केंद्र की भाजपा सरकार हैदराबाद को निजाम की रियासत से आजादी के उपलक्ष्य में ‘हैदराबाद मुक्ति दिवस’ का आयोजन करेगी। 17 सितंबर से शुरू होकर अगले एक साल तक चलने वाले इस उत्सव को भारत सरकार ने मंजूरी दी है। बता दें कि 17 सितंबर 1948 को हैदराबाद को निजाम के कब्जे से मुक्त कराया गया था।
इस कार्यक्रम को हैदराबाद के परेड ग्राउंड में आयोजित किया जाएगा और इसका उद्घाटन केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह करेंगे। संस्कृति मंत्रालय ने इस कार्यक्रम में भाग लेने के लिए तेलंगाना, कर्नाटक और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों को भी आमंत्रित किया है।
इस स्मृति उत्सव पर उन सभी लोगों को श्रद्धांजलि दिया जाएगा, जिन्होंने इसकी मुक्ति और विलय में अपना बलिदान दिया। अंग्रेजों से भारत की आजादी के बाद हैदराबाद के लोगों ने रियासत का भारत में विलय करने के लिए बड़े पैमाने पर आंदोलन किया था। इसके बाद भारत के प्रथम गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल के ऑपरेशन पोलो के तहत इसका भारत में विलय हुआ।
उस दौरान हैदराबाद रियासत में आज का पूरा तेलंगाना, महाराष्ट्र में मराठवाड़ा क्षेत्र शामिल था। मराठवाड़ा में औरंगाबाद, बीड, हिंगोली, जालना, लातूर, नांदेड़, उस्मानाबाद, परभणी शामिल हैं। वहीं, कर्नाटक के कलबुर्गी, बेल्लारी, रायचूर, यादगिर, कोप्पल, विजयनगर और बीदर जिले हैदराबाद रियासत के अधीन थे।
केंद्रीय संस्कृति मंत्री जी किशन रेड्डी ने शनिवार (3 सितंबर 2022) को कहा कि तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव, कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से अनुरोध किया है कि वे अपने राज्यों में स्मृति दिवस मनाने के लिए उचित कार्यक्रम आयोजित करें।
तीनों मुख्यमंत्रियों को पत्र लिख कर रेड्डी ने कहा कि भारत जब 1947 में स्वतंत्र हुआ तो 562 रियासतों ने भारतीय संघ में विलय की घोषणा की। तत्कालीन हैदराबाद राज्य ने इसका विरोध किया। 17 सितंबर 1948 को तत्कालीन निजाम मीर उस्मान अली खान के शासन की क्रूरता और अत्याचार से लोगों को आजादी मिली।
उधर AIMIM प्रमुख और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर इस कार्यक्रम का नाम बदलने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा कि इसे हैदराबाद मुक्ति दिवस के बजाय राष्ट्रीय एकीकरण दिवस के रूप में मनाया जाए।
ओवैसी ने कहा, “उपनिवेशवाद, सामंतवाद और निरंकुशता के खिलाफ तत्कालीन हैदराबाद रियासत के लोगों का संघर्ष राष्ट्रीय एकीकरण का प्रतीक है, न कि केवल जमीन के एक टुकड़े की ‘मुक्ति’ का मामला है।”