Saturday, May 4, 2024
Homeसोशल ट्रेंडशिंजो आबे की मृत्यु पर भारत में राष्ट्रीय शोक: गोली मारने का जश्न मना...

शिंजो आबे की मृत्यु पर भारत में राष्ट्रीय शोक: गोली मारने का जश्न मना रहे हैं चीनी, कॉन्ग्रेसी ने भी दिखाई मोदी घृणा

शिंजो अबे को गोली लगाने और बाद में मौत के बाद केवल चीनी ही नहीं बल्कि दुनिया भर के कम्युनिस्टों की ओर से कई ट्वीट किए गए, जिसमें आबे की निंदा की गई और उनकी मौत की कामना करते हुए खुशियाँ मनाई जाने लगीं।

जापान के नारा शहर में शुक्रवार (8 जुलाई, 2022) को जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे (Shinzo Abe) को पीछे से गोली मार दी गई थी। आबे पर उस समय हमला किया गया जब वह पश्चिमी जापान में एक चुनाव प्रचार के दौरान भाषण दे रहे थे। हालाँकि, उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया जहाँ उन्हें कुछ देर बाद मृत घोषित कर दिया गया। हालाँकि, हमलावर पकड़ा गया है।

इस खबर से जहाँ एक तरफ पूरी दुनिया सदमे में है, वहीं चीनी लोगों के साथ ही हमारे देश के वामपंथी और कॉन्ग्रेसी भी जश्न मना रहे हैं। कई चीनी सोशल मीडिया यूजर्स शिंजो पर हुए हमले को लेकर शर्मनाक कमेंट कर रहे हैं। हमले के बाद से ही चीनी वीबो, वीचैट और यूकू सहित सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर शिंजो आबे की मौत की कामना करने लगे थे। यहाँ तक कि यूजर्स शिंजो की गोली लगाने से गिरने और उसके बाद के हालात का भी मजाक उड़ाते दिखे

साभार-आजतक

शिंजो अबे को गोली लगाने और बाद में मौत के बाद केवल चीनी ही नहीं बल्कि दुनिया भर के कम्युनिस्टों की ओर से कई ट्वीट किए गए, जिसमें आबे की निंदा की गई और उनकी मौत की कामना करते हुए खुशियाँ मनाई जाने लगीं।

वहीं भारतीय वामपंथी गिरोह और कॉन्ग्रेसी उनके दक्षिण पंथी होने और प्रधानमंत्री मोदी से गहरी दोस्ती की वजह से नफ़रत में कुढ़ते हुए जश्न मना रहे हैं। जानकारी के लिए बता दें कि अपने 8 साल के कार्यकाल में शिंजो आबे 4 बार भारत की यात्रा पर आए थे। वहीं उनकी मौत के बाद भारत में एक दिन के राष्ट्रीय शोक की भी घोषणा की गई है। यहाँ तक कि कुछ लोग मजाक बनाते हुए PM मोदी की मौत की कामना से भी नहीं चुके।

चीनी क्यों करते हैं शिंजो आबे से नफरत

चीनियों के शिंजो आबे से नफरत करने का कारण लगभग 90 साल पुराना है। हालाँकि, हाल के कारण भी हैं, लेकिन चीनी प्रतिक्रिया को समझने के लिए, हमें जापान के पूर्व प्रधान मंत्री नोबुसुके किशी (Nobusuke Kishi) के बारे में संक्षेप में जानना होगा।

यह सब 1931 में चीन में मंचूरिया पर जापानी आक्रमण के साथ शुरू हुआ, और बाद में, नोबुसुके किशी नाम का एक व्यक्ति नवगठित जापानी कठपुतली राज्य मांचुकुओ में औद्योगिक विकास का उप मंत्री बन गया।

अपनी नई भूमिका में मांचुकुओ की अर्थव्यवस्था पर किशी का पूरा नियंत्रण था, और उन्हें राष्ट्रीय रक्षा राज्य का समर्थन करने के लिए इस क्षेत्र के औद्योगीकरण का काम सौंपा गया था। किशी ने इस लक्ष्य को हासिल किया और इस क्षेत्र में स्थापित किए गए विशाल औद्योगिक संयंत्रों में कथित तौर पर चीनियों को गुलाम मजदूरों के रूप में काम पर लगाकर भारी मुनाफा कमाया। चीनियों के खिलाफ नस्लवाद और दुर्व्यवहार के व्यापक आरोप थे, जबकि किशी मांचुकुओ में थे। बाद में वह जापान लौट आए और द्वितीय विश्व युद्ध में जापानी के शामिल होने के शुरूआती वर्षों के दौरान युद्ध को जारी रखने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। किशी ने 1941 में संयुक्त राज्य अमेरिका और ग्रेट ब्रिटेन के खिलाफ युद्ध के लिए भी मतदान किया था।

हालाँकि, अगस्त 1945 में जापानी आत्मसमर्पण के बाद, किशी को क्लास ए युद्ध अपराधी घोषित करते हुए सुगामो जेल में रखा गया। लेकिन, युद्ध के बाद जापान का नेतृत्व करने के लिए अमेरिकियों द्वारा उन्हें आदर्श व्यक्ति के रूप में पहचाना गया और 1948 में रिहा कर दिया गया था।

रिहा होने के बाद किशी जल्द ही जापान में सक्रिय राजनीति में लौट आए और 1955 में लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (अब तक की सबसे प्रभावशाली जापानी पार्टी) की स्थापना में मदद की, और 1957 में जापान के प्रधान मंत्री बने।

अपने निजी जीवन में, नोबुसुके किशी का एक बेटा नोबुकाज़ु किशी और एक बेटी का नाम योको किशी था। योको किशी ने शिंटारो आबे नाम के एक राजनेता से शादी की। योको किशी और शिंटारो आबे के दूसरे बेटे शिंजो आबे हैं, जिन्हें आज गोली मार दी गई थी, और चीनी इस तरह से अपने दुश्मन की मौत की कामना के साथ उन्हें गोली लगने का जश्न मना रहे हैं।

बता दें कि अपने वंश के अलावा, शिंजो आबे को चीन में उनके मजबूत राष्ट्रवादी रुख और आत्मरक्षा के लिए जापानी सेना को पुनर्जीवित करने के उनके प्रयास के लिए भी नापसंद किया जाता है। आबे पर उनके आलोचकों द्वारा अपनी दक्षिणपंथी और संशोधनवादी नीतियों के माध्यम से देश को इंपीरियल जापान के दिनों में वापस ले जाने की कोशिश करने का भी आरोप लगाया गया है।

Special coverage by OpIndia on Ram Mandir in Ayodhya

  सहयोग करें  

एनडीटीवी हो या 'द वायर', इन्हें कभी पैसों की कमी नहीं होती। देश-विदेश से क्रांति के नाम पर ख़ूब फ़ंडिग मिलती है इन्हें। इनसे लड़ने के लिए हमारे हाथ मज़बूत करें। जितना बन सके, सहयोग करें

ऑपइंडिया स्टाफ़
ऑपइंडिया स्टाफ़http://www.opindia.in
कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

संबंधित ख़बरें

ख़ास ख़बरें

‘पटना वाले शहज़ादे ने बिहार को अपनी जागीर समझा’: दरभंगा पहुँचे PM मोदी ने RJD पर किया वार, कहा – बलिदानी सैनिकों में भी...

हमारी प्रेरणा कर्पूरी ठाकुर जी हैं, कुछ समय पहले जिन्हें भारत रत्न देने का सौभाग्य हमें मिला है। नेहरू ने भी मजहब के आधार पर आरक्षण का विरोध किया।"

कॉन्ग्रेस को टुकड़े-टुकड़े गिरोह बता साथियों समेत BJP में शामिल हुए अरविंदर सिंह लवली: कहा – देश के लिए काम कर रही भाजपा, कॉन्ग्रेस...

2001-02 में उन्हें दिल्ली विधानसभा द्वारा सर्वश्रेष्ठ विधायक का ख़िताब भी मिला। 2003 में 'टाइम्स ऑफ इंडिया' (TOI) और 'हिंदुस्तान टाइम्स' (HT) ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाला MLA चुना।

प्रचलित ख़बरें

- विज्ञापन -