Monday, May 6, 2024
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नवंबर में दिखेगा कोरोना का सबसे भीषण रूप: अब ICMR के हवाले से मीडिया ने किया डर का धंधा

'द हिन्दू' से लेकर 'हफिंगटन पोस्ट', 'ट्रिब्यून इंडिया', 'लाइव मिंट' और 'हिंदुस्तान टाइम्स' ने इस ख़बर को चलाया। वहीं दूसरी तरफ 'आजतक', 'इंडिया डॉट कॉम' और 'नवभारत टाइम्स' में भी ये ख़बर दिखी। ये ख़बर झूठी है और पूरी तरह ग़लत है।

कोरोना वायरस के नाम पर डर फैलाने का व्यापर जोरों पर है। सरकारी संस्था के उस अध्ययन निष्कर्षों को मीडिया फैला रहा है, जो कभी किया ही नहीं गया। कुछ ऐसा ही भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसन्धान परिषद (ICMR) के साथ किया गया है।

मीडिया में ICMR के अध्ययन के नाम से स्टोरी चलाई गई कि नवम्बर में कोरोना सबसे भीषण रूप ले लेगा। लेकिन, ICMR ने ही इस ख़बर को नकार दिया

‘आजतक’ जैसे बड़े मीडिया संस्थानों ने भी चलाई ये ख़बर

दरअसल, प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया की ख़बर को कई अख़बारों और मीडिया संस्थानों ने फैलाया, जिसमें कहा गया कि कोरोना वायरस संक्रमण का पीक टाइम नवम्बर में आएगा। इस ख़बर में कहा गया कि नवम्बर में वेंटिलेटर्स और आईसीयू बेड्स की कमी से देश को जूझना पड़ सकता है, क्योंकि ICMR ने एक अध्ययन में पाया है कि 8 सप्ताह तक के लिए लॉकडाउन के कारण भारत में कोरोना का पीक टाइम कुछ महीने आगे बढ़ गया है।

‘द हिन्दू’ ने PTI के हवाले से चलाई फेक न्यूज़

ख़बर में आगे कहा गया कि कोरोना का पीक टाइम पहले 34 दिन बाद आने वाला था, लेकिन लॉकडाउन के बाद अब ये 76 दिन बाद आएगा। साथ ही आँकड़े पेश करते हुए बताया गया कि लॉकडाउन के कारण संक्रमितों की संख्या में 69% से लेकर 97% तक की कमी आई है, जिससे इंस्फ्रास्ट्रक्टर मजबूत करने में समय मिल गया है। जब ICMR ने ऐसी कोई स्टडी की ही नहीं तो PTI के पास ये सब आँकड़े कहाँ से आ गए, इस बारे में उसने कुछ स्पष्टीकरण नहीं दिया है।

इन्हीं आँकड़ों की कालाबाजारी के कारण चीजें एकदम सही लगने लगती हैं। ICMR ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से इस ख़बर को ही भ्रामक करार दिया। संस्था ने कहा कि न तो ICMR ने ऐसा कोई अध्ययन किया है और न ही ये संस्था के आधिकारिक बयानों से जरा भी मेल खाता है। इसी ख़बर में दिए गए और आँकड़े देखिए, जिसे ICMR के हवाले से ऐसे पेश किया गया जैसे वो सच ही हों:

“देश में बड़ी संख्या में आइसोलेशन बेड्स की ज़रूरत पड़ेगी। अगले 5.4 महीनों के लिए बेड्स की कमी रहेगी। 4.6 महीनों के लिए आईसीयू बेड्स की कमी रहने वाली है। वहीं 3.9 महीनों के लिए वेंटिलेटर्स की कमी होगी। लेकिन, अगर लॉकडाउन नहीं किया जाता तो शायद इन सभी की 83% और ज्यादा कमी हो जाती। हालाँकि, इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार के कारण स्थिति सुधरी है। अगर हेल्थकेयर कवरेज को 80% बढ़ाया जाता है तो फिर स्थिति से निपटने में कामयाबी हासिल होगी।”

वहीं प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) ने भी इस ख़बर का फैक्ट-चेक किया। उसने भी ICMR के बयान की पुष्टि करते हुए कहा कि ये अध्ययन भ्रामक है और ICMR ने नहीं किया है। ‘द हिन्दू’ से लेकर ‘हफिंगटन पोस्ट’, ‘ट्रिब्यून इंडिया’, ‘लाइव मिंट’ और ‘हिंदुस्तान टाइम्स’ ने इस ख़बर को चलाया। वहीं दूसरी तरफ ‘आजतक’, ‘इंडिया डॉट कॉम’ और ‘नवभारत टाइम्स’ में भी ये ख़बर दिखी। ये ख़बर झूठी है और पूरी तरह ग़लत है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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