प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज K-9 वज्र की सवारी की। इस सेल्फ प्रोपेल्ड हॉवित्ज़र को लार्सेन एंड टर्बो नाम की कंपनी ने तैयार किया है। नवंबर 2018 को देश की रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने भारतीय सेना के तोपखाने में K-9 वज्र को शामिल करने की घोषणा की थी।
रक्षामंत्री ने इस कार्यक्रम में कहा था कि 2020 तक कुल 100 K-9 वज्र को सेना अपने उपयोग में ले सकेगी। ऐसे में यह जानना ज़रूरी हो जाता है कि K-9 वज्र भारतीय सेना के लिए किस तरह से मददगार साबित होगा। हमारे आर्मी के पास पहले से मौजूद हथियारों से K-9 वज्र किस तरह से अलग और खास है।
#WATCH Prime Minister Narendra Modi rides a K-9 Vajra Self Propelled Howitzer built by Larsen & Toubro pic.twitter.com/ww9B90OaiD
— ANI (@ANI) January 19, 2019
K-9 वज्र इन वजहों से खास है
K-9 वज्र 155 एमएम की गन्स हैं। इस गन के बैरल बोर की साइज 155 एमएम होने की वजह से सेना इसके ज़रिए अपने लक्ष्य पर दमदार तरह से हमला कर सकती है। K-9 वज्र की खासियत है कि यह जमीन व रेगिस्तान दोनों ही जगह से दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के लिए बनाया गया है।
पाकिस्तान से सटे बाड़मेर व अन्य रेगिस्तानी बार्डर वाले इलाके के लिहाज से यह बेहद उपयोगी है। K-9 वज्र के ज़रिए 28 से 38 किलोमीटर के रेंज में वार किया जा सकता है। K-9 वज्र को सेना के जवान तीन तरह से यूज कर सकेंगे। बर्स्ट मोड में 30 सेकेंड के अंदर तीन राउंड फ़ायर होता है, जबकि इन्टेंस मोड में लगातार फायरिंग की जा सकती है। जबकि सस्टेन्ड में एक घंटे के अंदर 60 राउंड फ़ायरिंग की जा सकती है।
इस कंपनी को मिला जिम्मा
K-9 वज्र को साउथ कोरिया की हथियार बनाने वाली कंपनी ‘हानवा टेकविन’ की मदद से अपने ही देश में बनाया जा रहा है। भारत में K-9 वज्र को बनाने में साउथ कोरियाई कंपनी की पार्टनर ‘लार्सेन एंड टर्बो’ कंपनी होगी। K-9 वज्र को बनाने के लिए सरकार ने इन कंपनियों के साथ ₹4300 करोड़ की डील की है।