Saturday, November 23, 2024
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रामलीला में सिखों का उपद्रव, हिंदू देवताओं पर अपमानजनक टिप्पणी: क्या पंजाब में हिंदू-सिखों को बाँटने की कोशिश कर रहे खालिस्तानी

हालिया घटनाओं पर गौर करें तो हमारे सामने कई ऐसे उदाहरण हैं जो पंजाब के साथ-साथ विदेशों में भी खालिस्तान समर्थक संगठनों के पैर पसारने की तरफ इशारा करते हैं।

पंजाबी अखबार में हिंदू देवी के लिए आपत्तिजनक शब्द का इस्तेमाल करने के बाद कुछ सिखों ने शनिवार (अक्टूबर 9, 2021) की रात पंजाब के रूपनगर में सनातन धर्म रामलीला समिति द्वारा आयोजित रामलीला में बाधा पहुँचाई। दैनिक जागरण की रिपोर्ट के अनुसार, पंडाल में रामलीला चल रही थी, तभी कुछ सिख लाठी-डंडों के साथ पहुँचे और हिंदू देवताओं, आयोजकों को गाली देनी शुरू कर दी। खालिस्तानी मानसिकता वाले अराजक तत्वों ने जमकर उपद्रव किया।

मुख्य निदेशक राकेश सहगल और समिति के अध्यक्ष मनोहर लाल कपूर ने दैनिक जागरण को बताया कि समिति के सदस्यों ने सिख समूह को शांत करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने एक न सुनी और उपद्रव जारी रखा। सिख लोगों ने कथित तौर पर समिति पर ‘बीजेपी समर्थक’ होने का आरोप लगाया और भगवान राम सहित हिंदू देवताओं के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करते रहे। इससे वहाँ मौजूद भक्तों की भावना को ठेस पहुुँची। इन अराजक तत्वों की धमकियों और उपद्रव के चलते कई घंटों तक रामलीला रोकनी पड़ी। आयोजकों का कहना है कि शिकायतों के बावजूद पुलिस ने इन ‘गुंडों’ के खिलाफ कोई सख्त कदम नहीं उठाया। आयोजकों ने पुलिस की कार्रवाई को निराशाजनक बताया।

उल्लेखनीय है कि कुछ दिन पहले अकाली दल के प्रधान सुखबीर सिंह बादल ने माँ चिंतपूर्णी के दरबार में माथा टेका था। इसे लेकर ‘रोजाना पहरेदार’ के संपादक ने लेख में विवादित टिप्पणी की थी। इस खबर का शीर्षक था, “अपने पेओ नूं छड सुखबीर पहुँचेआ बेगानी माँ के दरबार।” माता चिंतपूर्णी के लिए ‘बेगानी माँ’ शब्द का इस्तेमाल करने पर हिंदू संगठनों ने रोष जताया। संपादक को गिरफ्तार न करने को लेकर प्रदर्शन किया और जगराओं को बंद रखा।

खालिस्तान समर्थकों के पैर पसारने से बढ़ रहा तनाव?

हालिया घटनाओं पर गौर करें तो हमारे सामने कई ऐसे उदाहरण हैं जो पंजाब के साथ-साथ विदेशों में भी खालिस्तान समर्थक संगठनों के पैर पसारने की तरफ इशारा करते हैं। आम आदमी पार्टी (AAP) को 2017 के पंजाब चुनावों के दौरान और उससे पहले भी अपने राजनीतिक लाभ के लिए खालिस्तानी तत्वों को भड़काने की कोशिश करते देखा गया था।

वहीं कई खालिस्तान समर्थक संगठनों ने 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले AAP के लिए अपना समर्थन जताया था। AAP के प्रमुख नेता और लोकसभा उम्मीदवार जरनैल सिंह को लंदन में खालिस्तान समर्थक रैलियों को संबोधित करते देखा गया था।

हाल की बात करें तो आम आदमी पार्टी के नेता और पंजाब विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष सुखपाल सिंह खैरा ने 2018 में खालिस्तान के समर्थन में ट्वीट किया था। उन्होंने पंजाब में ‘खालिस्तान’ बनाए जाने को लेकर साल 2020 में जनमत संग्रह कराने की बात कही थी। खैरा ने कहा था कि वे साल 2020 में होने वाले जनमत संग्रह के मतदाता नहीं हैं, लेकिन उन्हें यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि बँटवारे के बाद सिखों के साथ भेदभाव, उत्पीड़न, दरबार साहिब पर हमले और साल 1984 में हुए हत्याकांड की वजह से यह सब कुछ हुआ है।

इस बयान के बाद उनकी चौतरफा आलोचना होने लगी। सुखपाल खैरा की कड़ी आलोचना करते हुए AAP संयोजक व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर भी निशाना साधा गया और खैरा को पार्टी से बर्खास्त करने की माँग की। आम आदमी पार्टी, पंजाब ने रेफरेंडम-2020 पर खैरा के बयानों को उनकी निजी राय बताते हुए पल्ला झाड़ लिया।

हाल के ‘किसान विरोध’ में AAP ने ग्रेटा टूलकिट में दिए गए निर्देशों का पालन किया था। खालिस्तान समर्थक तत्वों का उपद्रव उस समय चरम पर था, जब गणतंत्र दिवस 2021 पर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का अनादर किया गया।

जैसे-जैसे ‘किसान विरोध’ के इर्द-गिर्द की राजनीति मुखर होती जा रही है, खालिस्तानी समर्थकों की संख्या में बढ़ोतरी देखी जा रही है। भारत और विदेशों में कई खालिस्तानी समर्थक समूह ‘किसान विरोध’ में शामिल रहे हैं और जैसे-जैसे पंजाब चुनाव नजदीक आ रहे हैं, खालिस्तानी तत्वों का खुले तौर पर हिंदू विरोधी पक्ष भी स्पष्ट होता जा रहा है। सत्तारूढ़ भाजपा और मोदी सरकार का विरोध करने के लिए पाकिस्तान समर्थित खालिस्तानी तत्व अब हिंदुओं के खिलाफ नफरत फैलाने का काम करते दिख रहे हैं।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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