बिहार के पुलिस महानिदेशक (DGP) गुप्तेश्वर पांडेय ने रविवार (17 मई 2020) को फेसबुक के जरिए संवाद किया। इस दौरान उन्होंने गोपालगंज के रोहित जायसवाल मामले का भी जिक्र किया है। इस मामले में अब तक हुई कार्रवाई की जानकारी देते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा कि इसमें कोई सांप्रदायिक एंगल नहीं है।
कटेया थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले बेलहीडीह गाँव निवारी रोहित का शव 29 मार्च को नदी से मिला था। डीजीपी ने बताया कि रोहित 28 मार्च को जिन बच्चों के साथ गया था उसमें 1 हिंदू और 3 अल्पसंख्यक समुदाय के थे। चारों नाबालिग हैं और इन सबसे उन्होंने खुद बातचीत की। उन्होंने बताया कि ये सभी साथ में हँसते-खेलते थे। उन्होंने कहा कि परिवार ने भी स्वीकार किया है कि गाँव में किसी प्रकार का हिन्दू-मुस्लिम विवाद नहीं है।
डीजीपी (DGP) ने बताया कि ग्रामीणों ने उन्हें जानकारी दी कि पिछले 15 सालों से गाँव में कोई सांप्रदायिक हिंसा या तनाव की घटना नहीं हुई है। उन्होंने कहा कि घटना वाले दिन रोहित अपने 4 दोस्तों के साथ खनुआ नदी के पास खेलने गया था। यही नदी बिहार और यूपी की सीमा का निर्धारण करती है। डीजीपी ने बताया कि उन्होंने ख़ुद नदी में उतर जायजा लिया और पाया कि उसकी गहराई कम से कम 12 फ़ीट थी ही। मार्च में पानी का स्तर ज्यादा था।
डीजीपी (DGP) पांडेय ने बताया कि अभियोजन पक्ष के सभी लोगों का बयान उन्होंने नदी के पास ही लिया। डीजीपी ने रोहित के परिवार के हवाले से यह भी कहा कि वह दोपहर 3 बजे गया था। डीजीपी ने कहा कि वहाँ गाय-भैंस चराने वालों ने देखा कि पाँचों बच्चे नहाने गए थे और उन सबने अपना बयान भी दर्ज करवाया है। बाकी चार उस दिन लौट गए, जबकि रोहित नहीं आया। उसमें से एक लड़के से ग्रामीणों ने सख्ती से पूछताछ की तो उसने बताया कि वह नदी में डूब गया। डीजीपी (DGP) ने बताया:
“जिसके 15 साल के बेटे की लाश उसके सामने निकली हो, उस माँ-बाप की पीड़ा को आप समझ सकते हैं। वो अच्छा लड़का था। परिवार गरीब है, जिसके पास एक दुकान के अलावा आय का कोई साधन नहीं था। वो लड़का वहाँ डूब गया या उसके साथियों ने उसे डूबा दिया, इस पर अभी कोई जजमेंट नहीं दिया जा सकता, क्योंकि ये अनुसन्धान का विषय है। इसके अगले दिन की अख़बारों में आया कि परिजनों ने रोहित की हत्या की आशंका जताई है। पुलिस ने वैसे ही एफआईआर किया, जैसा परिवार ने कहा। कोई अगर प्राथमिकी दर्ज कराने जाता है तो उसके बयान में पुलिस छेड़छाड़ नहीं कर सकती।”
डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय ने बताया कि पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए 6 में से 5 आरोपितों को गिरफ़्तार कर जेल और ‘किशोर न्याय परिषद’ में भेजा। बाद में उन्हें जमानत दे दी गई। इससे परिवार को ऐसा लगा कि उनके साथ न्याय नहीं हुआ और वे हताश हो गए। इसके बाद वे पुलिस की गाड़ी के आगे लोट गए और कम्युनिकेशन गैप बनने लगा। डीजीपी ने कहा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी सब कुछ विस्तार से लिखा है।
उन्होंने कहा कि डॉक्टर ने भी बयान दिया है कि रोहित की मौत डूबने से हुई है। डॉक्टर ने ये भी बताया कि डूबने के क्रम में दबाव के कारण आँखों या नाक से ख़ून आना संभव है, लेकिन रोहित के शरीर पर जख्म के कोई निशान नहीं थे। डीजीपी ने कहा कि जब तक अनुसन्धान पूरा नहीं होता, पुलिस मानकर चल रही है कि ये डूबने और हत्या का मामला भी हो सकता है। हालाँकि अब तक पुलिस ने ऐसा कुछ नहीं पाया है, जिससे लगे कि हत्या हुई या हत्या का कोई मोटिव रहा हो।
गुप्तेश्वर पांडेय ने कहा कि पुलिस साक्ष्य जुटाने में लगी हुई है। उन्होंने कहा कि घटना के एक महीने बाद किसी ने किसी धार्मिक स्थल पर बलि की बात कह दी। इसके बाद रोहित के पिता ने अलग-अलग लोगों को अलग-अलग बयान दिया। बकौल डीजीपी, जहाँ रोहित के पिता राजेश जायसवाल ने किसी धार्मिक स्थल में बलि की बात कही, उसकी माँ और नाना ने पानी छिड़के जाने की बात कही।
डीजीपी ने कहा कि बलि वाली बात चली लेकिन ये जानना ज़रूरी है कि गाँव में न तो कोई मस्जिद है और न ही कोई नमाज पढ़ाने वाले मौलवी। उन्होंने बताया कि एक मस्जिद निर्माणाधीन था, जिसकी केवल नींव पड़ी थी और उसका निर्माण किसी कारण रुक गया था। उन्होंने कहा कि ग्रामीणों, अधिकतर हिन्दुओं ने बताया कि इस घटना में कोई सांप्रदायिक एंगल नहीं है और न ही गाँव में कोई सांप्रदायिक तनाव है।
डीजीपी ने कहा कि बहुत लोग सुनी-सुनाई बातों पर विश्वास कर लेते हैं, इसीलिए उनकी नैतिक जिम्मेदारी है कि वो बिहार की 12 करोड़ जनता के समक्ष बताएँ कि इसमें कोई सांप्रदायिक कोण नहीं है। उन्होंने कहा कि किसी भी दोषी को नहीं छोड़ा जाएगा। साथ ही उन्होंने कहा कि उनके सामने रोहित के परिजनों में से किसी ने भी ‘धार्मिक स्थल में बलि’ और अल्पसंख्यकों के डर से भागने की बात नहीं कही। उन्होंने कहा कि परिवार ने थानेदार के डर से भागने की बात कही।
कटेया थानाध्यक्ष अश्विनी तिवारी की चर्चा करते हुए DGP पांडेय ने कहा कि किसी भी परिस्थिति में या कितने भी बड़े तनाव की स्थिति में, किसी भी थानेदार के पास ये अधिकार नहीं है कि वह जनता के साथ गाली-गलौज करे। उन्होंने कहा कि ये पुलिस विभाग के लिए शर्म की बात है कि उसने पीड़ित माँ-बाप के साथ ऐसा व्यवहार किया। डीजीपी ने बताया कि उन्होंने सबसे पहले थानेदार को सस्पेंड किया। उन्होंने जनता से अफवाह न फैलाने की बात कही।