Monday, May 6, 2024
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आदिवासियों को देश के खिलाफ भड़का रहे वामपंथी, पालघर में साधुओं की हत्या के पीछे हिन्दूघृणा: फैक्ट-फाइंडिंग कमिटी

आदिवासियों को हिन्दू समाज से अलग होने का एहसास दिलाते हुए उन्हें हिन्दू प्रथाओं का विरोध करने के लिए भड़का रहे वामपंथी। कोशिश की जा रही है कि उन्हें संवैधानिक व्यवस्था का विरोधी बना कर नक्सल आंदोलन से जोड़ा जाए। 150 पेज की जाँच रिपोर्ट में बताया गया है कि...

महाराष्ट्र के पालघर में अप्रैल 2020 में पुलिस के सामने ही एक बड़ी भीड़ ने दो साधुओं और एक ड्राइवर की पीट-पीट कर हत्या कर दी थी। इस मामले की जाँच के लिए एक स्वतंत्र फैक्ट-फाइंडिंग कमिटी का गठन किया गया था। कमिटी ने साधुओं की मॉब लिंचिंग को लेकर चौंकाने वाला दावा करते हुए कहा है कि इसके पीछे गहरी साजिश थी। साथ ही इस घटना के तार नक्सलियों से भी जुड़ रहे हैं।

बता दें कि उक्त कमिटी में वकील, रिटायर्ड जज और पुलिस अधिकारियों को शामिल किया गया था। अब कमिटी ने कहा है कि पालघर में साधुओं की हत्या के मामले की जाँच सीबीआई और एनआईए करे। कमिटी ने यह भी पाया है कि वहाँ उपस्थित पुलिसकर्मी अगर चाहते तो इस हत्याकांड को रोक सकते थे लेकिन उन्होंने हिंसा की साजिश में शामिल होने का रास्ता चुना। शनिवार (अगस्त 29, 2020) को एक ऑनलाइन कार्यक्रम के जरिए कमिटी ने अपनी रिपोर्ट के कुछ अंश पेश किए।

याद हो कि पालघर में अप्रैल 20, 2020 को 70 वर्षीय कल्पवृक्ष गिरी और 35 वर्षीय सुशील गिरी की भीड़ द्वारा हत्या कर दी गई थी। साथ ही उनके ड्राइवर नीलेश तेलगड़े को भी मार डाला गया था। ये सभी अपने गुरु महंत श्रीरामजी के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए जा रहे थे, तभी उन पर हमला किया गया। गढ़चिंचले गाँव में उनकी गाड़ी को भी उपद्रवियों ने पलट दिया था और देखते ही देखते बड़ी भीड़ जमा हो गई थी।

इस घटना के बाद विवेक विचार मंच ने सेवानिवृत्त न्यायाधीश अंबादास जोशी, संपादक किरण शेलार, पालघर जिले के ऐक्टिविस्ट संतोष जनाठे, रिटायर्ड सहायक पुलिस आयुक्त लक्ष्मण खारपड़े व कुछ वकील और सामाजिक कार्यकर्ताओं की फैक्ट फाइंडिंग टीम बनाई थी। इसने पाया है कि झारखण्ड में पत्थलगड़ी की तर्ज पर ही पालघर में भी आंदोलन चल रहा है। आदिवासियों को वामपंथी भड़का रहे हैं कि वो क़ानून, सरकार और संविधान का सम्मान न करें।

आदिवासियों को वामपंथी कार्यकर्ताओं द्वारा भड़काया जा रहा है कि उनके पास अपना संविधान है, जो 100 साल पुराना है और वो भारतीय संविधान के दायरे में नहीं आते हैं। कमिटी ने कुछ वामपंथी नेताओं के बयान और वीडियो जारी कर के बताया है कि किस तरह आदिवासियों को भारत का क़ानून न मानने के लिए भड़काया जा रहा है। साथ ही इन सबके पीछे हिन्दूघृणा भी है, जिसने पालघर में साधुओं की जान ले ली।

‘इंडिया टीवी’ की खबर के अनुसार, फैक्ट-फाइंडिंग कमिटी ने जानकारी दी है कि वामपंथियों का पूरा जोर इस बात पर है कि आदिवासियों को हिन्दू समाज से अलग होने का एहसास दिलाते हुए उन्हें हिन्दू प्रथाओं का विरोध करने के लिए भड़काया जाए। कोशिश की जा रही है कि उन्हें संवैधानिक व्यवस्था का विरोधी बना कर नक्सल आंदोलन से जोड़ा जाए। 150 पेज की जाँच रिपोर्ट में बताया गया है कि किस तरह स्थानीय लोगों के दिमाग में साधुओं और सरकार के प्रति नफरत पैदा की जा रही है।

साथ ही उस क्षेत्र में देश विरोधी गतिविधियों को भी जोर-शोर से चलाए जाने की बात पता चली है। काश्तकारी संगठन, आदिवासी एकता परिषद और भूमि सेना सहित कई संगठनों को इन साजिशों का कर्ताधर्ता बताते हुए कहा गया है कि गाँव में पत्थलगड़ी आंदोलन की तरह संकल्प पारित किया गया और इसमें आदिवासी एकता परिषद का सदस्य भी शामिल हुआ। साथ ही बुलेट ट्रेन जैसी परियोजनाओं का विरोध करने को भी कहा जा रहा है।

हाल ही में जूना अखाड़ा के पीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी ने साधुओं की हत्या मामले में ये माँग उठाई थी। उनका कहना था कि पालघर में साधुओं की हत्या को लेकर कोई कार्रवाई नहीं की गई है। इस मामले में अभी तक न्याय नहीं हो सका है, जिसे लेकर लोगों में गुस्सा है। साधुओं की माँग है कि सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले की तरह ही इस मामले की जाँच भी CBI को करनी चाहिए।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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