेज, पाँव में बैंडेज। जामिया गैंग के छात्र कुछ यूँ ही घूम रहे हैं। घायल अवस्था में। एक से बढ़कर एक फोटोज आ रहे हैं मार्किट में। किसी युवती के हिजाब के ऊपर से ही बैंडेज लगा दिया गया है तो किसी के जैकेट के ऊपर से ही पट्टियाँ बाँध दी गई हैं। कहीं इस आस्था में विरोध प्रदर्शन हो रहा है तो कहीं नाटक खेलने की बातें सामने आ रही हैं। जैसा कि सीएए विरोधी सेलेब्रिटी फरहान अख़्तर ने कहा है- “I don’t want to go into the details”, हम भी ये काम ‘फाल्ट न्यूज़’ वालों पर छोड़ते हैं।

आख़िर इन वामपंथियों का फैक्ट-चेक कर के अपना समय ही क्यों बर्बाद करना? यहाँ सवाल ये है कि आखिर किस क्रिएटिव नकली डॉक्टर ने ये मरहम-पट्टी की है, जिसने जैकेट और हिजाब के ऊपर से ही बैंडेज लगा दिया? चोट शरीर को आई है या कपड़े को? क्या ये वही डॉक्टर है, जिसके गैंग ने पाकिस्तान में कबूतर के गुदाद्वार से हेपेटायटिस का कीड़ा खिंच लेने वाला तरीका ईजाद किया है? अगर ऐसा है तो ये सोचने लायक बात है कि इन वामपंथियों को दवा किस मार्ग से खिलाया जाता होगा और पानी शरीर के किस भाग से होकर चढ़ाया जाता होगा?

ये फोटो क्रन्तिकारी हैं। वामपंथियों के पास इससे भी एक क़दम और आगे निकलने का मौक़ा है। वो गले में फाँसी की रस्सी लगा कर भी घूम सकते हैं ताकि लोगों को लगे कि उन्हें ‘अलोकतांत्रिक’ और ‘तानाशाह’ भारत सरकार ने सज़ा-ए-मौत दे दी है और वो मारे जा चुके हैं। लोग तो भला ठहरे बेवकूफ। वो समझेंगे कि ये जो भी वामपंथी विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, उन्हें फाँसी दी जा चुकी है। ठीक उसी तरह, जैसे जैकेट और हिसाब के ऊपर से मरहम-पट्टी की गई है।

ये ट्रेंड सही नहीं है। कहीं ऐसा तो नहीं है कि ये सब पीएम मोदी के फिटनेस अभियान का विरोध कर रहे हैं? प्रधानमंत्री हमेशा योग करने, फिट रहने, व्यायाम करने और सुबह दौड़ लगाने की बातें करते हैं, ताकि लोग ख़ुद को फिट रख सकें। कहीं वामपंथियों ने ये तो नहीं ठान लिया है कि उन्हें फिट रहने के लिए कोई मजबूर नहीं कर सकता और वो ऐसे ही हाथ-पाँव टूटने का बहाना करते हुए घूमेंगे? या फिर कुछेक ने मोदी की इस नीति का विरोध करने के लिए ये भी प्रण किया हो कि तब तक दंगे और उपद्रव करेंगे, जब तक पुलिस उनका कचूमर निकाल कर उन्हें अनफिट नहीं कर देती।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगर कल को कह दें कि शौच के बाद हमेशा हाथ-पाँव ठीक से धोना चाहिए तो ये वामपंथी कहीं… छोड़िए, जब ऐसा होगा तो आपको ख़ुद पता चल जाएगा। एक आँख, एक हाथ और एक पाँव वाले इन प्रदर्शनकारियों को सबसे पहले उस नकली डॉक्टर का नाम उजागर करना चाहिए। ऐसा इसीलिए, क्योंकि इससे लोगों को भी पता चलेगा कि शरीर घायल होने से कपड़ों की मरहम-पट्टी कर के भी मरीजों को ठीक किया जा सकता है और ऐसा तरीका ईजाद करने वाला क्रन्तिकारी वैज्ञानिक है कौन?

आश्चर्य की बात तो ये कि कुछ प्रदर्शनकारियों के बैंडेज पर ख़ून लगा हुआ भी दिख रहा है। वो लाल रंग का कौन सा पदार्थ है, इसकी जाँच होनी चाहिए। अगर वो केमिकल वाला रंग है तो ये और भी टेंशन वाली बात है क्योंकि कई मुस्लिम मानते हैं कि इस्लाम में रंग खेलना हराम है। हिजाब, उसके ऊपर लगी पट्टी और फिर पट्टी पर लगा लाल रंग का केमिकल। हाथ में एक बैनर हो और मुँह चिल्लाने की मुद्रा में हो तो फोटो परफेक्ट आता है। ठीक उसी एंगल से, जिससे लदीदा और आयशा की करतूतों को सुनियोजित तरीके से ब्रांडिंग के लिए शूट किया गया था।

जैकेट के ऊपर से मरहम-पट्टी: मदरसा छाप डॉक्टरों की करतूत?

जिन पत्थरबाज दंगाइयों को सच में पुलिस ने पीटा है, वो पोस्टर-बैनर लेकर बाहर निकल कर विरोध प्रदर्शन करने की हालत में हैं ही नहीं। आख़िर इतनी पिटाई के बाद कोई उपद्रवी फिर से बाहर निकलने की जहमत क्यों उठाएगा? योगी के मंत्री पहले ही ऐलान कर चुके हैं कि ऐसी कार्रवाई की जाएगी कि दंगाइयों की सात पुश्तें याद रखेंगी। तो सोचने वाली बात है, कोई दंगाई मार खा कर भी बाहर क्यों निकलेगा? अर्थात, जिन्होंने पुलिस के डंडे का स्वाद नहीं चखा है, वही बाहर निकले हुए हैं। मतलब वो लोग ‘नकली घायल’ हैं।

अगर सच में बैंडेज पहनने का शौक है तो उपद्रवियों के लिए दो विकल्प हैं। पहला विकल्प ये है कि वो यूपी में जाकर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने का प्रयास कर सकते हैं। पुलिस उनकी ऐसी मरम्मत करेगी कि वो ख़ुद असली मरहम-पट्टी के साथ लौटेंगे। लेकिन हाँ, वो फिर सड़क पर उतर कर ‘ड्रामा खेलने’ की हिम्मत शायद ही जुटा सकें। दूसरा विकल्प भी है। इस विकल्प में उन्हें ‘सेक्युलर बैंडेज’ मिलेगा और मुफ़्त में उनके बाल भी मुँड़ दिए जाएँगे। इसके लिए महाराष्ट्र में जाकर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की आलोचना करनी होगी। इसके बाद पुलिस की कोई ज़रूरत ही नहीं रह जाएगी। शिवसैनिक काम पूरा कर देंगे।

हालाँकि, शिवसेना ने जिन लोगों की पिटाई की है, वो बेचारे तो बाहर निकल कर विरोध प्रदर्शन भी नहीं कर सकते। अगली बार न जाने उनके साथ क्या हो! लेकिन हाँ, ये नकली बैंडेज और मरहम-पट्टी वाले सहानुभूति और समर्थन नहीं, हँसी के पात्र बन रहे हैं। आप भी हँस लीजिए, इन्हें देख कर।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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