महाराष्ट्र के पालघर के दहानु तालुका के एक आदिवासी बहुल गडचिंचले गाँव में सैकड़ों लोगों की भीड़ द्वारा जूना अखाड़ें के दो संतों और उनके ड्राइवर की पुलिस के सामने ही बड़ी बेरहमी से पीट-पीट कर हत्या कर दी गई। घटना गुरुवार (अप्रैल 16, 2020) के देर रात की है। घटना की जानकारी होते ही संत समाज में गहरा आक्रोश व्याप्त है कि कैसे महाराष्ट्र पुलिस के सामने दो महात्माओं और उनके ड्राइवर की इस तरह से हत्या कर दी जाती है और पुलिस मूक दर्शक बनी रहती है।
भीड़तंत्र का ऐसा भयंकर रूप।पालघर में जूना अखाड़े के दो साधुओं की निर्मम हत्या पर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने सख़्त कार्यवाई की माँग की है।कोरोना संकट के बीच भी लिंचिंग! इनको लाठी डंडों के साथ खून की प्यासी भीड़ के बीच क्यों छोड़ा गया? pic.twitter.com/fxbFFDlzmr
— Anjana Om Kashyap (@anjanaomkashyap) April 19, 2020
क्या है पूरा मामला
जूना अखाड़ा के 2 महंत कल्पवृक्ष गिरी महाराज (70 वर्ष), महंत सुशील गिरी महाराज (35 वर्ष) अपने ड्राइवर निलेश तेलगडे (30 वर्ष) के साथ मुंबई से गुजरात अपने गुरु भाई को समाधि देने के लिए जा रहे थे। दरअसल, श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा 13 मढ़ी मिर्जापुर परिवार के एक महंत राम गिरी जी गुजरात के वेरावल सोमनाथ के पास ब्रह्मलीन हो गए थे। दोनों संत महाराष्ट्र के कांदिवली ईस्ट के रहने वाले थे और मुंबई से गुजरात अपने गुरु की अंत्येष्टि में शामिल होने जा रहे थे।
गुरु के देहावसान के बाद अचानक से मिर्जापुर परिवार के कुछ सन्तों को वहाँ बुलाया गया था ताकि महात्मा जी की समाधि लगाई जा सके। जिनमें से उसी परंपरा के दो संत महंत कल्पवृक्ष गिरी जी महाराज और दूसरे महंत सुशील गिरी जी महाराष्ट्र से गुजरात के वेरावल के लिए रवाना हुए रास्ते में उन्हें महाराष्ट के पालघर जिले में स्थित दहानु तहसील के गडचिंचले गाँव में पालघर थाने के पुलिसकर्मियों ने पुलिस चौकी के पास रोका।
How can people be so inhumane? Have you ever seen Police handing over a man to crowd to lynch & beat to death? Here is @Palghar_Police doing that. Case of 3 Brahmin men’s murder by mob is smartly shut & covered by @OfficeofUT Govt. Why no media reported? @republic @Dev_Fadnavis pic.twitter.com/J9OWohxhOw
— Sunaina Vinod (@mesunainah) April 19, 2020
ड्राइवर के साथ दोनों संतों को भी गाड़ी से बाहर निकलने के लिए कहा गया और उन लोगों को पुलिस वालों ने, सड़क के बीच में ही बैठा दिया, कहा जा रहा है वहाँ गाँव के करीब 200 के आस पास लोग अचानक ही इकट्ठे हो गए। यह गाँव और इलाका आदिवासी बहुल है और ग्रामीणों में ज़्यादातर ईसाई और कुछ के मुस्लिम समुदाय का होने का दावा भी संत समाज के कुछ लोगों द्वारा किया गया है।
यह भी कहा जा रहा है कि जूना अखाड़े के उन दोनों सन्तों और ड्राइवर को, पुलिस वालों ने डर के कारण एक तरह से उन आदिवासियों के हवाले कर दिया और इस भीड़ ने, पुलिस वालों के सामने ही डंडे और पत्थरों से मार-मार कर दोनों सन्तों और ड्राइवर की बेरहमी से हत्या कर दी। अभी तक जो वीडियो फुटेज उपलब्ध हैं उसमें आप पुलिस वालों की मौजूदगी देख सकते हैं। मॉब लिंचिंग होता देख पुलिस खुद ही चिहुँक रही है। ऐसे में महाराष्ट्र पुलिस की भूमिका भी संदिग्ध मानी जा रही है।
स्थानीय सूत्रों के अनुसार
कुछ लोकल मीडिया रिपोर्टों और स्थानीय सूत्रों के हवाले से यह भी कहा जा रहा है कि संतों की इस यात्रा के दौरान आदिवासी बहुल इस गाँव में पुलिस ने गाड़ी को रोका और साधुओं को सड़क पर बैठा कर पूछताछ करने लगी और इसी दौरान गाँव में संदिग्ध हालत में यह अफवाह उड़ा दी गई कि ये सब बच्चा चोर हैं l बस इतनी सी बात थी कि गाँव वाले इन संतों पर लाठी डंडे, भाले, फरसे लेकर टूट पड़े।
#PalgharMobLynching का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। कई साधु संतों ने संतों की हत्या मामले की उच्च स्तरीय जांच और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की माँग की है। #sadhus #Palghar_Incident #palgharlynching #JusticeForHinduSadhus pic.twitter.com/rymTsVQKkG
— Deepak Chaurasia (@DChaurasia2312) April 19, 2020
जब ‘धर्म विशेष’ बहुल आदिवासियों ने इन साधुओं को मारना शुरू किया तो महाराष्ट्र पुलिस वहाँ से भाग खड़ी हुई और साधुओं को मरता हुआ छोड़ दिया। बाद में खाना पूर्ति के लिए इन मरणासन्न साधुओं को अस्पताल ले जाया गया जहाँ उन्हें डॉक्टरों द्वारा मृत घोषित कर दिया गया। ये भी कहा जा रहा है की इस घटना को लूटपाट के उद्देश्य से भी अंजाम दिया गया। एक वीडियो फुटेज में भी भीड़ संतों की गाड़ी में चढ़ी और कुछ तलाशती नजर आ रही है।
पुलिस और ग्रामीणों की भूमिका संदिग्ध
जैसा कि आप वीडियो में भी देख सकते हैं कि जब भीड़ द्वारा उन्हें बेरहमी से पीटा जा रहा है तो न सिर्फ पुलिस वहाँ मौजूद है बल्कि एक वीडियो में तो खुद ही पुलिस संत कल्पवृक्ष गिरी महराज को पुलिस चौकी से बाहर लाते और फिर भीड़ के सामने यूँ ही असहाय हालत में छोड़ती नजर आ रही है। भीड़ को पीटते देख भी पुलिस की कोई कार्रवाई नजर नहीं आ रही है। अलबत्ता पुलिस वाला खुद ही बचता नजर आ रहा है। नहीं तो पुलिस की मौजूदगी में कम से कम संतों की इस तरह से बर्बर हत्या नहीं हुई होती।
.@OfficeofUT &his consort @RahulGandhi,need to see this video&answer two things👇
— Sanju Verma (@Sanju_Verma_) April 19, 2020
Despite #lockdown,how could a mob of over 110 manic people gather at #Palghar& #lynch 3 people,including 2 #Sadhus,to death?
More importantly,why were Police men present there,mute spectators?Why? pic.twitter.com/EvXYjNsdH7
दूसरा बच्चा चोर का आरोप भी मीडिया के एक धड़े द्वारा फैलाया नजर आ रहा है। रात के अँधेरे में लॉकडाउन के समय वहाँ सड़क पर इतनी बड़ी भीड़ अचानक इकट्ठी नहीं हो सकती थी। अगर इकट्ठी हुई भी तो पुलिस ने जिन्हें पूछताछ के लिए रोका और वो बाकायदा अपना परिचय बता रहे हैं तो पुलिस ने भीड़ को न रोककर चौकी से निकालकर संत को भीड़ के बीच क्यों ले गई?
बार बार वृद्ध साधु पुलिस का हाथ पकड़ते और बार बार पुलिस वाला हाथ झटक कर उन्हें भीड़ को सौंप देता। पुलिस स्पॉन्सर्ड लिंचिंग पर बॉलीवुड की कोई धरा, कोई धनुराग सन्नाटा तोड़ेगा? वैसे दबाव में एक निंदा ट्वीट और स्वत: कुछ मामलों पर बहते अश्रुधारा में फर्क है। https://t.co/XuDbfX8DeZ pic.twitter.com/dGkJUb6ZbD
— Anjana Om Kashyap (@anjanaomkashyap) April 19, 2020
जनसत्ता सहित मीडिया के कुछ रिपोर्टों में सवाल ये भी उठाया गया है कि लॉकडाउन के बावजूद ये तीनों लोग मुंबई से लगभग 120 किमी तक जाने में कैसे कामयाब रहे? पालघर जिले से इस गडचिंचले गाँव की दूरी 110 किलोमीटर बताया जा रहा है। साथ ही बचाव में ये भी जोड़ दिया जा रहा है कि इस पूरे इलाके में कुछ दिनों से बच्चा चोर गिरोह की अफवाह फैली हुई थी। अगर ऐसी कोई अफवाह थी जो बिना वहाँ गए मीडिया गिरोह के लोगों को साफ-साफ पता है। और इसी अफवाह की आड़ लेकर इस बहसी भीड़ के कृत्य को हल्का करने कि कोशिश में कहा जा रहा है कि बस लोगों ने इन्हें इसी बच्चा चोर गिरोह से संबंधित समझ लिया और बिना सोचे-समझे हमला करना शुरु कर दिया। बाद में मौके पर पहुँची पुलिस की टीम ने इन्हें बचाया लेकिन अस्पताल में तीनों की मौत हो गई।
यहाँ फिर ध्यान दीजिए कि यह नैरेटिव गढ़ी तो बड़ी चालाकी से गई है लेकिन लॉकडाउन क्या सिर्फ उन संतों के लिए था? खून की प्यासी इस आक्रामक और वहशी भीड़ के लिए नहीं। जिस सड़क के रास्ते जा रहे हैं ये लोग वहाँ पुलिस चौकी मौजूद है और महाराष्ट्र पुलिस के रोकने पर संत बाकायद अपनी पहचान और इस तरह जाने का कारण बताते हैं। पुलिस उन्हें सड़क के बीच पहले बैठाती है फिर वीडियो में दिख रहा है कि दोनों में से एक महंत चौकी से बाहर निकल रहे हैं और वहाँ भारी संख्या में लाठी-डंडों-हथियारों से लैश भीड़ पहले से मौजूद है। देर रात को इतनी भीड़ इस तरह आक्रामक होकर वहाँ कैसे इकठ्ठा हो गई और वो भी पुलिस चौकी होते हुए?
लॉकडाउन में संतों को क्यों जाना पड़ा
नागा सम्प्रदाय में जब कोई कोई संत-महात्मा का देहावसान होता है तो उनको समाधि सिर्फ उनके परम शिष्य देते आए हैं। नागा समाज में गुरु शिष्य सम्बन्ध बहुत करुणामय और प्रगाढ़ होता है। ये सब आपस में ममता के बंधन से जुड़े होते हैं। किसी का अहित नहीं सोचने वाले ये साधू जीवन भर साधना के साथ गरीब, दलित और पिछड़े लोगों की सेवा में रत रहते हैं। ये संन्यासी अपना सर्वस्व त्याग कर जाति और वर्ण के बंधनों से मुक्त होकर निराकार की आराधना करते हैं। इसलिए ये निर्लिप्त, अघोर, निरपेक्ष होते हैं और अपने इसी परंपरा का निर्वाह करने के लिए अपने पूजनीय गुरू के देहावसान की खबर सुनकर ये साधू अपने गुरु को समाधि देने किसी तरह गुजरात जा रहे थे। इस दौरान गुजरात और महाराष्ट्र की सीमा पर पालघर जिले के गडचिंचले गाँव से गुजरते हुए देर रात ये घटना घटी।
संत समाज के इन महात्माओं की गलती बस इतनी थी कि इन्होनें सोचा लॉकडाउन है तो जाना मुश्किल होगा और क्या पता पुलिस हमें जाने दे या न जाने दे हमारे गुरु की समाधि लगाने के लिए इसलिए भावनाओं और कर्तव्य पालन के वशीभूत हो बॉर्डर वाले गाँव के अंदर से जो रास्ता था, उसी रास्ते से जाने की सलाह बनाई गई मालूम पड़ती है लेकिन उनको क्या पता कि अंदर क्या होने वाला है और ये बड़ी और वीभत्स घटना सामने आई।
नागा साधु, इनका इतिहास और फेक मीडिया नैरेटिव
आज जिस जूना अखाड़े के संतों की हत्या पर मीडिया गिरोह लीपापोती पर उतारू है और उसे बच्चा चोरी जैसे नैरेटिव की आड़ में मॉबलिंचिंग को एक सामान्य घटना बनाकर पेश करते हुए उन हत्यारों का बचाव कर रही है और कइयों को अभी तक ये पता भी नहीं चला है कि किन तीन लोगों की हत्या हुई? वे कौन थे? बल्कि उसे और हलका करने के लिए यह लिखा जा रहा है कि आक्रोशित भीड़ ने बच्चा चोर समझ कर तीन लोगों को पीट दिया जिससे बाद में उनकी मृत्यु हो गई। इस नैरेटिव की आड़ में आज घटना घटे दो दिन होने के बाद भी हर छोटी बात पर बवाल काटने वाली वामपंथी लिबरल गैंग मौन है।
अपने गुरु भाई की समाधि के लिए भावुक होकर निकले जूना अखाड़ा के इन संतो ने कभी कल्पना में भी नहीं सोचा होगा कि कुम्भ के महीने में जब ये करोड़ों लोगों को बिना किसी भेदभाव के एक ही संगत में बैठा कर भोजन कराते हैं। उन साधुओं की हत्या उस इलाके में कर दी जाएगी जिस नासिक महाराष्ट्र के क्षेत्र में नागा साधुओं की संख्या बहुत ज़्यादा है और लोग उनसे परिचित भी हैं। इन नागा साधुओं ने अंग्रेजों और मुगलों के खिलाफ भी बड़ी-बड़ी लड़ाइयाँ लड़ी है। दशकों तक चलने वाले संन्यासी विद्रोह का भी इन्हीं नागा संन्यासियों ने नेतृत्व किया था। यहाँ तक कि 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की रूप रेखा भी इन्हीं नागा साधुओं के अखाड़े में बनी थी।
आज अचानक देश का यह हिस्सा जहाँ बहुतायत में नागा संन्यासी हैं। इन साधुओं के प्रति इतना असंवेदनशील हो गया हैl कि भेषभूसा, बातचीत, पूछताछ के बाद भी कोई उनके बारें में अफवाह फैला रहा है तो महाराष्ट्र पुलिस सच जानने के बाद भी उन्हें भीड़ के हवाले कर दे रही है और भीड़ 70 वर्षीय वृद्ध और संत के रूप में देखकर भी जूना अखाड़े के कल्पवृक्ष गिरी, उनके गुरु भाई और ड्राइवर को पीटकर मार डालती है। और फेक नैरेटिव गढ़ने वाले लोग हत्यारों और सरकार का बचाव करने लगते हैं क्योंकि वहाँ शासन में कॉन्ग्रेस हिस्सेदार है और शिवसेना अपने लिबरल भूमिका में है।
जानकारी के लिए बता दूँ कि मीडिया की गढ़ी थ्योरी और पुलिस की भूमिका दोनों इसलिए संदिग्ध मानी जा रही है क्योंकि ठीक इसी तरह 2008 में कंधमाल में माओवादियों ने स्वामी लक्ष्मणानंद सरस्वती सहित तीन और साधुओं की हत्या गोली मार कर दी थी। लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या इसलिए हुई थी क्योंकि स्वामी जी कंधमाल में निर्दोष आदिवासियों के धर्म परिवर्तन का विरोध कर रहे थेl आज यह हत्या उसी घटना की याद दिलाती है। और कहीं न कहीं इसकी आड़ में भी किसी साजिश या हत्यारों को बचाने की बू आ रही है।
संतों द्वारा अभी के हत्या के तरीकों और उस क्षेत्र में मुस्लिम और नक्सल गतिविधियों को देखते हुए सिर्फ चोरी की अफवाह को कारण मानने को तैयार नहीं है। कहा यह भी जा रहा है कि पिछले दिनों में गुजरात महाराष्ट्र के सीमा पर स्थित इन जिलों में माओवादी गतिविधि में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। और माओवादी नक्सली भी लूटपाट के इरादे से गलती से उधर आई किसी गाड़ी को रोककर, हत्या की घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। इस घटना के ठीक तीन दिन पहले भी उस इलाके में ऐसी ही एक घटना की खबर है। लेकिन लॉकडाउन की वजहों से या हमलावरों को बचाने के उद्देश्य से वह भी मीडिया में रिपोर्ट नहीं हुई। उस घटना का जिक्र हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट में बहुत ही संक्षेप में है।
इसके अलावा दो-तीन दिन पहले कई दूसरे जगहों से भी ये रिपोर्ट आई थी कि लॉकडाउन के कारण भोजन आदि जुटाने के लिए नक्सली ग्रामीणों को के साथ इक्का-दुक्का राहगीरों को परेशान और लूटपाट कर रहे हैं।
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष ने की निंदा और उठाई कठोर कार्रवाई की माँग
ऑपइंडिया ने सभी 13 अखाड़ों के परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी से बात की तो उन्होंने साफ़ शब्दों में इसका घटना में शामिल संभावितों की तरफ इशारा किया और कहा, “महाराष्ट्र में कोरोना के नाम पर धर्म विशेष के लोगों द्वारा जूना अखाड़े के दो संतों की हत्या किए जाने की अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद कड़े शब्दों में निंदा करता है।”
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि ने केंद्र और महाराष्ट्र सरकार से दोनों संतों की हत्या की जाँ और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की माँग की है। साथ ही माहौल को देखते हुए महंत नरेंद्र गिरी ने संत समाज के संन्यासियों से अपील भी की कि लॉकडाउन चल रहा है ऐसे में अगर कोई संत महात्मा ब्रह्मलीन होते हैं तो उस इलाके के ग्रामीण और आसपास के साधु संत ही उनकी समाधि में शामिल हों। उन्होंने कहा है कि बाहरी जिले से साधु-संतों को समाधि में जाने की फिलहाल लॉकडाउन तक कोई आवश्यकता नहीं है।
उनके इस अपील में भी इस बात पर जोर है कि महाराष्ट्र के पालघर जिले के दहानु तहसील में जूना अखाड़े के दो संत महात्माओं की पुलिस की मौजूदगी में लाठी डंडों से पीट-पीटकर धर्म विशेष के लोगों ने हत्या कर दी। इस घटना के बाद से साधु संतों में काफी नाराजगी है। साधु संतों की सर्वोच्च संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने दोषियों के खिलाफ जाँच के बाद सख्त कार्रवाई की माँग की है। महंत नरेंद्र गिरी ने आरोप लगाया है कि कोरोना के बहाने धर्म विशेष के लोग साधु-संतों से बदला ले रहे हैं।
लॉकडाउन के खत्म होने के बाद बड़ी संख्या में संत महात्मा महाराष्ट्र सरकार का घेराव करेंगे और इस मामले में कार्रवाई के लिए दबाव भी बनाएँगे। महंत नरेंद्र गिरी ने महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे से दोषी पुलिस कर्मियों के खिलाफ भी कार्रवाई की माँग की है। जो वहाँ मौजूद थे लेकिन संतों को बचाने का उन्होंने कोई प्रयास नहीं किया।
संत समुदाय ने की कार्रवाई की माँग
हालाँकि जिस तरह से भीड़ द्वारा हत्या की गई इसे लेकर संत समाज आक्रोशित है। ऑपइंडिया ने अखाड़ों के कई संतो से बात की तो उन्होंने अंदेशा जताया कि यह कृत्य सामान्य ग्रामीणों का नहीं है बल्कि इसमें नक्सल और मुस्लिम पक्ष की मौजूदगी का दावा किया जा रहा है। गंगा सेना के संत श्री आनंद गिरी ने तो साफ कहा कि संत समाज के दो संतों को बेरहमी से मारकर कहीं न कहीं तबलीगी जमात का बदला लिया गया है। उनका दावा है कि उन इलाकों में मुस्लिम समुदाय के लोगों की भी उपस्थिति है।
अतः इस आशंका से भी इंकार नहीं किया जा सकता और हम महाराष्ट्र सरकार से इसकी सघन जाँच और दोषियों पर कार्रवाई की माँग करते हैं नहीं तो हम संत समाज के लोग लॉकडाउन ख़त्म होने के बाद सड़कों पर आएँगे ताकि प्रशासन इस तरह की हत्याओं को खुली छूट देने से रोक लगाए। उनका का भी आक्रोश वहाँ पुलिस के मौजूद होने और कुछ न करने को लेकर था। उन्होंने तो यहाँ तक कहा कि जो शिवसेना हिन्दुओं की हिमायती बनती रही वही आज कॉन्ग्रेस के साथ मिलकर संतों की भीड़ द्वारा हत्या को खुली छूट दे रही है।
वहीं स्वामी अविनाश जंगम (प्रयागराज) ने कहा, “जूना अखाड़े के जिन निर्दोष साधुओं की हत्या हुई है। वो गुजरात-महारष्ट्र सीमा पर आदिवासी बहुल इलाके में हुई है। इन लोगों ने अक्षम्य अपराध किया है। ऐसा लगता है कि ग्रामीणों ने किसी बहकावे में आकर हत्या कर दी है। मेरा सरकार से अनुरोध है कि इन अपराधियों को आजीवन कारावास हो और सरकार को बिना देर किए न्याय करना चाहिए। आज सम्पूर्ण देश का संत समाज इस घटना से हतप्रभ है औऱ लॉकडाउन के बाद इसपर कोई निर्णायक कदम उठाया जाएगा।”
प्रशासन का बयान
संत समाज के आक्रोश को देखते हुए वहीं महाराष्ट्र प्रशासन की तरफ से जारी बयान में डीएम कैलास शिंदे कहते हैं कि पुलिस को जैसे ही घटना की जानकारी मिली पुलिस वहाँ पहुँची लेकिन हमलावर ग्रामीणों की संख्या इतनी अधिक थी कि हम पीड़ितों को बचा नहीं सके। पुलिस अधिकारियों का दावा है कि हमलावरों ने पुलिस वाहनों को भी नुकसान पहुँचाया और पुलिस मौके पर पहुँचकर उन्हें अस्पताल ले गई थी लेकिन डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया गया था। लगभग 110 ग्रामीणों को पूछताछ के लिए पुलिस थानों में लाया गया है। और आगे की जाँच चल रही है।
सोशल मीडिया पर आक्रोश
संतों की हत्या हुए आज तीसरा दिन है और जिस तरह से मीडिया गिरोह इसकी लीपापोती में लगा है। बल्कि इस पूरे घटना को ही हवा में उड़ा देने के लिए या तो पूरी तरह मौन है या फेक नैरेटिव की आड़ में दोषियों और महाराष्ट्र सरकार पर कोई सवाल नहीं उठा रहा है। आपको याद होगा जब तबरेज़ अंसारी की चोरी करने के कारण मॉब लिंचिंग हुई थी तब मीडिया ने ना सिर्फ तबरेज को निर्दोष साबित किया बल्कि इस हत्या के सारे आरोप हिंदुओं पर मढ़ दिए।
#Palghar में साधुओं की #moblynching पर केजरीवाल ने कोई Tweet किया ?ममता दीदी ने कुछ कहा ?अखिलेश/राहुल/प्रियंका/ओवैशि ने कुछ बोला ? रविश/राजदीप/अरफ़ा/राणा अयूब/बरखा/जावेद साहब/Wire/BBC ने कुछ लिखा ? सबकी ज़ुबान के लकवा मार गया है,पेन की स्याही सूख गई !
— Major Surendra Poonia (@MajorPoonia) April 19, 2020
दोस्तों,आप ही आवाज़ उठाओ👏 pic.twitter.com/26eI4IUWn7
साथ वामपंथी-लिबरल गिरोह पूरी दुनियाँ मे हिंदुओं और देश का नाम खराब करने में पूरी तरह सक्रिय हो गई थी तुरंत ही बिना ये जाने कि मामला क्या है? क्योंकि वहाँ जिसे पीटा गया था वह एक मुस्लिम था। यही इस गिरोह के नैरेटिव के लिए पर्याप्त है वह क्या कर रहा था, चोर था आदि, इसे मीडिया ने ख़ारिज कर दिया था लेकिन अब जब दो निर्दोष साधुओं की हत्या हुई जिसमें कहा जा रहा है कि लूट-पाट का विरोध करना भी एक कारण है तो उल्टा खबरों में यह चलाया गया कि चोरी की शक में हत्या हुई है। और ना जाने क्या क्या आरोप लगाए जा रहे हैं ताकि लोगों को न सिर्फ सच से दूर रखा जाए बल्कि आरोपितों को बचाने में सक्रीय है यहाँ यह गिरोह।
महाराष्ट्र के पालघर में पुलिस की उपस्थिति में जूना अखाड़ा के 2 संत जिनका नाम कल्पवृक्ष गिरि , सुशील गिरि सहित उनके ड्राइवर की लोगों ने घेरकर हत्या कर दी !
— yogi devnath (@YogiDevnathji) April 19, 2020
लगता है महाराष्ट्र सरकार ने गुड़ों को छूट देदी है राज्य में से साधु संतो को ख़त्म करो ये है @OfficeofUT का हिन्दुत्व pic.twitter.com/JnrDHLnwvM
सोशल मीडिया पर संतों के शवों को बेकदरी से डम्पर में डालकर ले जाने पर भी आक्रोश व्यक्त किया जा रहा है। सोशल मीडिया पर जारी तस्वीरों में देखा जा सकता है कि किस तरह से बिना कफ़न या किसी कपड़े के लावरिशों की तरह यूँ ही उनका शरीर लोड कर पोस्टमॉर्टम के लिए ले जाया गया।