जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने कहा कि मारे गए (Jammu-Kashmir High Court) माना जा सकता है। हाईकोर्ट ने कहा कि एक आतंकी के जनाजे की नमाज में शामिल होना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दी गई व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधीन है।
जस्टिस अली मोहम्मद माग्रे और एमडी अकरम चौधरी की पीठ ने कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार सबसे कीमती है। पीठ ने कहा कि कानून के तहत स्थापित प्रक्रिया के अनुसार किसी को भी इससे वंचित नहीं किया जा सकता है। इसके आधार पर कोर्ट ने UAPA के तहत गिरफ्तार इमाम को जमानत दे दी।
पीठ ने कहा, “मारे गए आतंकवादी के जनाजे की नमाज में बड़ी संख्या में लोगों का शामिल होना, जिनमें गाँव के बुजुर्ग लोग बताए गए हैं, को उस हद तक राष्ट्र विरोधी गतिविधि नहीं माना जा सकता है कि उन्हें भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दी गई उनकी उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित किया जा सके।”
कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में मेनका गाँधी बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया। कोर्ट ने कहा कि किसी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता में कटौती की जा सकती है, जिसके तहत किसी व्यक्ति को आपराधिक आरोप का सामना करना पड़ता है या दोषी ठहराए जाने के बाद कारावास की सजा सुनाई जाती है।
दरअसल, हिजबुल मुजाहिदीन के एक स्थानीय आतंकवादी को सुरक्षा बलों ने एनकाउंटर में मार गिराया था। इसके बाद उस आतंकी को दफन करने के लिए आयोजित जनाजे में भारी संख्या में लोग जुटे थे। नमाज आयोज करने वाले इमाम सहित कुछ लोगों पर UAPA के तहत मामला दर्ज किया गया था।
प्राथमिकी में कहा गया था कि मस्जिद शरीफ के इमाम जाविद अहमद शाह ने अंतिम संस्कार का आयोजन किया था और इस दौरान जनाजे की नमाज आयोजित की गई थी। नमाज के बाद लोगों की भावनाओं को उकसाया गया था और उन्हें आजादी तक संघर्ष जारी रखने का आग्रह किया गया था।
इस मामले में निचली अदालत ने मस्जिद के इमाम एवं अन्य लोगों को जमानत पर्याप्त सबूत का अभाव बताया था। हाईकोर्ट ने निचली अदालत के जमानत देने के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि निचली अदालत ने आवेदन पर फैसला करते समय आदेश में की गई अपनी टिप्पणियों में सही कहा था।
इस मामले में मस्जिद के इमाम सहित 10 लोगों के खिलाफ साल 2021 में UAPA के तहत कुलगाम के देवसर थाने में FIR दर्ज की गई थी। प्राथमिकी कहा गया था कि आतंकी के मारे जाने के बाद उसके गाँव के मोहम्मद यूसुफ गनई ने लोगों को जनाजे की नमाज के लिए उकसाया था। इसमें इमाम ने भड़काऊ भाषण दिए थे।